उम्मीदों की सड़क

उम्मीदों की सड़क

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दशरथ मांझी के बारे में तो सबको पता होगा ही, उनपर बॉलीवुड फिल्म भी बन चुकी है। अकेले ही पहाड़ काटकर बिहार में सड़क बनाने वाले दशरथ मांझी की तरह ही कारनाम किया है, लद्दाख के 75 वर्षीय सुल्ट्रीम चोंज़ोर ने। चोंज़ोर ने अकेले दम पर 38 किलोमीटर लंबी सड़क बनाकर सबको हैरत में डाल दिया।

सामरिक महत्व वाली सड़क

हाल ही में बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने हिमचाल प्रदेश के दराचा से पदुम शहर तक 140 किलोमीट लंबे रोड का निर्माण कार्य पूरा किया है। जांस्कर के पदुम इलाके से यह सड़क लेह जिले के नीमू गांव तक जाएगी। यह रोड न सिर्फ आम नागरिकों के लिए बल्कि, सेना के लिए भी बहुत महत्वूपर्ण है। पिछले कुछ समय से लेह-लद्दाख पर जिस तरह से चीन की नज़र रही है, उसे देखते हुए रोड़ कनेक्टिविटी बहुत ज़रूरी था ताकि सेना आसानी से सभी इलाको में आ-जा सके और राशन आदि पहुंचाने में भी सुविधा हो, मगर इस सड़क के निर्माण का श्रेय जाता है सुल्ट्रीम चोंज़ोर को।

यदि उन्होंने हिम्मत न दिखाई होती तो शायद यह सड़क इतनी जल्दी न बन पाती। दरअसल, रोड के निर्माण का काम चोंज़ोर ने अकेले ही शुरू किया था और उन्होंने 38 किलोमीटर लंबी सड़क अकेले बना डाली, जिसके बाद आगे का काम बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने अपने हाथों में ले लिया।

उम्मीदों की सड़क
लद्दाख के मांझी  | इमेज: फेसबुक / त्रिलोफिलिया

लद्दाख के दशरथ माझी

लद्दाख की जांस्कर वैली के छोटे से गांव के रहने वाले चोंज़ोर को लोग प्यार से मेमे चोंज़ोर भी बुलाते हैं। चोंज़ोर अपने गांव और बाकी के इलाकों के रोड से जुड़े नहीं होने से बहुत दुखी थे। लोगों को परेशान होता देख उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने सड़क बनाने का अकेले ही बीड़ा उठा लिया। हालांकि जांस्कर वैली और लद्दाख के अन्य इलाकों की रोड कनेक्टिविटी नहीं होने की वजह से 2001 में दारचा-शिंकुला-पदम-नींमू रोड का खाका तैयार किया गया, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाया।

संपत्ति बेच डाली

चोंज़ोर ने मई 2014 से जून 2017 के बीच 38 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने के लिये अपनी जेब से 57 लाख रुपए खर्च कर दिये। इस सड़क के लिए उन्होंने न सिर्फ अपनी जमा पूंजी, बल्कि पैतृक संपत्ति भी बेच डाली। एक जेसीबी मशीन और पांच खच्चर की बदौलत उन्होंने काम पूरा किया। बाद में सड़क को और चौड़ा करने के लिए बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने यह काम अपने जिम्मे ले लिया।

आज लद्दाख की खूबसूरत घाटी के अंदरुनी इलाके तक यदि गाड़ियां जा रही है, तो उसका श्रेय जाता है, चोंज़ोर को। इस सड़क के बन जाने से लाहुल और जांस्कर वैली के लोगों की ज़िंदगी बहुत आसान हो गई।

इमेज: द बैटर इंडिया

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