क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर प्रकृति ने इंसान के अंदर संवेदना का अहसास क्यों बनाया? दरअसल, संवेदना एक ऐसा भाव है, जो हमें दूसरों के लिए जीना सिखाता है और एक बेहतर इंसान बनने में मदद करता है।
कुछ ऐसी ही संवेदना जताई है शिक्षक ने, जिसके प्रयास से कई बच्चों को अपना भविष्य संवारने का एक बढ़िया मौका मिला है।
क्या खास किया है टीचर ने?
कहते है कि शिक्षा का दान सबसे बड़ा दान होता है और पुणे के शख्स दत्ता वालुंज ने भी ऐसे दो बच्चों को शिक्षा देने का फैसला किया, जब उन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। पिता की मौत के बाद उन दोनों बच्चों के स्कूल छोड़ने की संवेदना ने दत्ता वालुंज को एक नई पहल से जोड़ दिया। उन्होंने दोनों बच्चों को किताबें, बैग, टिफिन बॉक्स और अन्य ज़रूरी स्टेशनरी दिलवाई।
वालुंज की पहल के चलते पुणे का जेड पी स्कूल बेसहारा बच्चों की इस मुहिम में शामिल है और स्कूल स्टाफ सिर्फ वेकेशन सैलरी से कई ऐसे ज़रूरतमंद बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया करवा रहा है।
वालुंज ने समाज को संदेश दिया है कि अगर समाज ज़रूरतमंद बच्चों के लिये थोड़ी सी भी संवेदना दिखाये, तो बच्चे भारत की तस्वीर बदलने का जज़्बा रखते है।
ज़रूरतमंद बच्चों को दे प्यार का भाव
जिस तरह जेडपी स्कूल स्टाफ ने ज़रूरतमंद बच्चों की मदद के लिए सिर्फ छुट्टी के समय मिलने वाले वेतन से बच्चों के फिज़िकल और मेंटल लेवल को विकसित करने का काम किया है। शायद उसी तरह हम-आप भी कुछ तरीकों से ऐसे बच्चों की मदद कर सकते हैं जैसे –
–सोशल लाइफ का अहसास दिलाकर
सामाजिक कार्यकर्ताओं की नज़र में ऐसे बच्चों को अकेला महसूस न होने दें। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि बच्चे नेगेटिव बातों की ओर आकर्षित होने से बचते हैं।
–एक साथ खाना खाये
साथ बैठकर खाना खाते हुए बातें करना किसी को जानने-समझने का बेहतरीन विकल्प होता है। इसलिए बच्चों से जुड़ने के लिए भी यह कारगर तरीका है।
-एक-दूसरे को सिखायें
कई बार जब हम बच्चों से मिलते हैं, तो उनकी मानसिक स्थिति बेहतर नहीं होती। ऐसे में अगर उन्हें नई चीजें सिखानी है, तो ज़रूरी है कि उनसे उनके मन-मुताबिक बात की जाये और एक-दूसरे की बातें शेयर की जाये और इस तरह बच्चों से आसानी से करीबी बनाई जा सकती है।
इमेजः प्रतीकात्मक इमेज
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