कभी-कभी ज़िंदगी की पहेलियों को सुलझाने के चक्कर में हम अपने सबसे ज़रूरी रिश्तों यानी अपने माता-पिता से दूर होने लगते हैं। हालांकि शुरु में यह दूरी केवल जगह की हो सकती है, लेकिन अगर आप उनसे नियमित बात करने के लिए समय नहीं निकाल पाते, तो एक समय ज़रूर आएगा कि जब आप अंदर से खाली महसूस करने लगेंगे। अगर आप इस फीलिंग से बचना चाहते हैं या फिर आप पहले से ही इससे जूझ रहे हैं, तो समय आ गया है कि आप पुरानी बातों को भूल कर एक नई शुरुआत करें। यकीन मानिए कि यह उतना भी मुश्किल नहीं है।
अपने माता-पिता को न दें तकलीफ
जिस तरह आप अपनी ज़िंदगी में उलझे हुए हैं, ठीक उसी तरह आपके माता-पिता भी अपनी लाइफ में कई चीज़ों से डील कर रहे होते हैं, बल्कि आप से थोड़ा ज़्यादा ही। इसलिए हो सकता है कि उनसे कभी कुछ गलतियां हो सकती है, लेकिन याद रखिए कि वो कभी भी आपको जानबूझ कर तकलीफ नहीं पहुंचाना चाहेंगे। उनको समझने की कोशिश करें, और अगर कभी उनसे कुछ गलतियां हुई हो, तो उन्हें माफ करना सीखें।
एक दूसरे पर इल्ज़ाम न लगाएं
ताली एक हाथ से नहीं बजती। आप दोनों को एक दूसरे से संपर्क में रहने के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। आगे बढ़िए और पुराने मसलों को सुलझाने की कोशिश करिए।
पहल करने से न हिचकिचाएं
जब आप उनके फोन के इंतज़ार में हों, तो हो सकता है कि वो भी आपके फोन का इंतज़ार कर रहे हों। ऐसे में आप इस इंतज़ार पर पूर्णविराम लगाएं और उन्हें कॉल करें। यकीन मानिए कि अपने फोन स्क्रीन पर आपका नाम पढ़ते ही वो खुशी से झूम उठेंगे। उनसे दिल से माफी मांगे और इधर-उधर की हल्की-फुल्की बातों से शुरुआत करें। ऐसा करने से आप दोनों के बीच की चुप्पी आसानी से टूट जाएगी।
अपनी फीलिंग्स का इज़हार करें
उनसे मिलते समय विनम्र रहें। किसी भी चीज़ के लिए उन्हें ज़िम्मेदार ठहराने की बजाय अपने दिल के जज़्बात साझा करें और उन्हें अपने मन की बात कहने दें। इस तरह से आप दोनो के बीच की दूरी कम होने लगेगी।
आगे क्या करना है, यह भी है ज़रूरी
अब जब बहुत कुछ साफ हो चुका है, तो आगे की योजनाओं पर बात करें। आगे कब और कहां मिलना है, ये तय करें। इससे आपके माता-पिता को यकीन हो जाएगा कि यह एक बार की मुलाकात नहीं थी, आप उनसे आगे भी इसी तरह मिलना चाहेंगे। खुद से जुड़ी छोटी-बड़ी चीजों में उनकी राय लें, इससे उन्हें आपके साथ जुड़ा हुआ महसूस होगा। याद रहे कि अच्छे संबंध बनाने में समय लगता है, इसलिए जल्दबाज़ी न करें। खुद को और अपने पैरेंट्स को समय दें। लेकिन उनको यह एहसास ज़रूर दिलवाएं कि आप उनसे जुड़े हुए हैं औऱ उनके बिना अधूरे हैं।
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