अपने आसपास टूटी-फूटी सड़कें और गंदी नालियां देखकर अक्सर हम प्रशासन और नेताओं को कोसते हैं, क्योंकि इसे ठीक रखना उनकी ज़िम्मेदारी है, मगर असम के एक शख्स ने अपने गांव की खस्ताहाल सड़कों को ठीक करने के लिए प्रशासन की पहल का इंतज़ार नहीं किया, बल्कि अकेले अपने दम पर सड़क बनाकर गांव की काया ही पलट दी।
पांच साल की मेहनत
असम के डिब्रूगढ़ जिले के गौतम बारदोलोई ने जो काम किया है, वाकई वह किसी मिसाल से कम नहीं है। चीन में नौकरी करने वाले गौतम अक्सर अपने गांव आते-जाते थे। उनके स्वर्गीय पिता हेरोम्बो बोरदोलोई इलाके के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार थे। गांव की एक सड़क का नाम उनके नाम पर ही रखा गया था, लेकिन गौतम ने देखा कि उनके पिता के नाम वाली सड़क कुछ ही दिनों में गड्ढ़े में तब्दील हो चुकी है और बारिश के मौसम में तो वहां घुटनों तक पानी जमा हो जाता है। इसे देखकर दुखी गौतम ने अकेले ही सड़क बनाने की ठानी और पांच सालों की मेहनत के बाद खस्ताहाल सड़क अब एकदम शानदार विश्वस्तरीय सड़क में तब्दील हो चुकी है।
सुविधाओं से लैस
सड़क को देखकर यकीन कर पाना मुश्किल है कि ये भारत के किसी गांव की सड़क है। गौतम ने सड़क के दोनों तरफ बागवानी की है, सोलर लाइट्स लगाई हैं, स्पीड ब्रेकर और ड्रेनेज की भी व्यवस्था है ताकि बरसात में पानी न जमा हो। किसी भी तरह की दुर्घटना न हो, इसके लिए रिफ्लेक्शन मिरर भी लगवाए गए हैं और सबसे अहम बात स्वच्छता का ध्यान रखने के लिए गौतम ने सड़क किनारे पोस्टर लगाकर लोगों से अपील की है कि वो सड़क को साफ-सुथरा बनाए रखने में अपना योगदान दे। सड़क किनारे लगे पौधों की सिंचाई की ज़िम्मेदारी भी उन्होंने स्थानीय लोगों को दी है।
हैरान हो रहे लोग
सड़क बनाने के बाद जब गौतम ने उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा की तो हर कोई हैरान रह गया। डिब्रूगढ़ के लोगों को यकीन नहीं हो रहा था कि उनके गांव में सिंगापुर जैसी शानदार सड़क हो सकती है। इसलिए लोग तुरंत उस सड़क को देखने के लिए उमड़ पड़े और अपने इलाके में इतनी अच्छी सड़क देखकर पल भर के लिए तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि ये सच है। सोशल मीडिया पर भी लोग, गौतम के इस कदम की खूब तारीफ कर रहे हैं।
तेरह लाख का खर्च
इस शानदार चमचमाती सड़क को बनाने में गौतम को पांच साल लगे और इस पर करीब 13 लाख का खर्च आया है। ये पूरा खर्च गौतम ने अकेले ही उठाया है, हालांकि सड़क बनाने के काम में स्थानीय युवकों ने गौतम की काफी मदद की। सड़क बनाने का इतना आसान नहीं था, लेकिन गौतम के बुलंद इरादों ने इस मुश्किल काम को भी आसान बना दिया। गौतम का मानना है कि बदलाव के लिए किसी का इंतज़ार करने की बजाय खुद ही पहल करना ज़रूरी है।
इमेज: इंडियन एक्सप्रेस
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