डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है और यह कई अन्य बीमारियों को जन्म देती है, लेकिन आज भी इसे लेकर लोगों के मन में कई तरह के भ्रम हैं। कोई इसे बीमारी ही नहीं मानता, तो किसी को लगता है कि सिर्फ महिलाएं ही डिप्रेशन का शिकार हो सकती हैं। चलिए जानते हैं, कुछ ऐसे ही मिथक और उसकी सच्चाई।
मिथक- बीमारी नहीं है डिप्रेशन
कुछ लोगों को लगता है कि यह बस उदासी है जो किसी घटना या मनपसंद चीज़ के न होने से हुई है। ऐसा कमजोर लोगों के साथ होता है, लेकिन यह सोच गलत है। डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है और कोई भी इसका शिकार हो सकता है, यदि इसका समय पर इलाज नहीं कराया जाए तो परिणाम घातक हो सकता है।
मिथक- किसी हादसे की वजह से होता है डिप्रेशन
इसे पूरी तरह से सच नहीं माना जा सकता, क्योंकि हर किसी के जीवन में बहुत सी अच्छी-बुरी घटनाएं होती रहती हैं। बुरी घटनाएं या हादसे इंसान को दुखी कर देते हैं, लेकिन अवसाद के लिए सिर्फ किसी हादसे को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इसके कुछ और कारण भी हो सकते हैं, कई बार कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से भी डिप्रेशन हो सकता है।
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मिथक- डिप्रेशन सिर्फ महिलाओं को होता है।
दरअसल, सच तो यह है कि सामाजिक दबाव की वजह से पुरुष अपनी भावनात्मक समस्याओं को न तो जल्दी जाहिर करते हैं और न ही इसके लिए किसी की मदद लेते हैं। इसके उलट महिलाएं अपनी भावनाओं को जल्दी जाहिर कर देती हैं। पुरुष और महिलाएं दोनों ही डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं।
मिथक- एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाने की आशंका अधिक होती है।
कुछ रिसर्च के मुताबिक, यह सच है कि परिवार के किसी सदस्य को यदि डिप्रेशन है तो आपका उसका शिकार होने की संभावना 10 से 15 प्रतिशत तक रहती है। इसके साथ यह भी सच है कि जिस परिवार में पहले से कोई डिप्रेशन का मरीज होता है उस व्यक्ति को यह पता होता है कि डिप्रेशन से निपटना कैसे है।
डिप्रेशन के बारे में बात करने से स्थिति और बिगड़ जाती है।
अवसाद को लेकर यह भी एक गलत धारणा है। इस बीमारी का शिकार व्यक्ति अकेलेपन और अपनी भावनाएं नहीं जाहिर कर पाने की वजह से ज़्यादा परेशानी में जा सकता है। यदि वह डिप्रेशन के बारे में अपने किसी प्रियजन, दोस्त या विश्वासपात्र से बात करता है तो वह स्थिति को समझते हुए उसे डॉक्टर के पास जाने की सलाह देगा, जिससे बीमारी से उबरने में मदद मिलती है।
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