डॉ. भीमराव अम्बेडकर का नाम सुनते ही हर किसी के मन में सबसे पहली बात जो आती है वो है हमारा संविधान। भारत के संविधान के जनक होने के साथ-साथ अम्बेडकर एक अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक भी थे। एक समय था जब बचपन में स्कूल से पीछा छुड़ाने के लिए घर से भाग कर मजदूरी करने का सोचा था, लेकिन भाग पाने में विफल होने पर उन्होंने ठान लिया कि वह अपने पैरों पर खड़े होने के लिए खूब पढ़ेंगे। फिर क्या था, इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनके आगे के जीवन में क्या हुआ, यह तो सभी जानते हैं। वह न केवल अपने पैरों पर खड़े हुए, बल्कि अपने जीवन से हर भारतीय को प्रेरणा और सीख दी।
आज उनसे जुड़ी ऐसी ही कहानी के बारे में जानिए, जिसमें उन्होंने समय की कीमत का महत्व समझाया।
प्रतिभाशाली अम्बेडकर को कोलंबिया जाने का अवसर मिला
डॉ. बी आर अम्बेडकर ने साल 1912 में बॉम्बे विश्वविद्धालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में बीए की डिग्री हासिल की और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। उनकी प्रतिभा देख कर बड़ौदा के गायकवाड़ ‘सायाजी राव गायकवाड़ तृतीय’ ने स्कॉलरशिप के तहत उनको स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय भेजा। उन्हें तीन साल तक पढ़ने के लिए बड़ौदा राज्य सरकार की तरफ से 11.50 डॉलर प्रतिमाह की छात्रवृत्ति प्रदान की गई। फिर क्या था, किताबें पढ़ने में रुचि रखने वाले अम्बेडकर ने विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी को जैसे अपना घर बना लिया था।
कोलंबिया की लाइब्रेरी का एक किस्सा
डॉं. भीमराव अम्बेडकर को किताबें पढ़ने में इतनी रुचि थी कि वह सुबह होते ही सबसे पहले लाइब्रेरी के बाहर जाकर खड़े हो जाते थे, इतना पहले की लाइब्रेरी का चपरासी भी ताला खोलने उनके बाद पहुंचता था। इतना ही नहीं, वह सारे दिन लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ते थे और सभी छात्रों के जाने के बाद तक रुकते थे। उन्होंने लाइब्रेरी के चपरासी से कई बार यह विनती भी की थी कि वह लाइब्रेरी को सबसे आखिर में बंद करें।
अम्बेडकर की कोलंबिया में यह आम दिनचर्या बन गई थी, वह सबसे पहले आते थे और सबसे बाद में जाते थे। ऐसा देख कर एक दिन चपरासी ने उनसे पूछ ही लिया था कि वह दूसरे छात्रों की तरह मौज-मस्ती क्यों नहीं करते और हर समय किताबों में क्यों व्यस्त रहते हैं। इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि, ‘अगर मैं बैठ गया, तो मेरे देशवासियों का ध्यान कौन रखेगा’। वह बार-बार कहते थे कि आगे बढ़ने का केवल एक ही तरीका है, पढ़ना और जितना ज़्यादा हो सके उतना पढ़ना चाहिए। इसलिए जब उन्हें कोलंबिया में रहने के लिए तीन साल की छात्रवृत्ति दी गई, तो उन्होंने अपने एक-एक पल का पढ़ने और आगे बढ़ने के लिए उपयोग किया, और जो देश के लिए उन्होंने किया वो तो अब इतिहास है।
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि आप अपने समय का मूल्य समझें, और जो कुछ भी करें पूरी निष्ठा के साथ करें।
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