वैसे तो किसी से बात करना मुझे ज़्यादा पसंद नहीं, लेकिन अक्सर जब भी पड़ोस की
रितु लिफ्ट के इंतज़ार में खड़ी होती तो उसे देखकर बड़ा ही अजीब लगता। न जाने
क्यों मुझे उसके चेहरे पर एक अजीब सी उदासी महसूस होती है। शायद यही कारण था कि न
चाहते हुए भी एक दिन लिफ्ट में मैंने उससे
बात की और बस पहली ही मुलाकात में उसने मुझे अपने घर आने का निमंत्रण दे डाला।
खैर, इतवार को खाली बैठी थी, तो सोचा क्यों न रितु के घर ही हो आती हूं और उसका
दरवाज़ा खुला देख पैर उसके घर की दिशा में मुड़ गए। मुझे देखते ही उसने मुस्कुराते
हुए मेरा स्वागत किया और हम दोनों सोफे पर
पसरकर गई।
उसका घर देखकर लग रहा था कि रितु बहुत ज़्यादा सफाई की शौकीन नहीं है और फिर बातों-बातों में उसने बताया कि उसका कोई काम करने का मन नहीं करता। सारा दिन मन चिड़चिड़ा रहता है और बहुत बार बिना वजह अपने बेटे या पति पर गुस्सा भी जाती है। बातों से पता चला कि उसे पेंटिंग का बहुत शौक है, लेकिन अब वह भी करने का मन नहीं करता।
दरअसल, पति सुबह ऑफिस को निकल जाते हैं, बेटा अपने दोस्तों, पढ़ाई और ट्यूशन में मगन है। ऐसे में रितु सारा दिन घर में अकेले रहती है और अब धीरे-धीरे अकेलेपन का असर उसकी मानसिक सेहत पर भी पड़ने लगा है।
घरेलू महिलाओं की स्थिति
यह सिर्फ बात रितु की नहीं है, अगर आप अपने आस-पड़ोस में देखेंगे, तो आपको कई घरेलू महिलाएं ऐसी मिल जाएंगी, जो चिड़चिड़ेपन, अकेलेपन, आलसीपन या अपना जीवन को दिशाहीन मानती है। अगर रितु की बात की जाए, तो उसके पति के अनुसार रितु को सिर्फ घर ही तो संभालना है, ये कोई काम थोड़े ही है। वैसे देखा जाए तो भारतीय घरों में घरेलू महिलाओं के लिए अक्सर परिवार के सदस्य यही कहते हैं, कि घर से बाहर निकलकर थोड़े ही काम करना है, इन्हें क्या स्ट्रैस है।
लेकिन होता इसका उलट है, घर से बाहर न निकलना, लोगों से मेलजोल न होना, घर के काम करने की कोई तारीफ न मिलना, अकेले सारा दिन घर पर बैठे रहने से महिलाओं की मानसिक सेहत पर असर पड़ता है। जो महिलाएं सोशल मीडिया से वाकिफ नहीं है, उनका सारा दिन टीवी के चैनल बदलने में निकल जाता है, जो उनकी सेहत के लिए बहुत अच्छा नहीं है।
कोरोना ने बदले घरेलू महिलाओं के हालात
घरेलू महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक होना बहुत ज़रूरी है। महिला के साथ-साथ परिवार की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह घर की महिलाओं के बदलते व्यवहार के प्रति सजग रहे। कई बार नज़रअंदाज़ी काफी भारी पड़ जाती है, क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य का असर न सिर्फ सोचने- समझने या कहे कि व्यवहार में पड़ता है, बल्कि शारीरिक बीमारियां होने का खतरा भी बढ़ सकता है।
खासतौर से कोरोना के इस मुश्किल समय में घरेलू महिलाओं पर काम का बोझ काफी बढ़ गया है, उन्हें भी रोज़मर्रा की खबरे प्रभावित कर रही है, ऐसे में उनके साथ समय बिताना और उनसे बात करना बहुत ज़रूरी है। यूएन वुमन के साल 2020 में जारी वैश्विक डाटा के मुताबिक, कोरोना वायरस महामारी के कारण महिलाओं पर देखभाल का भार बढ़ा है, इसके चलते फिर से 1950 के समय की लैंगिक रूढ़ियों के फिर से कायम होने का खतरा पैदा हो गया है।
देखभाल की ज़रूरत
घर की महिला को सिर्फ घर के काम तक ही सीमित न रखें। उन्हें योग, मेडिटेशन या
फिर कसरत करने के लिए प्रेरित करे। आजकल कोरोना के समय में कई ऑनलाइन क्लासेज़ है,
जो योग, कसरत और मेडिटेशन की ट्रेनिंग देती है।
डांस, संगीत या किसी कला का शौक है, तो उन्हें उसमें कुछ करने की सलाह दें। ज़रूरी
नहीं, कि इसे कमर्शियल स्तर पर ही करना है, घर को सजाने या अपना समय बिताने के लिए
भी अपनी मनपसंद कला से जुड़ा जा सकता है। इससे मन को बड़ा सुकून मिलता है।
घर के काम करना सिर्फ महिलाओं का काम नहीं है, उनकी काम में मदद करना या तारीफ करना भी उनकी मुस्कुराहट का कारण बन सकता है।
सबसे ज़रूरी बात अगर उनके व्यवहार में बदलाव लगे, तो उनसे बात करिए और अगर इसमें विशेषज्ञ की मदद चाहिए हो, तो लेने से न हिचकिचाएं। आखिर मामला घर की सबसे अहम सदस्य का है, जिसके आधार पर घर की नींव टिकी है।
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