इरादे अगर पक्के हैं तो हर मुश्किल हार मान जाती हैं। इसी बात को सच साबित कर दिखाया हैं इन महिलाओं ने।
कल्पना सरोज
बुलंद इरादों की बेहतरीन मिसाल हैं महाराष्ट्र के विदर्भ में जन्मीं कल्पना सरोज। दलित परिवार में जन्मी कल्पना ने गरीबी से लेकर, बाल विवाह और घरेलू हिंसा का दंश सहा है। एक बार वह ज़रूर डगमगाई, लेकिन उसके बाद खुद को मज़बूत करके एक बार ज़िंदगी में ऐसा आगे बढ़ी कि फिर कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा। विदर्भ के गांव से मुंबई के स्लम पहुंची कल्पना को शुरू में एक गारमेंट फैक्ट्री में 2 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी पर काम शुरू किया। कुछ पैसे जुटाकर अपना बुटीक शुरु किया जो सफल रहा। इसके बाद फर्नीचर स्टोर खोला, ब्यूटी पार्लर भी खोला और साथ रहने वाली लड़कियों को काम सिखाया। इसके बाद कल्पना ने वो कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। मुंबई की कंपनी कमानी ट्यूब्स 17 साल से बंद थी और सुप्रीम कोर्ट ने वर्करों से उसे शुरू करने को कहा था, कल्पना ने कर्ज में डूबी इस कंपनी को न सिर्फ शुरू किया, बल्कि आज यह कंपनी करोड़ों का टर्नओवर देती है। कल्पना उन लोगों के लिए मिसाल है जो ज़िंदगी में थोड़ी सी मुश्किल आ पर घबरा जाते हैं।
पाबीबेन रबारी
गुजरात के कच्छ की रहने वाली पाबीबेन सिर्फ चौथी तक पढ़ी हैं, लेकिन अपने हुनर के बल पर वह लाखों का बिजनेस कर रही हैं। गरीब परिवार में जन्मी पाबीबेन बचपन में एक रूपए में लोगों के घर पानी भरने का काम करती थीं, इसी दौरान उन्होंने अपनी मां से कढ़ाई सीखी। जल्द ही वह ट्रेडिशनल कढ़ाई ‘हरी जरी’ में एक्सपर्ट हो गईं। पहले तो वह बतौर कारीगर ही काम करती थीं, लेकिन काम को पहचान न मिलने के कारण उन्होंने अपना बिजनेस शुरू करने की सोची। वह आदिवासी समुदाय की पहली बिजनेस वुमन हैं। वह 60 महिलाओं के साथ मिलकर 20 से भी ज़्यादा डिज़ाइन के बैग बनाती है जिसकी डिमांड सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी है। ‘पाबिबेन डॉट कॉम’ नाम की वेबसाइट के जरिए वह अपने प्रोडक्ट विदेशों में बेचती हैं। पाबीबेन ने अपनी समुदाय की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है, जिसके लिए 2016 में इन्हें जानकी देवी बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
को आत्मनिर्भर बनाया है, जिसके लिए 2016 में इन्हें जानकी देवी बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
सोबिता तामुली
मौका सब जगह है, बस हमें उसे पहचानने की ज़रूरत होती है और असम की सोबिता तामुली ने अपने गांव में ही सफलता के उस मौके को पहचान लिया। सोबिता बहुत पढ़ी-लिखी भी नहीं है, लेकिन आज वह सफल बिज़नेस वुमन हैं। उन्होंने सबसे पहले ऑर्गेनिक खाद का बिज़नेस शुरू किया जो बहुत सफल रहा। उसके बाद असम की ट्रेडिशनल टोपिया बनाकर बेची, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया। वह अपने प्रोडक्ट सीधे ही कस्टमर को बेचने पर विश्वास रखती हैं। बिजनेस की दुनिया में सोबिता यहीं रुकना नहीं चाहतीं, बल्कि अब वह अगरबत्ती बिजनेस की बारिकियां सीखकर वहां कदम रखने की तैयारी में है।
थिनलस चोरोल
थिनलस चोरोल न सिर्फ लद्दाख, बल्कि सभी महिलाओं के लिए उम्मीद की एक किरण हैं, जो बताती हैं कि जब सारे रास्ते बंद हो जाएं, तब भी कोई एक रास्ता खुला होता है हमें बस उसे देखने की ज़रूरत है। थिनलस ट्रैवल गाइड बनना चाहती थीं, लेकिन महिला होने का कारण किसी कंपनी ने उन्हें नौकरी नही दी, तो थिनलस चोरोल ने 2009 में खुद की कंपनी बना ली ‘लदाखी विमेंस ट्रेवल कंपनी’। इस कंपनी की खासियत यह है कि इसमें सिर्फ महिलाएं ही काम करती हैं। इससे लद्दाख घूमने और ट्रैकिंग के लिए आने वाली महिलाओं को न सिर्फ सहूलियत मिलती है, बल्कि वह खुद को इनके साथ सुरक्षित भी महसूस करती हैं। थिनलस की ट्रैकिंग कंपनी में 15 महिला गाइड हैं। उन्होंने एक तरफ अपने जैसी अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया, तो दूसरी ओर महिला पर्यटकों को पुरुष गाइड के दुर्व्यवहार से भी बचाया।
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