आज के दौर में जहां महिलाएं हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, वही देश के कुछ हिस्सों में बेटियों के जन्म पर सवाल खड़ा हो जाता है। समाज में आज भी एक तबका है, जो बेटा-बेटी में फर्क करता है लेकिन उसी समाज में डॉ. गणेश राख जैसे लोग भी है, जो इस छोटी सोच को बदलने की ताकत रखते हैं।
परिचय
महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले डॉ. गणेश राख ने साल 2007 में पुणे के एक उपनगर हडपसर में 25 बिस्तरों वाले एक जनरल और प्रसूति अस्पताल की स्थापना की थी। अस्पताल खोलने का मकसद उन लोगों का इलाज करना था, जो पैसे की तंगहाली के चलते इलाज नहीं करवा पाते। इसी अस्पताल में उन्होंने बेटियों को बचाने की ऐसी पहल शुरु की, जिसके चलते यह अपनी एक अलग पहचान बना चुका है।
क्या है पहल?
हडपसर में अस्पताल खोलने के बाद डॉ. गणेश पता चला कि यहां लड़कियों की संख्या काफी कम है और समय के साथ उन्हें मालूम हुआ कि इसका कारण क्षेत्र में लगातार हो रही कन्या भ्रूण हत्या है। इसे रोकने के लिए डॉ. गणेश ने अपने अस्पताल में ‘मुलगी वाचवा अभियान’ की पहल शुरु की। इस अभियान के तहत जब भी अस्पताल में बेटी का जन्म होता है, तो उसके परिवार से कोई भी फीस नहीं ली जाती है। यही नहीं बेटी के जन्म पर पूरे अस्पताल में मिठाई बांटकर उसका जश्न मनाया जाता है।
सोच में बदलाव लाने की कोशिश
अस्पताल में जब भी कोई गर्भवती महिला आती है, तो परिवार को बेटे की चाह होती है। डॉ. गणेश परिवार को बेटी की अहमियत समझाते हैं और इसलिए बेटी होने पर न सिर्फ जश्न मानते हैं, बल्कि मां और बच्ची जितने दिन अस्पताल में रहते हैं, उनका सारा खर्च अस्पताल उठाता है। साथ ही सरकार द्वारा बेटी से जुड़ी योजनाओं की सारी जानकारी दी जाती है।
पहल का असर
बेटी बचाव की इस पहल का असर भी हुआ और डॉ. गणेश को कई ग्राम पंचायतों और डॉक्टरों की मदद मिली। इसमें उन्होंने न सिर्फ लिंग परीक्षण और गर्भपात न करने और करवाने का वादा किया, बल्कि यह भी प्रण लिया कि वह अपने स्तर पर परिवारों को प्रोत्साहित और प्रेरित करेंगे कि बेटी के जन्म का जश्न मनाएं। आज की तारीख में महाराष्ट्र के दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाले करीब 300 डॉक्टर कन्या शिशु और बालिकाओं के खिलाफ मौजूद सामाजिक पक्षपात से लड़ने के इस अभियान के साथी बन चुके हैं। डॉ. गणेश की इस पहल का असर हो रहा है और उनके इस नेक काम में सभी को जुड़ना चाहिए। अपने आसपास के लोगों को बेटियों का महत्व समझाना चाहिए और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की पहल करनी चाहिए।
इमेज : फेसबुक
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