वेणु बापू- पहले वैज्ञानिक जिनके नाम से है धूमकेतु

वेणु बापू- पहले वैज्ञानिक जिनके नाम से है धूमकेतु

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भारतीय एस्ट्रोनॉमर (खगोलविद) और खगोल विज्ञान की चर्चा वेणु बापू के बिना अधूरी है। अंतरिक्ष के रहस्यों को उजागर करने में अहम भूमिका निभाने वाले वेणु बापू पहले ऐसे खलोलविद थे, जिन्होंने धूमकेतु की खोज की।

अंतरिक्ष में दिलचस्पी

वेणु बापू का पूरा नाम मनाली कालात वेणु बापू था। उनका जन्म 10 अगस्त 1927 को हुआ था। इनके पिता मनाली काकुझी हैदराबाद के निजामिया वेधशाला (ऑब्ज़र्वेटरी) में खगोलविद थे। ज़ाहिर ही यही वजह है कि वेणु बापू की अंतरिक्ष में दिलचस्पी बचपन से ही थी। मद्रास यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री लेने के बाद पीएचडी करने वह हावर्ड यूनिवर्सिटी चले गये। उन्हें पीएचडी के लिये भारत सरकार की ओर से स्कॉलरशिप मिली थी।

नये कीर्तिमान

हॉवर्ड में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने ऐसा कीर्तिमान बनाया, जिसके लिये पूरी दुनिया उन्हें याद करती है। उन्होंने अपने सहयोगी गॉर्डन न्यूकिर्क और प्रोफेसर बोक साथ मिलकर 1949 में एक नए धूमकेतू की खोज की और इसका नाम रखा गया ‘बापू-बोक-न्यूकिर्क’। किसी भारतीय के नाम से जुड़ा यह पहला धूमकेतु था। इस खोज के लिए वेणु बापू को उसी साल पैसिफिक की एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी द्वारा डोनो कॉमेट मेडल से सम्मानित किया गया था। पीएचडी पूरी करने के बाद वह पालोमर वेधशाला  में रहे और वहीं अपना प्रसिद्द ‘बापू-विल्सन’ सिद्धांत दिया।

वेणु बापू- पहले वैज्ञानिक जिनके नाम से है धूमकेतु
अंतरिक्ष की रहस्यमयी दुनिया के खोजी  | इमेज : फाइल

खगोल विज्ञान में योगदान

1960 में भारत लौटने के बाद बापू को ‘कोडेकनाल ऑब्ज़रवेट्री’ का डायरेक्टर बनाया गया। वह यहां के सबसे यंग डायरेक्टर थे। 1971 में उन्होंने तमिलनाडु में ‘कवलुर वेधशाला’ बनवाया। बाद में कवलुर और कोडेकनाल वेधशाला को मिलाकर एक स्वायत्त संस्थान- ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स’ बनाया गया। उनकी पहल का ही नतीजा था कि साल 2000 तक भारत में कई अच्छी वेधशालाएं बन गई।

सम्मान

भारत में खगोलविज्ञान को वैज्ञानिकों को नई दिशा देने और उनका स्तर सुधारने में बापू ने अहम भूमिका निभाई। उनके अभूतपूर्व काम के लिए 1981 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें कई वैज्ञानिक उपाधियां और सम्मान भी मिले। वह ‘इंटरनेशनल एस्ट्रोनोमिक यूनियन’ के अध्यक्ष भी बने थे। इस पद पर रहने वाले वह इकलौते भारतीय हैं।

अंतिम सफर

अगस्त 1982 अध्यक्ष के रूप में इंटरेनशल एट्रोनोमिक यूनियन की महासभा को संबोधित करने के लिए ग्रीस जाते समय म्यूनिख में ही उनकी सेहत खराब हो गई और उन्होंने अंतिम सांस ली।

इमेज : द वायर

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