प्रकृति अपने आप में आश्चर्य का विषय है। यह नित-नए करिश्मों के लिए जानी जाती है। ऐसा ही एक करिश्मा नीलगिरी पहाड़ियों पर देखने को मिलता है, जब 12 साल में एक बार नीलकुरिंजी के फूल इन पहाड़ियों पर अपनी खुशबू बिखेरते हैं।
कहां देखे जा सकते नीलकुरिंजी के फूल?
तमिलनाडु-केरल-कर्नाटक के आसपास पाई जाने वाली नीलगिरी, श्रीशेलम पहाड़ियों में इन फूलों को देखा जा सकता है। यहां लगभग दस एकड़ में फैले नीलकुरिंजी के फूल किसी विशाल नीली चादर की तरह दिखाई देते हैं। यह नज़ारा दूर से ही किसी का दिल जीतने के लिए काफी है। इस बार इद्दुकी की शेलम पहाड़ियों में इस नज़ारे को देखा जा सकता है। अगली बार 2033 में इन अनोखे फूलों को दोबारा देखा जा सकेगा।
क्या घूमने के लिए जा सकते हैं?
हां, नीलगिरी पहाड़ियां अपनी खूबसूरती, जैव विविधता के कारण हमेशा ही पर्यटन का केंद्र रही हैं। इसी कारण इस क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र भी घोषित किया गया है। यहां देश-विदेश से सैकड़ों सैलानी हर साल प्रकृति से रूबरू होने के लिए आते हैं। यहां हवाई, रेल या बस किसी भी तरीके से बड़ी आसानी से पहुंचा जा सकता है।
हालांकि अभी कोविड-19 के कारण अस्थाई तौर पर यहां पर्यटकों का आना-जाना मना है।
नीलकुरिंजी के फूलों की कई हैं वैरायटी
एक शोध के अनुसार भारत में 46 प्रकार के नीलकुरिंजी के फूल पाए जाते हैं। इनमें से अधिकतर वैरायटी पश्चिमी घाट यानि महाराष्ट्र से लेकर तमिलनाडु तट पर पाई जाती हैं। यहां कुल 30 स्पॉट है, जहां नीलकुरिंजी के फूल कभी न कभी देखे जा सकते हैं।
क्या सीख सकते हैं इन फूलों से?
नीलकुरिंजी के इन फूलों से सीखा जा सकता है कि भले ही किसी के जीवन में देर से या थोड़े समय के लिए आओ, लेकिन कुछ पॉजिटिव देकर ही जाओ। जैसे 12 साल में एक बार आने वाले नीलकुरिंजी के फूलों के कारण हमेशा के लिए पूरे पश्चिमी घाट का महत्व बढ़ जाता है।
नीलकुरूंजी की तरह प्रकृति के ऐसे कई चमत्कार हैं जिन्हें समझना मुश्किल हो सकता है। इसलिए इन पर ज्यादा दिमाग लगाने की बजाय इन्हे मान लेने में ही समझदारी है। इसका फायदा यह होगा प्रकृति और इंसान के बीच जो दूरियां बढ़ी हैं वह कम होंगी। अगर दूरी कम होती है तो इसका सीधा फायदा इंसान को मिलेगा, क्योंकि प्रकृति ही है जो इंसान की पहली ज़रूरत है।
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