प्रकृति के पांच तत्वों से मानव शरीर बना है- आकाश, वायु अग्नि, जल और पृथ्वी। व्यक्ति को जीवन में आने वाली समस्याओं को समझने के लिए इन पांच तत्वों को समझने की ज़रूरत है। चाहे वह हमारे संबंध, शारीरिक, मानसिक मुद्दों या फिर आध्यात्मिक जीवन के बारे में ही क्यों न हो। अगर किसी भी तत्व के बीच किसी प्रकार का असंतुलन है, तो यह समस्याओं का कारण बन सकता है। और इन समस्याओं को हल करने का एकमात्र तरीका तत्वों को संतुलित करना है।
आकाश (अंतरिक्ष)
अंतरिक्ष दो चीजों के बीच अंतर को परिभाषित करता है। व्यक्ति के जीवन में उसके संबंधों, विचारों और इसी तरह के बीच किस प्रकार का अंतर होना चाहिए।जैसे विचारों में अगर सही गलत का अंतर न पता चले, तो मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। यही बात रिश्तों में भी लागू होती है। रिश्तों में अगर विश्वास, प्यार और इमानदारी की कमी आ जाए, तो इसका बुरा असर पड़ता है।
वायु
वायु हमेशा चलते रहने का प्रतीक है। मौसम चाहे कैसा भी हो, पहाड़ आ जाए या समुद्र हो, हवा का काम उसे पार करके चलते रहना। कुछ ऐसा ही हमारे जीवन में होता है। जीवन में स्थिरता बनाये रखने के लिए उतार या चढ़ाव ज़रूरी है। इन्हें पार करके ही आप जीवन को बेहतर बना सकते हो।
अग्नि
अग्नि गर्मी का संकेत देती है, जो चीजों को परिपक्व बनाती है यानी कि तैयार करती है। लेकिन आग का तेज़ ताप किसी भी चीज़ का आकार बदल सकता है। ठीक वैसे ही रिश्तों के कच्चे धागों को यदि संतुलित ताप मिले तो वह मज़बूत डोर बनकर निकलते हैं और अगर इसे गुस्से, ईर्ष्या का तेज़ ताप मिल जाए, तो सब कुछ खत्म हो जाता है।
जल
पानी ठंडक और मिलनसार का प्रतीक है। पानी का स्वभाव इतना मिलनसार होता है कि वह चाहे जिसमें मिला मिलाओ वह वैसा ही बन जाता है। जीवन में भी चाहे जितने बदलाव आए, उसी बदलाव को अपनाकर आगे बढ़ते रहना चाहिए। मनुष्य का व्यवहार पानीदार, पारदर्शी और पानी सा निर्मल होना चाहिए।
पृथ्वी
पृथ्वी ठोसता का प्रतिनिधित्व करती है। पृथ्वी कठोर, भारी और स्थिर है। ये उन संबंधों को दर्शाती है, जिसमें भले ही कुछ देर के लिए कड़वाहट आ जाए, लेकिन रिश्तों के मिठास को कम नहीं करती। अगर पृथ्वी में असंतुलन हो जाए, तो ये तबाही ला सकती है, उसी जीवन में असंतुलन होने पर यह बर्बाद हो सकता है, इसलिए स्थिरता बहुत ज़रूरी है। इससे शरीर और मन दोनों सेहतमंद रहते हैं।
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