गर्मियों का मौसम अपने साथ आम की सौगात लाता है। यूं तो आम एक फल है, लेकिन लोग इसे फलों का राजा भी कहते हैं। आम का मौसम आते ही इसको पसंद करने वाले लोग सारे फलों को भूलाकर बस एक ही फल को याद रखते है और वह है ‘आम’। इस फल की लोगों में इतनी चाहत है कि इसका नाम सुनते ही मुंह में मिश्री घुल जाती है। जितने तरह के आम बाज़ार में आते हैं, उतने ही तरीके हैं उनको खाने के।
कोई आम की फांक को चम्मच से खाता है, कोई इसे छिलका हटा कर कांटे के साथ खाता है, तो कोई इसकी गुठलियां तक चूस जाता है। इस सब से आप यह तो समझ ही गए होंगे की आम हो या खास, आम खाने वालो की दीवानगी की कोई हद नहीं है। तो चलिये आपको बता दें कि यह दीवानगी आम लोगों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इतिहास में राजा-महाराजा भी आम के बेहद शौकीन रहे हैं।
इतिहास से झलकती है आम की दीवानगी
पुरानी कथाओं के मुताबिक, पहला आम का पेड़ इंडो-बर्मा रीजन में करीब एक हज़ार साल पहले उगा था। चीनी यात्री सिएन-त्सांग 632 एडी में जब पहली बार भारत आया था, तब उसने आम (संस्कृत में आम्र) के बारे में पूरी दुनिया को बताया था। इतना ही नहीं, मुगल बादशाह अकबर ने दरबंघा के बगीचे में करीब एक लाख आम के पेड़ लगवाये थे, जिसका ज़िक्र ‘एन-ए-अकबरी’(1590) में भी है।
अलाउद्दीन खिलजी आम के पहले खरीदार थे और सिवामा किले में उनके द्वारा आयोजित की गई आम की भव्य दावत काफी प्रसिद्ध हुई। इस दावत के मेन्यु में केवल आम से बने तरह-तरह के व्यंजन थे। इतना ही नहीं, मुगल बादशाह बहादुर शाहज़फर भी आम के दीवाने थे और उन्होंने दिल्ली के लाल किले के अंदर ‘हयात बख्श’ नाम से आम का बगीचा बनवाया था।
और भी लोग रहे हैं आम के दीवाने
आम के प्रति प्यार केवल राजा-महाराजाओं तक ही सीमित नहीं रहा, इसके स्वाद के प्रति दीवानगी दरबार के सभी रईस लोगों, सैनिकों और साधारण जनता में भी थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि आम की तारीफ में कवि किताबों के पन्ने भर देते थे, लेकिन मिर्ज़ा गालिब के आगे वे सब फीके थे, जिन्होंने अपने दोस्तों को आम भेजने की फरियाद करते हुये कम से कम 63 चिट्ठियां लिखी थीं। आम के ऊपर लिखी हुई उनकी एक कविता ‘दर-शिफत-ए-अंबाह’ काफी प्रसिद्ध है। ये ही नहीं बल्कि एक और प्रसिद्ध कवि आमिर खुसरो ने आम को ‘नागज़ा तारिन मेवा हिंदुस्तान’ यानि हिंदुस्तान का सबसे अच्छा फल कहा है। भारतीय कवि रबिंद्रनाथ टेगोर ने भी इसके ऊपर ‘आमेर मोंजोरी’ लिखी थी।
आम के बारे में जितनी कथाएं सुनो, उतनी कम हैं। कुछ तो बात है इस फल में, वरना यूं ही नहीं सब इसे ‘फलों का राजा’ कहते हैं।
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