हवा न हमें सिर्फ जीने के लिए ऑक्सीजन देती है, बल्कि शुद्ध हवा कई रोगों को जड़ से खत्म करने में भी सहायक है। वायु उन पांच तत्वों में से एक है, जिससे यह शरीर और मन बना है।
वायु मुद्रा क्या है?
वायु यानी कि हवा और यह मुद्रा शरीर के अंदर हवा के सही प्रवाह को संचालित करने में मदद करती है। आयुर्वेद में अंगूठे को अग्नि की संज्ञा दी गई है। वहीं तर्जनी अंगुली का संबंध वायु से है। इन दोनों को मिलाकर जो क्रिया की जाती है, उसे को वायु मुद्रा कहते हैं। वायु मुद्रा आयुर्वेद के वात दोष से जुड़ा होता है। यही कारण है कि शरीर में बिगड़े हुए वात के सुधार के लिए वायु मुद्रा का अभ्यास किया जाता है।
आयुर्वेद में वायु मुद्रा का महत्व
वायु से जुड़े रोग जैसेकि गैस, सूजन, पेट फूलना या अन्य संबंधित गैस्ट्रिक संबंधित परेशानी है, तो वायु मुद्रा इसे नियंत्रित करने का काम करती है। इसके अलावा वायु चंचलता की भी निशानी है और वायु की विकृति मन की चंचलता को बढ़ाती है। इसलिए मन की चंचलता और अस्थिरता को स्थिर रखने के लिए व्यक्ति को वायु मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए।
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वायु मुद्रा के फायदे
- पेट संबंधी समस्या जैसे पेट फूलना, अपच, एसिडिटी और गैस्ट्रिक समस्याओं से राहत दिलाती है।
- रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाती है।
- शरीर सुन्न पड़ने के किसी भी स्थिति से बचने के लिए वायु मुद्रा बहुत ही फायदेमंद माना जाता है।
- वायु मुद्रा से वात रोग और गठिया जैसी समस्याओं से जल्द से जल्द निजात पाया जा सकता है।
- मन की चंचलता को दूर कर मन शांत करती है।
- इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से सुषुम्ना नाड़ी में प्राण वायु का संचार होने लगता है जिससे चक्रों का जागरण होता है।
वायु मुद्रा करने की विधि
- पद्मासन, सुखासन और वज्रासन – आप किसी भी मुद्रा में बैठ सकते हैं।
- अब अपनी तर्जनी अंगुली को मोड़ें और अंगूठे से दबाएं।
- बाकी तीनों उंगलियों को जितना संभव हो उतना सीधा रखें।
- आंखें बंद करें गहरी सांसे लें।
मुद्रा करने से पहले कुछ सावधानियां
- वायु मुद्रा करते समय ढीले कपड़े पहने।
- खुला स्थान ही चुने।
- वायु मुद्रा करते समय सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को दूर रखें या बंद कर दे।
- अपनी तर्जनी को झुकाने की कोशिश न करे।
- इसके अलावा, अपनी उंगलियों पर ज़्यादा दबाव न डाले।
- अगर आप बैठकर अपनी पीठ को सीधा रख सकते हैं तो वायु मुद्रा से बहुत लाभ मिलता है।
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