अगर आपके आत्मविश्वास में कोई कमी नही होती और आप आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते हैं तो यह सिर्फ आपके लिए नहीं बल्कि हमारे देश के लिए नही एक प्रेणना बन जाती है. ऐसे ही कुछ कहानी हम आपको आपको बताने जा रहे हैं…
10 साल की सारा ने बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड
राजस्थान के भीलवाड़ा की 10 साल की सारा छिप्पा ने एक अनोखा वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। सारा को दुनिया के 196 देशों के आधिकारिक नाम के साथ उन देशों की करेंसी भी याद है। राजस्थान की सारा अपने परिवार के साथ दुबई में रहती हैं। इससे पहले जो वर्ल्ड रिकॉर्ड था, उसमें सिर्फ देश और उनकी राजधानियों के नाम थे लेकिन सारा ने उन देशों की करेंसी के भी नाम साथ में बोलकर नया रिकॉर्ड बना दिया है। यह रिकॉर्ड एक वर्चुअल लाइव इवेंट में 2 मई को यूएई में भारतीय समय के अनुसार 6 बजे फेसबुक, यूट्यूब पर दिखाया गया था। सारा दुनिया में पहली ऐसी बच्ची बनी हैं, जिन्होंने इस कैटेगरी में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। इसके अलावा वह एक उभरती क्रिकेटर हैं और शाइन विद सारा’ नाम के अपने यूट्यूब चैनल पर, उनकी एक सीरीज़ चल रही है जिसका नाम ‘इनक्रेडिबल इंडिया’ है, जहां वह एक राज्य को चुनकर उससे जुड़े तथ्य देती हैं।
दिव्यांग गिरिजा जलक्षत्री ने पेश की हिम्मत की मिसाल
कोरोना की मुश्किल घड़ी में लोग अपने अपने तरीके से मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी ही एक कहानी है छत्तीसगढ़ की जहाँ एक दिव्यांग महिला ने घर पर बैठने के बजाय, लोगों की मदद करने की ठानी। छत्तीसगढ़ के रायपुर की 35 साल की गिरिजा जलक्षत्री, लगभग 50 फीसदी दिव्यांग हैं। गिरिजा फ्रंटलाइन कार्यकर्ता नहीं है, जिसका अर्थ है कि वह घर पर सुरक्षित और आराम से बैठ सकती है। लेकिन गिरिजा लोगों की मदद करना चाहती है। 13 अप्रैल को उन्होंने एक इनडोर स्टेडियम में काम करना शुरू किया, जो अस्पताल के बेड की बड़ी कमी के कारण COVID केंद्र में बदला गया था। केंद्र में, गिरिजा को सभी का पंजीकरण करने का काम सौंपा गया था। खबरों के अनुसार, उनके द्वारा पहले दिन ही, लगभग 250 मरीजों को भर्ती किया गया था। पीपीई किट पहने हुए, वह मरीजों की देखभाल करती हैं, उनके ऑक्सीजन और नाड़ी के लेवल की जांच करती हैं। गिरिजा के इस जज़्बे को हम दिल से सलाम करते हैं।
अमेरिका से देश की मदद के लिए वापस आये डॉक्टर हरमनदीप सिंह
कोरोना महामारी की लड़ाई में सबसे बड़े योद्धा हमारे डॉक्टर हैं, जो पिछले डेढ़ साल से लगातार इस वायरस का डटकर मुकाबला कर रहे हैं । देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर चल रही है। ऐसे में अमेरिका में काम कर रहे भारतीय मूल के डॉक्टर हरमनदीप सिंह बोपराई अपने वतन वापस लौट आए हैं। उन्होंने अमेरिका में नौकरी छोड़ दी है और इन दिनों वो अपने घर अमृतसर में कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं। 34 साल के भारतीय-अमेरिकी सिख डॉक्टर ने अमृतसर के सरकारी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया है। वह 2011 में न्यूयॉर्क गए थे और वहां वह एनेस्थिसियोलॉजी और क्रिटिकल केयर के विशेषज्ञ हैं। एक अप्रैल को न्यूयॉर्क से अमृतसर लौटने के बाद उन्होंने यहां कई डॉक्टरों और नर्सों को प्रशिक्षण भी दिया। उनका कहना है कि जब तक भारत में स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, तब तक वह यहां के लोगों की मदद करना जारी रखेंगे। हरमनदीप का यह सहयोग काबिले तारीफ है।
माँ बेटे की जोड़ी ने पेश की मिसाल
कोरोना काल में लोग ज़रूरतमंदों की निस्वार्थ भाव से सेवा करने में जुटे हैं। ऐसे ही मुम्बई के कांदिवली में रहने वाले मां-बेटे की कहानी है, जो गरीबों को मुफ्त खाना दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग उनकी कहानी खूब शेयर कर रहे हैं। 1998 में एक कार दुर्घटना में अपने पिता को खोने वाले हर्ष ने मुश्किल परिस्थितियों का सामना करते हुए ज़िन्दगी का डटकर सामना किया। मां ने हर्ष को अकेले ही बड़ा किया है। पिछले साल, जब कोरोना महामारी में लॉकडाउन हुआ, तो दोनों ने कोरोना से जूझ रहे लोगों को मुफ्त खाना पहुंचाया और इस साल जब कोविड-19 की दूसरी लहर भारत में आई, तो हर्ष और उनकी माँ एक बार फिर से वह ज़रूरतमंदों की मदद करने लगे। अभी तक वह करीब 22000 से ज़्यादा फूड पैकेट बांट चुके हैं। जब लोग उनसे पूछते हैं कि वे अजनबियों के लिए अपनी जान क्यों जोखिम में डाल रहे हैं, तो हर्ष का कहना था कि उन्होंने उस समय के बारे में सोचा जब अजनबियों ने उनकी और उनकी मां की मदद की थी।
मुंबई में डॉक्टर जोड़ी ने की ‘मेड्स फॉर मोर’ पहल
मुंबई में डॉक्टर जोड़ी ने ‘मेड्स फॉर मोर’ पहल शुरु की है, जिसमें ज़रूरतमंद मरीजों को दवाइयां दी जा रही है। डॉ. मार्कस रन्ने और उनकी पत्नी डॉ. रैना उन लोगों से दवाइयां इकट्ठा कर रहे हैं, जो कोरोना से ठीक हो चुके हैं। इकट्ठा हुई उन दवाइयों को वे ज़रूरतमंद मरीज़ों को उपलब्ध कराते हैं। यह पहल उन्होंने 1 मई 2021 की थी और केवल 10 दिनों में उन्होंने 20 किलोग्राम दवाइयां इकट्ठा कर ली। इन दवाओं को भारतभर के ग्रामीण जिलों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में दान किया जा रहा, जहां इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। ‘मेड्स फॉर मोर’ की पहल में सभी तरह की दवाइयों जैसे एंटीबायोटिक्स, फैबिफ्लू, दर्द से राहत देने वाली दवाएं, स्टेरॉयड, इनहेलर, विटामिन को इकट्ठा किया जा रहा है। इसके अलावा वे पल्स ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर जैसे बैसिक उपकरण भी एकत्रित कर रहे हैं। इस पहल के बारे में पढ़कर कई लोग आगे आ रहे हैं। इस नेक पहल से दवाइयां भी खराब नहीं जाएंगी और साथ ही गरीब लोगों को ज़रुरी दवाइयां भी मिल जाएंगी।
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