जमशेदपुर का अनोखा कैफे – कुक से लेकर वेटर तक सभी दिव्यांग

जमशेदपुर का अनोखा कैफे – कुक से लेकर वेटर तक सभी दिव्यांग

कैफे ‘ला ग्रेविटी’ में काम करने वाले सभी कर्मचारी सुन नहीं सकते।
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हमारे आस-पास बहुत सारे ऐसे दिव्यांगजन होते हैं, जो अपने हुनर से लोगों को प्रेरणा देते हैं। हमारे समाज में कई ऐसे दिव्यांग है, जिन्होंने उन ऊंचाइयों को छुआ है, जिनकी कल्पना एक आम इंसान करता है। अगर हम अपने आसपास भी देखें, तो कई दिव्यांग है, जो न सिर्फ आत्मनिर्भर है बल्कि अपने परिवार की देखभाल भी करते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे दिव्यांग लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं, जो न सिर्फ अपने दम पर जिंदगी जीते हैं बल्कि लोगों के लिए एक मिसाल भी हैं।

कैफे ला ग्रेविटी

झारखंड के जमशेदपुर शहर में एक कैफे है, जिसका नाम है ला ग्रेविटी। इन दिनों यह कैफे देशभर में लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। अब आप सोच रहे होंगे कि इस कैफे में ऐसा क्या विशेष है? तो हम आपको बता दें कि इस कैफे का संचालन करने वाले सभी कर्मचारी श्रवण बाधित यानि दिव्यांग हैं। इस कैफे के मालिक ने एक खास पहल करते हुए 10 ऐसे युवाओं को काम पर रखा है, जिनकी सुनने की क्षमता कमज़ोर है।

ला ग्रेविटी कैफे के कर्मचारी

रोचक है कैफे शुरू करने की कहानी

ये सभी कर्मचारी कैफे के सामान्य कामों से लेकर खाना आदि बनाने का काम करते हैं। कैफे के संस्थापक का नाम आशीष दुग्गड़ है। साल 2015 तक वह एक स्टील कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर नौकरी कर रहे थे। हालांकि उनके जीवन का उद्देश्य कुछ और ही था। इसके बाद आशीष ने अपनी हाई सैलरी वाली इस नौकरी को छोड़कर कैफे शुरू किया।

ला ग्रेविटी कैफे के कर्मचारी

श्रवण बाधित लड़की ने दी प्रेरणा

अपनी बेहतरीन नौकरी छोड़ने के बाद सबसे सबसे पहले आशीष ने चाय की दुकान खोली। इस चाय की दुकान में एक भाई-बहन की जोड़ी आई थी। आशीष को पता चला कि लड़की की सुनने की क्षमता कमजोर है। लड़की ने आशीष को बताया कि ना सुन पाने की वजह से उसे नौकरी मिलने में परेशानी होती है। इस लड़की से हुई मुलाकात ने आशीष को एक नई दिशा दी।

इसके बाद उन्होंने ऐसा कैफे खोलने का निर्णय लिया, जिसमें सभी दिव्यांग कर्मचारी हों। शुरुआती दिनों में आशीष के साथ काम कर रहे 11 कर्मचारियों में से 10 श्रवण बाधित थे। अभी कैफे में काम करने वाले सभी कर्मचारी श्रवण बाधित हैं। बता दें कि शुरुआत में आशीष को इन कर्मचारियों के साथ बातचीत करने में थोड़ी परेशानी हो रही थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने सांकेतिक भाषा को सीख लिया।

ला ग्रेविटी कैफे

इस तरह की पहल वाक्या में ही काबिले तारीफ है और उम्मीद है कि ऐसी कई और मुहिम भी शुरू होंगी, जो समाज के सभी तबके के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की प्रेरणा देगी।

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