किसी भी घर में संस्कारों की नींव बुजुर्गं ही रखते हैं। अपने अनुभवों से न सिर्फ नई पीढ़ी को बच्चों की परवरिश में मदद करते हैं, बल्कि अच्छे संस्कार सिखाकर उन्हें नेकदिल और बेहतर इंसान बनने में भी मदद करते हैं। इसलिए घर के बुजुर्गों की सलाह को कभी दरकिनार नहीं करना चाहिए, वह ज़िंदगी के बहुत से ज़रूरी सबक सिखाते हैं।
माफ करना
घर में किसी से कोई गलत काम हो जाए या बच्चा कोई गलती कर दे, तो हम तुरंत आग बबूला हो जाते हैं। उस वक्त हमें याद नहीं रहता कि गलतियां तो हमने भी की है और हर इंसान गलती करता है, लेकिन बड़ा होने के नाते हमें छोटों की गलतियों को माफ कर देना चाहिए। घर में आपने दादा-दादी या नाना-नानी को अक्सर देखा होगा कि वह बच्चों कि गलतियों और शरारतों पर गुस्सा नहीं करतें और कोई चीज़ नुकसान करने पर भी डांटने की बजाय उन्हें प्यार से समझाते हैं। माफ करने की कला हमें बुज़ुर्गों से सीखनी चाहिए।
धैर्य रखना
ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं, लेकिन नई पीढ़ी दुख या असफलता मिलने पर तुरंत घबरा जाती है। जबकि हमारे घर के बुज़ुर्गों के अनुभव सुनने पर पता चलता है कि किस तरह उन्हें धैर्य के साथ जीवन की कठिनाइयों का सामना किया और आज भी कोई मुश्किल आने पर वह दूसरों का हौसला बढ़ाते दिखते हैं।
दोस्त बनाना
आपने गौर किया होगा कि बूढ़े लोग बच्चों से तुरंत दोस्ती कर लेते हैं और उसके साथ खुद भी बच्चा बन जाते हैं। आज के समय में जहां हर कोई अपनी दुनिया में सिमटता जा रहा है और सामाजिक दायरा छोटा हो रहा है, ऐसे में दोस्त बनाने का यह गुण हम सबको अपने बुजुर्गों से ज़रूर सीखना चाहिए।

रिश्तों को समेटकर रखना
किसी बड़े की गलती तो किसी छोटे की नादानियों को नज़रअंदाज़ करते हुए दादी/नानी बरसों से अपने संयुक्त परिवार को सहेजती चली आ रही है। कई बार परिवार की खुशी के लिए उन्हें झुकना पड़े तो उससे भी उन्हें परहेज नहीं होता, क्योंकि उनके लिए रिश्ते से बढ़कर कुछ नहीं है। रिश्ते सहेजने का यह गुण हमें भी उनसे सीखना चाहिए।
वादे निभाना
अपने दादा-दादी या नाना-नानी के बरसों के साथ से आप भी सबक ले सकते हैं कि कैसे पार्टनर के साथ रिश्ता निभाया जाता है। आज के समय में तो छोटी-छोटी बातें बड़ी तकरार में बदलकर रिश्ते टूटने का कारण बन जाती है। पति-पत्नी अपनी ज़िंदगी में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें शादी के समय लिया साथ निभाने का वादा भी याद नहीं रहता। ऐसे में वादे निभाने का गुण बुज़ुर्गों को देखकर सीखिए।
अच्छे संस्कार
स्कूल-कॉलेज से शिक्षा मिलती है, लेकिन संस्कार तो घर के बड़े-बुज़ुर्ग ही देते हैं और कामयाब के साथ नेकदिल इंसान बनने के लिए संस्कार बहुत ज़रूरी है।
दूसरों की मदद करना
आपने देखा होगा कि यदि सड़क पर भी कोई भूखा-प्यासा मिल जाए तो आपके दादा-दादी उसे खाना-पानी पिलाने लगते हैं, क्योंकि उनसे दूसरों का दुख नहीं देखा जाता है। जितना हो सके वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते हैं।
हमेशा मुस्कुराना
मुस्कुराने से दुख और मुश्किलें दूर तो नहीं हो जाती, लेकिन उनसे लड़ने का हौसला ज़रूर मिलता है। तभी तो आपने अपने दादा-दादी को देखा होगा कि घर में सबके चिंतित और परेशान रहने के बावजूद वह सबको मुस्कुराकर हौसला रखने के सीख देते हैं।
लचीला बनना
वक़्त के साथ चीज़ें बदलती रहती है और हमें भी इसके साथ बदलना पड़ता है वरना ज़िंदगी रेस में हम पिछड़ जाएंगे। समय के साथ बदलने और लचीलेपन की यह सीख घर के बुज़ुर्ग ही देते हैं, जब 70 साल की उम्र में भी वह अपने पोते से लैपटॉप और मोबाइल के नए फीचर्स सीखते हैं।
ज़िंदादिल रहना
70-75 साल की उम्र में भी आपने बहुत से बुज़ुर्गों को सुबह युवाओं के साथ दौड़ते, पार्टनर के साथ ज़िंदगी की दूसरी पारी का आनंद लेते देखा होगा, जो यह बताने के लिए काफी है कि उम्र तो महज़ एक संख्या है, यदि आप मन से खुद को युवा समझेंगे तो ज़िंदगी ज़िंदादिली के साथ जी सकते हैं। अपने अनुभव और तजुर्बे से बुजुर्ग हमें ज़िंदगी के बहुत से ज़रूरी सबक सिखाते हैं, इसलिए हमेशा उनके प्यार और आशीर्वाद की छाया में रहने की कोशिश करें।
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