कोमल हैं, कमज़ोर नहीं

कोमल हैं, कमज़ोर नहीं

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एक महिला कभी भी अपने बच्चों को अनपढ़ नहीं देखना चाहती और बच्चों को पढ़ाने की चाहत और भी मज़बूत हो जाती है, अगर वह खुद पढ़ी-लिखी हो। एक तरफ जहां सारी दुनिया की महिलाएं पुरूषों से कदम मिला कर चल रहीं हैं, या फिर कहा जाए कि उनसे एक कदम आगे चल रहीं हैं, क्योंकि काम के साथ, घर और बच्चों कि ज़िम्मेदारी औरतों की ज्यादा मानी जाती है। वहीं दूसरी ओर ऐसी भी महिलाएं हैं, जिन्हें आज भी पढ़ने नहीं दिया जाता। उन्हें पुरानी सामाजिक रीति-रिवाज़ों और धार्मिक प्रथाओं के बोझ के नीचे दबाकर कमज़ोर घोषित कर दिया जाता है, क्योंकि वह जानते हैं कि अगर एक महिला शिक्षित हो गई, तो उसका शोषण नहीं किया जा सकेगा।

महिलाओं को सशक्त करने की मुहिम

सारे देश में महिलाओं को सशक्त करने की मुहिम छिड़ी हुई है, क्योंकि महिलाओं के सशक्त होने से उनके परिवार को ताकत मिलती है और पूरा परिवार देश की ताकत बन जाता है। कई संस्थान महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं, जिनमें से एक ‘रीड इंडिया’ है। रीड इंडिया का मानना है कि ग्रामीण समुदायों की महिलाओं को सशक्त करने से पूरी दुनिया कि गरीबी में कमी आएगी, इसलिए वह इस दिशा की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं।

कैसे काम करता है रीड इंडिया

रीड इंडिया ने साल 2016 में कर्नाटक से ‘रूरल कम्यूनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम’ की शुरुआत की, जिसके तहत ग्रामीण जगहों पर कम्यूनिटी लाइब्रेरी और रिसोर्स सेंटर्स सेटअप किए गए। लगभग दो साल के अंदर इस प्रोग्राम ने छह राज्यों में अपनी पकड़ बना ली है, जहां महिलाएं सिलाई, कंप्यूटर चलाना, पढ़ना-लिखना और लोकल क्राफ्ट सीख रही हैं । इस कदम के ज़रिए महिलाओं में आत्मविश्वास आया है और वह अपनी ताकत को पहचानने लगी हैं। कोर्स खत्म होने के बाद हर महिला को एक सर्टिफिकेट मिलता है, जिसकी मदद से वह नौकरी भी कर सकती हैं।

जुड़ने लगे परिवार

पहले आर्थिक तंगी के कारण परिवार के सदस्यों को अलग होना पड़ता था। जिन घरों में केवल पुरुष कमाते थे, उन्हें घर छोड़ कर दूर जाना पड़ता था। वहीं कई महिलाओं को शहर जाकर घरों में बरतन और साफ-सफाई का काम करना पड़ता था। कुछ ऐसे भी घर थे, जहां सिर्फ एक आदमी की कमाई से घर चलता था और इसकी वजह से बच्चों को फ्री होस्टल में छोड़ना पड़ता था। आज महिलाओं के सशक्त होने से घर से दूर जाकर काम करने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है और कई बच्चे फ्री होस्टल से अपने घर वापस आ गए हैं।

जरा सोचिए कि अगर एक संस्थान के काम से लोगों के जीवन में इतना बड़ा फर्क आ सकता है, तो अगर समाज के वर्ग आपस में जुड़कर काम करें, तो हमारा देश दुनिया के सशक्त देशों में शुमार हो जाएगा। जरूरी नहीं कि किसी की मदद करने के लिए आपको संस्थान चलाना पड़े। आप किसी भी संस्थान में खुद वॉलंटियर बनकर भी मदद कर सकते हैं और यदि शुरुआत करनी है तो वीकएंड्स पर आस-पास के ज़रूरतमंद बच्चों को सशक्त करने में कोई बुराई नहीं हैं।

और भी पढ़े: मेड इन इंडिया

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