सपने देखने के लिए आंखों का होना ज़रूरी नहीं, लेकिन उनको पूरा करने के लिए आत्मविश्वास का होना ज़रूरी होता है। इस बात की जीती जागती मिसाल चेन्नई के विल्लीवक्कम की बेनो जेफाइन हैं। 25 साल की बेनो, देश की पहली पूरी तरह से दृष्टिहीन भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अफसर बनी हैं। फिलहाल बेनो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में बतौर प्रोबेशनरी ऑफिसर कार्यरत हैं।
अच्छी वक्ता हैं बेनो
बेनो खुद को स्पष्टवादी मानती हैं और अपने विचारों को बहुत ही सरल तरीके से सामने रखती हैं। बातचीत करने की इस शैली में उन्होंने बचपन से ही महारथ हासिल कर ली थी। अपना पहला एक्सटेम्पोर उन्होंने एलकेजी क्लास में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर दिया था और इस दिशा में वह तो बस एक शुरुआत थी। बेनो ने स्कूल से लेकर कॉलेज तक न जाने कितने डीबेट्स, एक्सटेम्पोर और स्पीच प्रतियोगिताओं में भाग लिया।
परिवार रहा हर दम साथ
कड़ी मेहनत के साथ-साथ बेनो अपनी सफलता का श्रेय अपने अपने माता-पिता, दोस्त, इंस्टीट्यूट्स के साथ साथ सभी टीचर्स को देती हैं। उनके पिता ल्यूक एंटोनी चार्ल्स (55 वर्षीय) इंडियन रेलवेज़ के कर्मचारी हैं और माता मैरी पद्मजा (49 वर्षीय) एक होम मेकर हैं। इन दोनों ने बचपन से लेकर अब तक बेनो को किसी भी पड़ाव पर अकेला नहीं छोड़ा। उनके पिता ऑफिस से जल्दी आकर उनको इंस्टीट्यूट छोड़ने और लेने जाते थे। आज भी नई किताबें पढ़ने के लिए एंकरेज करते हैं और उनको कभी खाली नहीं बैठने देते। वहीं माता उन्हें किताबें पढ़कर सुनाने के साथ-साथ हर किताब का एक-एक पेज स्कैन करती आई हैं। किताबें पढ़ने के लिए बेनो ‘जॉस, यानि जॉब एक्सेस विद स्पीच’ नाम का सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती हैं।
लंबा था इंतज़ार
यह जून 2014 की बात है, जब बेनो को खबर मिली थी कि उन्होंने यूपीएससी का एग्ज़ाम ऑल इंडिया की 343 रैंक के साथ पास किया है। उनको उम्मीद थी कि सालभर के अंदर उनको पोस्टिंग मिल जायेगी, लेकिन इस में काफी समय लग गया। यह वो समय था, जब उन्होंने धीरज रखना सीखा। वह यह भी बताती हैं कि यूपीएससी के इंटरव्यू के दौरान उन्हें महसूस हो गया था कि उनकी पोस्टिंग आईएफएस में हो सकती है क्योंकि पूछे गए अधिकतर सवाल फॉरेन पॉलिसीज़ पर और जियो स्ट्रैटेजिक थे।
वह उम्मीद करती हैं कि भारत की सर्वोच्च रैंक वाली सेवा में एक अधिकारी के रूप में उनका चयन न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि उनके जैसे अनेक ऐप्लीकेंट्स के लिए एक बढ़ावा है। वह कहती हैं कि समाज को स्वीकार करना होगा कि हम किसी भी तरह से कम नहीं हैं, केवल दूसरों से अलग हैं। हमारे पास समान विचार, प्रतिभायें और क्षमतायें हैं।
इमेज: इंडिया
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