अगर कोई काम के प्रति सर्मपण और जुनून को सही मायने में समझना चाहता हैं, तो दरिपल्ली रमैया का जीवन उनके लिए प्रेरणास्रोत है। रमैया ने प्रकृति के प्रति अपने अटूट प्रेम के बल पर एक करोड़ से भी ज़्यादा पेड़ों को लगाकर अपने गांव और आस-पास के हजारों मील की वीरान जगह को हरियाली के चादर से ढक दिया।
ट्री मैन ने लगाए करोड़ों पेड़
तेलंगाना के खमाम जिले के रेड्डीपल्ली गांव में रहने वाले दरिपल्ली रमैया ‘ट्री मैन’ के नाम से जाने जाते हैं। लेकिन इनका ‘ट्री मैन’ नाम ऐसे ही नहीं पड़ा है बल्कि इसके पीछे इनकी सालों की मेहनत छिपी है। दरिपल्ली रमैया को पेड़ पौधों और हरियाली से इतना लगाव है कि उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी पेड़ों को संरक्षित करने में लगा दी।
मां से विरासत में मिला पौधों से प्यार
बचपन में दरिपल्ली रमैया अपनी मां के हर काम को बड़े ध्यान से देखते थे। मां भी उन्हें तरह-तरह की चीज़ें सिखाती थी। पौधे लगाना भी उनमें से एक था। बचपन से ही रमैया मां को फलों और सब्जियों के बीजों को संभालकर रखते हुए देखा करते थे। वक्त के साथ-साथ वह बड़े हुए और स्कूल जाने की वजह से वह पहले की तरह मां के साथ पौधों के लिए बीज जुटाने में अपना समय नहीं दे पाते थे। लेकिन स्कूल की किताबों और शिक्षकों द्वारा पौधों की उपयोगिता के किस्से उनके जीवन का हिस्सा बनता जा रहा था। उन्होंने तय किया कि वह पौधों को बचायेंगे, उनकी इसी सोच ने उन्हें प्रेरित किया।
खाली जगह देखते ही लगाते पौधे
पर्यावरण में आ रहे बदलाव, बढ़ते प्रदूषण की मात्रा और वृक्षों की हो रही कटाई के बारे में सुनते ही दरिपल्ली का मन हमेशा बेचैन और उदास हो जाता था। वह पर्यावरण के लिए कुछ करना चाहते थे, इसलिए वह रोज़ जेब में बीज और साईकिल पर पौधे रखकर जिले का लंबा सफर तय करते और जहां कही भी खाली ज़मीन दिखती वही पौधे लगा देते। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने गांव के आसपास की बंजर ज़मीन से की और नतीजन कुछ ही सालों में वह जगह सुंदर हरे-भरे पेड़-पौधों से भर गई। इन पेड़ों की संख्या आज बढ़कर तीन हजार से भी ज़्यादा हो गई। इस काम के लिए उन्होंने किसी की मदद नहीं ली, अकेले ही चुपचाप पौधे लगाये जा रहे थे।
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आसान नहीं था सफर
पेड़- पौधों को दरिपल्ली अपने बच्चों की तरह देखरेख करते थे। इसलिये जब भी कोई पौधा सूखने लगता तो उन्हें बहुत दुख होता इसलिये हर रोज़ खुद के लगाये पौधों को देखने चले जाते थे। वह पुरानी किताबों की दुकान से पेड़-पौधों से संबंधित किताबें खरीद कर पढ़ा करते थे। उनके पास राज्य में पाये जाने वाले 600 से ज़्यादा पेड़ों के बीजों का अनूठा संग्रह भी है। वह यही नहीं रूके, पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए वह कबाड़ के टिन प्लेटों पर ‘वृक्ष बचाओं’ के नारे रंग-बिरंगे रंगों से लिखकर पूरे गांव और जिलों में घूमा करते थे। वह बड़े ही गर्व से राजमुकुट की तरह टीन की एक टोपी भी पहनते हैं, जिससे वे लोगों को हरियाली बचाने की अपील करते हैं। इस काम को देखते हुए लोगों ने उन्हें पागल तक कहा, लेकिन बाद में जब पर्यावरण बेहतर होते देखा, तब उनके काम को खूब सराहना की।
एक समय ऐसा भी आया जब बीजों के लिए उनके पास पैसे नहीं थे, तो उन्होंने अपनी तीन एकड़ जमीन बेचकर उनसे बीज खरीदे और फिर निकल पड़े अपने अभियान पर। पैसे की कमी भी दरिपल्ली के उद्देश्य पूर्ति में कभी बाधा नहीं बनी।
मिला पद्मश्री अवार्ड
दरिपल्ली ने अपना पूरा जीवन पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने में समर्पित कर दिया है। पर्यावरण के प्रति उनके जुनून को देखते हुए सरकार ने पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया।
इमेज : फेसबुक
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