अगर आप मन में कुछ ठान लेते हैं, तो बस जरूरत होती है आत्मविश्वास की, जो आपको अपनी मंजिल तक ले जाती है। असम के जादव मोलाई पेयांग ने आज से 37 साल पहले साल 1979 में प्रकृति के लिए कुछ करने का बीड़ा उठाया और आज उसी प्रण ने 1360 एकड़ में फैले एक ऐसे जंगल का रूप ले लिया है, जिसमें अब हज़ारों वन्यजीव रहते हैं।
16 साल की उम्र में लिया प्रण
जादव मोलाई पेयांग आसाम के जोरहट ज़िला के कोकिलामुख गांव के रहने वाले हैं। साल 1979 में उनके इलाके में भयंकर बाढ़ आई थी, जिसकी वजह से बहुत सारे सांप मर गए थे। यह देख जादव मोलाई को बहुत दुख हुआ और महज 16 साल की उम्र में उन्होंने ठान लिया कि वे कुछ ऐसे पौधे लगाएंगे, जो आगे जाकर जंगल बनें और वन्य जीवों का संरक्षण भी हो सके।
नहीं मिली मदद
जब शुरूआत में उन्होंने ये बात सबको बताई, तो किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। यहां तक कि वन विभाग ने भी उनकी मदद नहीं की। इसके बाद जादव इस काम में अकेले जुट गए। उन्होंने कड़ी मेहनत से कई पौधे लगाए। इस दौरान भी कई बाढ़ भी आया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वो लगातार पौधे लगाते रहे और आज उनकी मेहनत का फल दिख रहा है।
बन गया मोलाई जंगल
उनकी 37 सालों की कड़ी मेहनत का यह नतीजा हुआ कि वहां एक बड़ा, घना और सुंदर जंगल तैयार हो गया है। अब उनका यह जंगल मोलाई जंगल के नाम से जाना जाता है। उनके इस जंगल में बंगाल बाघ, भारतीय गैंडे और 100 से अधिक हिरण और खरगोश हैं। बंदर और गिद्धों की एक बड़ी संख्या सहित कई किस्मों के पक्षियों का घर अब मोलाई जंगल बन गया है।
फॉरेस्ट मैन
उनके इस प्रशंसनीय काम का जब असम सरकार को पता चला, तो उन्होंने जादव की तारीफ़ भी की और उन्हें “फॉरेस्ट मैन” की उपाधि दी। उनके इस सरहानीय काम के लिए साल 2015 में पद्मश्री पुरस्कार भी मिल चुका है।
पर्यावरण बचाना हो लक्ष्य
जादव मोलाई के ऊपर कई डॉक्यूमेंट्री भी बन चुकी है लेकिन वो चाहते हैं कि हर शख्स को पर्यावरण को बचाने का प्रयास करना चाहिए। एक बच्चा अपने स्कूल लाइफ में एक पौधे की सुरक्षा की भी जिम्मेदारी ले, तो पर्यावरण में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।
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