“शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें।”
डॉ. राधाकृष्णन के यह विचार आज भी महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षा के ज़रिए समाज को बदलना संभव है। डॉ. राधाकृष्णन के न सिर्फ विचार बल्कि उनके पूरे जीवन से सीख मिलती है। आइये, डॉ राधाकृष्णन से जुड़ी कुछ ऐसे ही घटनाओं पर एक नज़र डालते हैं, जो हमारे जीवन पर पॉज़िटिव असर डालती है।
नियम और वादे के पक्के
डॉ. राधाकृष्णन अपने समय में 17 रुपये कमाते थे। इसी सैलरी से वे अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। उनके परिवार में पांच बेटियां और एक बेटा थे। उन पर पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी थी। परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने पैसे उधार पर लिए थे, लेकिन समय पर ब्याज के साथ उन पैसों को वह लौटा नहीं सके। इस कारण डॉ. राधाकृष्णन को अपना मेडल बेचना पड़ा था। घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए वह मेडल की परवाह ये बिना अपने अध्यापन में डटे रहे।
सच्चाई और इंसानियत
डॉ. राधाकृष्णन बेहद साधारण और विनम्र स्वभाव के थे। भारत का राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने अपनी सैलरी से केवल ढाई हजार रुपये लेते थे, जबकि बाकी सैलरी प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष को दान कर देते थे। इतना ही नहीं उन्होंने घोषणा कि सप्ताह में दो दिन कोई भी व्यक्ति उनसे बिना पूर्व अनुमति के मिल सकता है। इस तरह से उन्होंने राष्ट्रपति को आम लोगों के लिए भी खोल दिया था।
अच्छे शिक्षक की मिसाल
एक बार डॉक्टर राधाकृष्णन के मित्रों ने उनसे गुज़ारिश की कि वह उन्हें उनका जन्मदिवस मनाने की इजाज़त दें। डॉक्टर राधाकृष्णन का मानना था कि देश का भविष्य बच्चों के हाथों में है और उन्हें बेहतर इंसान बनाने में शिक्षकों का बड़ा योगदान है। उन्होंने अपने मित्रों से कहा कि उन्हें प्रसन्नता होगी अगर उनके जन्मदिन को शिक्षकों को याद करते हुए मनाया जाए। इसके बाद 1962 से हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
शांत स्वभाव और विनम्रता का संदेश
उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन जब राज्यसभा के सत्रों की अध्यक्षता करते थे तो बड़ी सादगी से शांत प्रतिक्रिया देते थे। उनके राज्यसभा के सत्र के समय जब कभी उपस्थित सदस्य किसी मुद्दे पर गुस्सा हो जाते थे और आपसी बहस शुरु होता तो डॉ. राधाकृष्णन उनको श्लोक सुनाकर समझाते और सभा को शांत करते थे। उनकी इस खूबी को सभा में काफी पसंद किया जाता था, क्योंकि श्लोक सुनने के बाद मन शांत हो जाता था। इससे सदस्य अपनी बात बिना किसी गुस्सा के कह पाते थे।
निडरता से अंग्रेज को जवाब
एक बार डॉ. राधाकृष्णन भारतीय दर्शन पर व्याख्यान देने के लिए इंग्लैंड गए थे। वहां बड़ी संख्या में लोग उनका भाषण सुनने आए थे, तभी एक अंग्रेज ने भारतियों का मजाक उड़ाते हुए राधाकृष्णन से पूछा कि क्या हिंदू नाम का कोई समाज या संस्कृति है? तुम्हारा एक सा रंग नहीं- कोई गोरा तो कोई काला, कोई धोती पहनता है तो कोई लुंगी, कोई कुर्ता तो कोई कमीज। देखो हम सभी अंग्रेज एक जैसे हैं- एक ही रंग और एक जैसा पहनावा। राधाकृष्णन ने उस अंग्रेज को बड़ी सरलता से सबक सिखाते हुए जवाब दिया कि घोड़े अलग-अलग रूप-रंग के होते हैं, पर गधे एक जैसे होते हैं। अलग- अलग रंग और विविधता विकास के लक्षण हैं। हाजिर जवाब सुनते ही वह अंग्रेज चुप रह गया और अपने किये पर पछताने लगा।
अपने जीवन को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसा सरल और निडर जीवन आप भी अपना सकते हैं, केवल उनके सरल और शांत स्वभाव को अपनाने की कोशिश करिये।
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