हमारे समाज बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो हमारे समाज के लिए प्रेरणा दायी काम करते हैं। हम आपको ऐसे ही कुछ लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं।
असम में रहने वाले 9 साल के अभिनब देव का का सरहनीय काम
किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं और इसे साबित भी किया है असम के 9 साल के बच्चे ने। अभिनब देब दिल्ली पब्लिक स्कूल में कक्षा 3 का छात्र है, जो असम के ढोलई निर्वाचन क्षेत्र के बोरजालेंगा क्षेत्र का रहने वाला है। उसे पौधों से बहुत प्यार है, इसलिए वह अपने घर या आस-पास के क्षेत्रों में कभी भी किसी पेड़ को काटने की अनुमति नहीं देता है। जब से उन्होंने कोविड -19 संक्रमित रोगियों में ऑक्सीजन की कमी के मुद्दों के बारे में सुना, जिसके बाद एक सरहानीय कदम उठाया।
अभिनव देब ने पेड़ लगाकर वातावरण में ऑक्सीजन बढ़ाने का संकल्प लिया। देब ने अपने माता-पिता से पौधे की रक्षा करने में उनकी मदद करने का अनुरोध किया है। जिसके बाद अभिनब देव ने 1000 पौधे लगाए।
अपनी पहल के बारे में बात करते हुए, नौ साल के अभिनव ने कहा, “मैंने सुना है कि लोग ऑक्सीजन की कमी के कारण मर रहे हैं। मेरे शिक्षकों ने कहा है कि पेड़ ही ऑक्सीजन का एकमात्र स्रोत हैं और हम पेड़ लगाकर और संरक्षित करके ऑक्सीजन बढ़ा सकते हैं। मैं अपने क्षेत्र के प्रत्येक पेड़ की रक्षा करना चाहता हूं और अधिक से अधिक पौधे लगाना चाहता हूं। मैंने अपने जन्मदिन पर पौधे लगाना शुरू कर दिया है और यह चलता रहेगा फिर भी मैं अपने पूरे क्षेत्र को पौधों से भर दूंगा। ” अभिनव देब का यह काम काफी सरहनीय है।
झारखंड की 7वीं क्लास की आदिवासी लड़की दीपिका छोटे बच्चों को पढ़ा रही है मुफ्त
कोरोना काल में स्कूल के बंद होने के कारण आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लासेज़ का कोई विकल्प नहीं है, ऐसे में बच्चे इधर-उधर खेलते रहते हैं। इसी को देखते हुए झारखंड में खूंटी जिले के लोधमा चंदापारा गांव में रहने वाली 11 साल की आदिवासी बच्ची दीपिका मिंज ने गांव के बच्चों के लिए ‘शिक्षा प्रेमियों की पाठशाला’ खोली है और उसमें अपने से छोटे बच्चों को पढाती है। सातवीं क्लास की दीपिका खुद से छोटी उम्र के बच्चों को रोज़ाना दो घंटे अंग्रेजी और गणित पढ़ाती है। गांव के बच्चे दीपिका को टीचर दीदी बुलाते हैं और बच्चे दीपिका से काफी खुश रहते हैं। दीपिका भी काफी खुश है कि क्योंकि वह बच्चों को पढ़ा रही है और बच्चे भी अपना समय केवल खेल में खराब नहीं कर रहे हैं।
दीपिका के उत्साह को देखकर गांव की कई संस्थाएं और गांव के लोग आगे आए हैं। संस्था प्रतिज्ञा ने अर्ज नाम की लाइब्रेरी स्थापित की है। संस्था के सचिव अजय कुमार ने बताया कि बरसात में बच्चों की पाठशाला इसी लाइब्रेरी में लग रही है। लाइब्रेरी में इन्वर्टर की व्यवस्था है, ऐसे में रात में लाइट नहीं रहने पर भी बच्चे आराम से पढ़ाई करते हैं। ग्राम सभा भी मदद के लिए हाथ बढ़ाया है। गांव के बड़े बच्चों को दीपिका के साथ पढ़ाने को तैयार किया। बच्चों के बैठने के लिए दरी और लिखने के लिए ब्लैक बोर्ड खरीद कर दिया है। दीपिका से सीख लेकर अब गांव के बड़े बच्चे भी उसके साथ बच्चों को पढ़ाने लगे हैं। शाम में दो बैच में 40-40 बच्चे पढ़ते हैं। बड़े बैच में खुद दीपिका पढ़ाई करती है।अपना बैच खत्म करने बाद वह खुद दूसरे बैच में छोटे बच्चों को पढ़ाती है।
