भारत के संविधान ने 18 साल से ज़्यादा उम्र के हर नागरिक को वोट का अधिकार दिया है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, समुदाय का क्यों न हो। लोकतंत्र में वोट का अधिकार बहुत मायने रखता है, इसलिए हर नागरिक को यह पता होना चाहिए की बतौर वोटर उसे कौन-कौन से अधिकार प्राप्त है।
वोटर के रूप में रजिस्ट्रेशन
18 साल से ज़्यादा उम्र के किसी भी नागरिक का नाम मतदाता सूची में शामिल किया जा सकता है। हर पांच साल में मतदाता सूची नये सिरे से बनाई जाती है। नये वोटरों को लिस्ट में शामिल करने के लिए इलेक्शन कमीशन घर-घर जाकर वोटरों की संख्या गिनता है।
कहां करें वोट?
चुनाव आयोग किसी भी नागरिक का नाम उसी एरिया की वोटर लिस्ट में शामिल करता है, जहां वह रहता है। यदि कोई इंसान शहर या इलाका बदलता है, तो इस संबंध में उसे चुनाव आयोग को जानकारी देनी होगी, तभी उसका नाम नए निर्वाचन क्षेत्र की सूची में शामिल किया जायेगा।
वोटिंग के लिए वोटर आईडी ज़रूरी नहीं
चुनाव आयोग हर मतदाता को एक फोटो आईडी कार्ड जारी करता है, जिस पर उसकी फोटो के साथ ही एक नंबर लिखा होता है, लेकिन वोटिंग के समय यह कार्ड ले जाना ज़रूरी नहीं है। इसकी जगह आप कोई भी फोटो आइडेंटी प्रूफ जैसे- पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड आदि ले जा सकते हैं।
वोटर आईडी कार्ड होना वोटिंग की गारंटी नहीं
यह कतई ज़रूरी नहीं है कि अगर आपके पास वोटर आईडी कार्ड है, तो आप वोट दे सकते है। अगर आपका नाम संबंधित इलाके की निर्वाचक नामावली (इलेक्ट्रोल रोल) में है, तो ही आप वोट दे सकते है।
नोटा का अधिकार
मतदाताओं को अपना वोट किसी को नहीं देने का भी पूरा अधिकार है। यदि किसी शख्स को कई उम्मीदवार योग्य नहीं लगता है तो वह वोटिंग मशीन में दिए गए नोटा का ऑप्शन चुन सकता है।
अप्रवासी भारतीय
अप्रवासी भारतीय (एनआरआई) भी देश में चुनाव के दौरान अपने मतदान के अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें खुद को चुनाव आयोग में जाकर रजिस्टर्ड कराना होगा।
ये नहीं कर सकते वोट
– जब कोई भारतीय किसी अन्य देश की नागरिकता ले लेता है तो उसका वोटिंग अधिकार खत्म हो जाता है।
– कोर्ट द्वारा मानसिक रूप से अस्वस्थ करार दिए गए किसी शख्स को भी वोटिंग का अधिकार नहीं है।
– यदि कोई व्यक्ति गलत तरीके से चुनावी गतिविधियों में लिप्त पाया गया, तो उसका नाम वोटर लिस्ट से हट सकता है।
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