दुख को दूर करने के लिए ज़रूरी है विचारों को बदलना– गौतम बुद्ध

दुख को दूर करने के लिए ज़रूरी है विचारों को बदलना– गौतम बुद्ध

हमेशा अधिक पाने की लालसा है दुखों का कारण
FacebookTwitterLinkedInCopy Link

गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश में जिन चार आर्य सत्य की बात की है उसमें पहला तो ‘दुख’ है और दूसरा है ‘दुख-समुदय’ अर्थात दुखों का कारण। गौतम बुद्ध ने न सिर्फ यह बताया कि मनुष्य जीवन दुखों से भरा है, बल्कि इन दुखों का कारण भी बताया है। ये कारण बाहरी की बजाय आंतरिक है जो हमारी इच्छाओं और विचारों से जुड़े हुए हैं।

कारणों को पहचानें

गौतम बुद्ध के आर्य सत्य में जिस ‘दुख-समुदय’ की बात कही गई है, उसका मतलब होता है दुख का उदय यानी दुख का कारण। इंसान दुखी है, लेकिन क्यों? कोई भी चीज़ बिना कारण के नहीं होती तो दुख भी अकारण नहीं हो सकता। बुद्ध के अनुसार दुख का सबसे बड़ा कारण है लोभ और लालसा जो असीमित है। इसे ही ‘तृष्णा’ भी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है प्यास। यह प्यास जीवन में हमेशा और पाने की है, जो कभी नहीं खत्म होती और यही इंसान को दुखी करती है।

सुख और दुख सिक्के के दो पहलू है । इमेज : फाइल इमेज

कहीं ‘मैं’ तो नहीं दुख कारण

गौतम बुद्ध का कथन वर्तमान समय में भी बिल्कुल सार्थक है। जो मिला है उससे हमें संतुष्टि नहीं मिलती और हमेशा ज्यादा पाने की चाहत रहती है। आज अच्छी नौकरी मिल गई तो कुछ दिन के लिए खुशी होगा, मगर उसके बाद वेतन न बढ़ने या प्रमोशन न मिल पाने के कारण फिर दुखी हो जाते हैं। यदि प्रमोशन भी मिल गया तो और ऊंचे पद पर जाने की ख्वाहिश होती है और ऐसी ख्वाहिशे अंतहीन है, तभी तो हमारे दुखों का भी कोई अंत नहीं है, क्योंकि हमारी इच्छाओं और लालसाओं की कोई सीमा नहीं है।

अक्सर लोग कहते हैं कि मैं फलां इंसान या परिस्थितियों की वजह से दुखी हूं, लेकिन बुद्ध का मानना है कि दुख का असली कारण तो इंसान की सोच और विचार है। क्या कभी आपने सोचा है कि आपके दुखों का कारण ‘मैं’ यानी आप खुद हैं। मेरे दोस्त को मुझसे अच्छी नौकरी मिल गई, पड़ोसी विदेश चला गया, किसी की लॉटरी लग गई जैसी बातें सोचकर अक्सर आप दुखी होते हैं, लेकिन क्या इसमें दूसरों का दोष है? नहीं, उनके बारे में सोचकर आप बेकार ही दुखी होते हैं यदि आप इस बारे में सोचना छोड़ देंगे तो दुख नहीं होता यानी कुल मिलाकर आपके अधिकांश दुखों की वजह आपकी सोच और विचार ही है। जो व्यक्ति सकारात्मक और दूसरों के बारे में अच्छा सोचता है वह दुखी नहीं होता।

कैसे बदलें अपने विचार?

  • सकारात्मक सोच के लिए लोभ, ईर्ष्या, घृणा जैसे भाव से दूर रहना ज़रूरी है।
  • सबके प्रति मन में प्रेमभाव रखें।
  • रोजाना माइंडफुल मेडिटेशन करें, इससे अनावश्यक विचारों पर काबू रख पाएंगे और मन शांत रहेगा।
  • नकारात्मक बात करने वालों से दूर रहें।
  • दूसरों की बजाय अपने जीवन पर ध्यान दें और उसे बेहतर बनाने की कोशिश करें। इसके लिए अच्छी किताबें पढ़ें।
  • मेडिटेशन के साथ ही थेरेपी भी नकारात्मक विचारों को बदलने में मदद करती है। आप कॉग्नीटिव बिहेवियरलथेरेपी, साइकोथेरेपी आदि की मदद ले सकते हैं।
  • जिन बातों से दुखी है उसकी लिस्ट बना लें और खुद विश्लेषण करें कि क्या वाकई ये आपके दुखों का कारण है या आपने बस ऐसा मान लिया है?

सुख और दुख सिक्के के दो पहलुओं की तरह है होते हैं, जिसे बदला नहीं जा सकता है, मगर कई बार बेकार की बातें सोचकर हम दुखी हो जाते हैं। ऐसे में दुख के कारणों की पहचान करने से उसे दूर करने में मदद मिलेगी।

देखिए इस वीडियो में, कैसे गौतम बुद्ध ने सिखाया कि अच्छे विचार आप पढ़ते-सुनते हैं, उसे कैसे अपनाया जा सकता है।


और भी पढ़िये : कोरोना काल में जा रहे हैं ऑफिस, तो वायरस से बचने के लिए रखिए 5 बातों का ख्याल

अब आप हमारे साथ फेसबुक, इंस्टाग्राम और  टेलीग्राम पर भी जुड़िये।

Your best version of YOU is just a click away.

Download now!

Scan and download the app

Get To Know Our Masters

Let industry experts and world-renowned masters guide you towards a meditation and yoga practice that will change your life.

Begin your Journey with ThinkRight

  • Learn From Masters

  • Sound Library

  • Journal

  • Courses

ThinkRight empowers you with calming tools, techniques, and affirmations that compel you to begin your day with a mindful mindset. The right thought flows into the right action and behaviour, changing your perspective towards life.   

call-btn

Have a question?

+91 808080 9339
msg-btn

Contact us at

support@thinkright.me

Download The App

Connect with us

+91 808080 9339

Write to us at

Congratulations!
You are one step closer to a happy workplace.
We will be in touch shortly.