आसमान में आंख लगाए क्यों बैठा है यारा
तेरे अंदर ही चमकेगा एक दिन तेरा तारा।।
वैसे तो ये लाइनें मनोज मुंतशिर की है लेकिन इन दो लाइनों में जो कहानी है वह हवलदार सोमन राणा जैसे अनेक खिलाड़ियों की है। क्योंकि माना जाता है खेलों की दुनिया में अगर शरीर का कोई एक अंग भी काम करना बंद कर दे, तो करियर का अंत मान लिया जाता है। लेकिन यहां सोमन राणा जैसे खिलाड़ी भी हैं जिन्होंने अपना एक पैर खोने के बाद भी हार नहीं मानी और अपने जीवन की दूसरी पारी का आगाज़ किया और आज पैरा एथलीट की दुनिया में शॉट पुट में अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं।
सोमन राणा का सफर है खास
शिलांग से ताल्लुक रखने वाले राणा आज 38 साल के हैं। साल दिसम्बर 2006 में आतंकवादियों के द्वारा लगाई गई एक माइंस विस्फोट में सोमन अपना दायां पैर खो दिया था। लेकिन 2017 में एक बार फिर पैरा एथलीट विभाग से करियर की शुरुआत की। राणा अब तक ये 28 अंतरराष्ट्रीय और 60 राष्ट्रीय पदक जीत चुके हैं।
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दर्ज कर चुके हैं अपनी भागेदारी
राणा अब तक एशियन पैरा गेम्स, वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स, वर्ल्ड पैरा चैंपियनशिप, वर्ल्डग्रैंड इवेंट में हिस्सा ले चुके हैं।
ट्यूनिस वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स ग्रैंड प्रिक्स में गोल्ड मेडल और 19वें नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी दो गोल्ड और एक सिल्वर मेडल अपने नाम कर चुके हैं। अब सोमन राणा एफ 57 कैटेगरी के तहत टोक्यो में होने वाले पैरालंपिक में भाग लेने जा रहे हैं। शॉटपुट में राणा इस बार गोल्ड मेडल के प्रबल दावेदार हैं।
प्रेरणास्रोत हैं राणा
कभी आर्मी के एक कर्नल से खेल की प्रेरणा लेने वाले राणा आज देश के अनेक दिव्यांगो, युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आज राणा एफ57 कैटेगरी में शॉट पुट के विश्व के दूसरे नंबर के वरीयता प्राप्त खिलाड़ी माने जाते हैं।
सोमन राणा जैसे सिपाही सरहद पर देश को सेवा करते हैं और अगर सरहद पर न रह पाए, तो फिर देश के का नाम रोशन करने में पीछे नहीं रहते। समाज में हमेशा से माना जाता रहा है कि दिव्यांग कमज़ोर होते हैं, ज़्यादा बड़े काम नहीं कर सकते लेकिन सच्चाई तो ये है कि ऐसे लोग कुछ भी कर सकते हैं। सोमन राणा जैसे लोग इसका जीता जागता उदाहरण है।
इमेज : पीआईबी
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