“जीवन जल पर निर्भर है।”
इसलिए तो आज जब हम मंगल पर जीवन ढ़ूंढ रहे हैं तो उसमें प्रमुखता से जांचा जा रहा है कि वहां पानी है या नहीं। इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि धरती पर जीवन पानी की वजह से ही संभव हो पाया है। इसलिए पानी को बचाने और उसे सहेजने का काम कर रहे हैं देश के कई महानुभाव, जानते हैं उनके बारे में –
राजेंद्र सिंह
‘ पानी के बिना धरती और पर्यावरण को बचाना मुमकिन नहीं है।‘- राजेंद्र सिंह
राजस्थान के रहने वाले राजेंद्र सिंह ने साल 1975 में ‘तरुण भारत संघ’ बनाकर जल के महत्व को समझाया था। राजस्थान के इलाकों में पानी की भारी किल्ल्त थी, जिसे राजेंद्र सिंह ने पुरानी तकनीक अपनाकर बेहतर किया। दरअसल राजेंद्र सिंह ने गांव में छोटे-छोटे पोखर बनाकर बारिश के पानी को जमा किया। इससे जमीन के अंदर के पानी का स्तर बढ़ने लगा। इन बेहतरीन प्रयासों के चलते उन्हें स्टॉकहोम वॉटर प्राइज़ से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पानी में मिलने वाला नोबल प्राइज़ है। इग्लैंड के अखबार गार्डियन ने उन्हें 50 ऐसे लोगों की लिस्ट में रखा, जो धरती को बचा सकते है। उन्हें देश का वॉटरमैन भी कहा जाता है।
एआर शिव कुमार
महात्मा गांधी के कथन ‘जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते हैं, वह खुद में करो’ के सिद्धांत पर चलते हैं बंगलुरु के शिव कुमार। पेशे से वैज्ञानिक शिव कुमार ने पिछले 22 साल से पानी से जुड़ा कोई बिल नहीं भरा, क्योंकि उन्होंने घर में ही ऐसे प्रबंध कर रखे हैं, जिससे बारिश का पानी इस्तेमाल हो सके। शिव कुमार ने छत पर पानी के फिल्टर लगा रखे हैं जो बारिश के पानी को साफ करते हैं और वह पानी घर की ज़मीन में लगे टैंक में चला जाता है। वह सालभर में लगभग 2.3 लाख लीटर पानी जमा करके घर के सभी कामों में इस्तेमाल करते है।
अमला रूईया
मुंबई की रहने वाली अमला रूईया ने जब साल 2000 में टीवी पर राजस्थान के गांवों में पड़े अकाल की भयावह तस्वीरें देखी, तो उन्होंने वहां पानी का इंतज़ाम करने का ठान लिया। उन्होंने राजस्थान के करीब 100 गांवों में लगभग 200 डैम बनवाए हैं। अमला ने ‘आकार चैरिटेबल ट्रस्ट’ के माध्यम से राजस्थान के मंदवार गांव में पहला चेक डैम बनवाया, जिसका जमा पानी न सिर्फ खेती के लिए बल्कि पशुओं को पानी पिलाने में भी होने लगा। उन्होंने पहाड़ी इलाकों में भी ढलानों की मदद से जल बचाने का काम किया। उनके प्रयासों की वजह से लोग उन्हें प्यार से जल देवी या जल माता कहते हैं।
आबिद सुरती
‘पानी की एक-एक बूंद से घड़ा भरता है’, इसी सोच के साथ काम करती है महाराष्ट्र के आबिद सुरती। लेखक और कार्टूनिस्ट आबिद का बचपन फुटपाथ पर गुज़रा है, इसलिए उन्हें पानी की कीमत समझते हैं। वह टपकते पानी के नल ठीक करके पानी की हरेक बूंद बचाते हैं। उनकी ‘ड्रॉप डेड’ संस्था हर रविवार एक प्लंबर के साथ घर-घर घूमकर लीक हो रहे नलों को मुफ्त में ठीक करती है। इस काम में हर सप्ताह उनके करीब छह-सात सौ रुपए खर्च हो जाते हैं। इस काम से उन्होंने अब तक करीब 55 लाख लीटर पानी बर्बाद होने से रोका है।
अय्यप्पा मसगी
बचपन में जब सुबह मां के साथ पानी लाने के लिए करीब 3 किलोमीटर पैदल चलकर सिर्फ एक मटका भर पानी मिलता, तो अय्यपा पानी की कमी को दूर करने के बारे में सोचते। कर्नाटक के रहने वाले अय्यप्पा मसगी ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग करके 23 साल तक नौकरी की और बाद में 6 एकड़ ज़मीन खरीदकर उन्होंने जल संरक्षण की तकनीक पर काम करना शुरु किया। उन्होंने बारिश के पानी को बचाने की मुहिम शुरु की और उनकी एनजीओ “जल कुशल राष्ट्र” लोगों को पानी बचाने के लिए जागरुक करती है। इन महानुभावों की कोशिश यही कहती है कि अगर सही ढ़ंग से पानी का इस्तेमाल किया जाए तो पानी की समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है।
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