बदलाव लाता है थियेटर

बदलाव लाता है थियेटर

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दुनिया के जाने-माने और महान अंग्रेज़ी कवि, नाटककार और लेखक विलियम शेक्सपियर ने कहा था कि दुनिया एक मंच है और हर व्यक्ति केवल एक कलाकार है; हर व्यक्ति की एंट्रेंस और एग्ज़िट का समय होता है; और एक समय में एक व्यक्ति कई रोल प्ले करता है। अगर आप इस बात पर गौर करें, तो लगेगा कि वाकई में आपके जीवन में कई लोग आते हैं, अपना रोल प्ले करते हैं, आपको कुछ सीख देते हैं और चले जाते हैं। बात अगर सीखने की हो, तो रंगमंच लोगों को नई बातें समझाकर, नई सीख देकर, समाज में बदलाव लाने में मददगार होता है।

समाजिक परिवर्तन में कैसे करता है मदद?

जब कोई नाटक दर्शकों की ज़िंदगी और उनकी परेशानियों से जुड़ा होता है, तो उसे देखकर दर्शकों के मन में एक प्रक्रिया शुरु हो जाती है, जिससे गहरी समझ और परिवर्तन लाया जा सकता है। नाटक में दिखाई गई समस्यायें और उन्हें पेश करने वाले एक्टर्स को लोग खुद से जोड़कर देखते हैं। इसकी वजह है कि वह उस समस्या को जीने के बजाय देख रहे होते हैं, इसलिए वह समस्याओं को आसानी से देख पाते है और उनके समाधान व विकल्पों को ढूंढने में सक्षम हो जाते हैं।

बदलाव लाता है थियेटर
समाज में सुधार लाते है नाटक  | इमेज: फाइल इमेज

गांवों में आम होता है नुक्कड़ नाटक

स्ट्रीट प्ले सिर्फ शहरों में ही नहीं बल्कि गांवों में भी अपनी छाप छोड़ चुके है। मुद्दा कोई भी हो, नाटक के ज़रिये लोगों को आसान भाषा में समझाया जाता है। मिसाल के तौर पर स्वच्छ भारत अभियान की बात करते हैं, जिसका मकसद भारत को खुले में शौच मुक्त देश बनाना है और ग्रामीण क्षेत्रों में सॉलिड एवं लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट की गतिविधियों के माध्यम से स्वच्छता के स्तर में सुधार लाना है।

इस बात को नुक्कड़ नाटक के ज़रिये ग्रामीण लोगों को सरल भाषा में समझाने और उस पर सोच विचार करने के लिए प्रेरित किया जाता है। नुक्कड़ नाटक के कलाकार खुले में शौच करने से होने वाली बीमारियों और दूसरी समस्याओं को प्रदर्शित करते हैं, और दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। एक बार दर्शक को समस्या समझ आ जाये, तो फिर विस्तार से इस समस्या का समाधान बताते हैं और घर में टॉयलेट बनवाने और इस्तेमाल करने पर ज़ोर देते हैं। इसी तरह वोट डालने के अधिकार, सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी, पढ़ने-लिखने के महत्व के साथ और दूसरी बातों को भी थियेटर के ज़रिये लोगों तक पहुंचाया जाता है।

इसी तरह रोज़मर्रा की तमाम समस्याओं को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में नाटक या थियेटर के माध्यम से समझाया जा सकता है।

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