दीपिका ने शुरुआत में अपने पड़ोस के दो बच्चों को घर बुलाकर पढ़ाना शुरू किया। पहली क्लास घर के आंगन में लगी। जुलाई आते-आते बच्चों की संख्या एक दर्जन पहुंच गई। इसके बाद गांव के एक पक्के चबूतरे पर सुबह-सुबह क्लास लगने लगी। आज शिक्षा प्रेमियों की पाठशाला में 80 से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं।
भारतीय मूल सिरिशा बांदला करेंगी अंतरिक्ष यात्रा
हाल ही में भारतीयों के लिए फिर से गर्व का क्षण रहा, जब भारतीय मूल की सिरिशा बांडला को अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना गया। अमेरिका में भारतीय मूल की सिरीशा बांडला (34) इन दिनों अंतरिक्ष यात्रा के लिए आवश्यक चीजों को सीखने के अंतिम दौर में हैं। वह 11 जुलाई को यूनिटी 22 मिशन के तहत वर्जिन के रिचर्ड ब्रेंसन के साथ अंतरिक्ष में जाएंगी। आंध्र प्रदेश में जन्मी बांडला वर्जिन गैलेक्टिक के वीएसएस यूनिटी अभियान के तहत अंतरिक्ष में जाने वाले छह यात्रियों में शामिल होंगी। वह वर्जिन गैलेक्टिक के संस्थापक रिचर्ड ब्रेंसन के साथ 11 जुलाई को न्यू मेक्सिको से अंतरिक्ष के लिए रवाना होंगी।
कल्पना चावला के बाद अंतरिक्ष में जाने वाली सिरीषा बांडला भारत में जन्मी दूसरी महिला होंगी। उनसे पहले भारतीय मूल की कल्पना चावला, राकेश शर्मा और सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में जा चुके हैं। पेशे से एयरोनॉटिकल इंजीनियर बांडला ने ट्विटर पर अंतरिक्ष यात्रा में शामिल होने के लिए खुद को गौरवान्वित महसूस करने की बात लिखी है। उन्होंने लिखा है कि वह यूनिटी 22 का हिस्सा बनने को लेकर गौरवान्वित हैं। यह ऐसा मिशन है जिसमें कंपनी का उद्देश्य अंतरिक्ष में सभी का जाना-आना सुनिश्चित करना है। यह हमारे देश के लिए काफी गर्व की बात है।
ज़रूरतमंद लोगों को खाना खिलाने का नेक काम कर रहे हैदराबाद के अज़हर
चाहे आपके पास एक डॉक्टरेड या फिर कानून की डिग्री हो या न हो लेकिन आपके पास इंसानियत की डिग्री होनी चाहिए। सैयद उस्मान अजहर ने अपनी इंसानियत की बेहतरीन मिसाल पेश की है। अब तक हैदराबाद के नाम सिर्फ सानिया मिर्जा और अजहरुद्दीन के नाम से जुड़ा हुआ था लेकिन इस फेहरिसत मे सैयद उस्मान अजहर मकसूद का नाम भी जुड़ गया है लेकिन वह किसी खेल या डिग्री की वजह से नहीं, बल्कि समाजिक सेवाओ में अपना नाम रोशन किया है।
बता दे कि सैयद अजहर गरीबों और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए आगे आए है।उनको हाल ही में ब्रिटिश सरकार ने हंगर हैज़ नो रिलीजन पहल के लिए कॉमनवेल्थ पॉइंट्स ऑफ लाइट अवार्ड से भी सम्मनित किया गया है। अजहर मकसूद हर दिन 1,500 लोगों को खाना भी खिलाते है। यह हमारे देश के लिए काफी गर्व की बात है। उनके इस नेक काम को हम दिल से सलाम करते हैं।
पेड़ों को बचाने का तरीका सिखाया है झारखंड के युवाओं ने
कहा जाता है जहां चाह है वहां राह है। झारखंड के रहने वाले कुछ युवाओं ने मशीनरी टूल्स की मदद के बिना एक बड़े पेड़ को स्थानांतरित करके उसे बचा लिया है। ये फोटो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है जिसने सभी का दिल जीत लिया है। डिप्टी कलेक्टर संजय कुमार ने तस्वीर शेयर करते हुए लिखा कि ये एक तस्वीर 1000 से अधिक शब्दों को बयां करती है। इस तस्वीर में ग्रीन वॉरियर्स पेड़ को अपने कंधों पर उठाकर दूसरी जगह लेकर जा रहे हैं। पर्यावरण बचाने का यह बहुत ही सराहनीय कदम है। ये तस्वीर हमें बताती है कि अगर हम ठान लें तो हर मुश्किल काम को आसान कर सकते हैं।
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