हालात कभी एक जैसे नहीं रहते, लेकिन हालात को बदलने के लिए इंसान में हिम्मत होनी चाहिए। दस साल की अद्रिका ने वही हिम्मत दिखाते हुए हालात को ऐसा बदल दिया कि उन्हें बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
दूसरों को मदद के लिए किया प्रेरित
पिछले साल दो अप्रैल को एससी-एसटी एक्ट में हुए बदलाव के विरोध में बंद के दौरान मुरैना में आंदोलनकारियों ने कई घंटों तक ट्रेन को रोके रखा और पत्थराव किया। इस दौरान ट्रेन में फंसे यात्रियों को खाना और पानी पहुंचाने का काम किया मुरैना के दो नन्हे बच्चों अद्रिका गोयल और उनके भाई कार्तिक ने। दोनों ने घर पर जो कुछ भी खाने-पीने का सामान था, यात्रियों को लाकर दिया। टीवी पर इन दोनों बच्चों को मदद करता देख अन्य लोग भी यात्रियों की मदद के लिए आगे आएं। इतना ही नहीं, इस दौरान अद्रिका और कार्तिक ने अपनी जान की परवाह भी नहीं की। इसी बहादुरी के लिए अद्रिका और उनके भाई कार्तिक को राष्ट्रपति ने बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
हादसे में जख्मी हो गए थे पैर
दोनों बच्चों को सम्मान मिलने से जाहिर है, परिवार बहुत खुश है। इस मौके पर अद्रिका के पिता ने चार साल पुराने हादसे को याद करते हुए बताया कि चार साल पहले घर में लगी आग की वजह से अद्रिका के पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे। काफी समय तक उसे अस्पताल में रहना पड़ा। सभी को लग रहा था कि अब वह कभी चल नहीं पाएगी। डॉक्टरों को भी लग रहा था कि अद्रिका अब नॉर्मल लाइफ नहीं जी पायेगी। इस हादसे से अद्रिका बुरी तरह टूट गई थी। डॉक्टरों ने कहा कि वह डिप्रेशन में भी जा सकती है। ऐसे हालात से बेटी को उबारने के लिए अद्रिका के पिता अक्षत गोयल ने उसे ताइक्वांडो क्लासेस में भेजने का फैसला किया।
गजब की हिम्मत और डेडिकेशन
अद्रिका उम्र में भले ही छोटी थी, लेकिन उसकी हिम्मत और डेडिकेशन गजब की थी। पैर के जख्म सूखे भी नहीं थे और उसने ताइक्वांडो की प्रैक्टिस शुरू कर दी। सिर्फ आठ साल की उम्र में उसे ताइक्वांडो का ब्लैक बेल्ट भी मिल गया। वह इंटरनेशनल इंग्लिश ओलंपियाड में गोल्ड मेडल भी जीत चुकी है। इसके अलावा वह पढ़ाई में भी अव्वल हैं, हमेशा क्लास की टॉपर रहती है। अद्रिका बीस हज़ार बच्चों को ताइक्वांडो की ट्रेनिंग भी दे चुकी है।
ऐसे हिम्मत और साहसी बच्चे को हमारा सलाम।
इमेज: टाइम्स ऑफ़ इंडिया / डेली हंट
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