जब आप खाना खाते है, तो उसे सिर्फ पेट भरने के लिए न खायें, बल्कि भोजन ऐसा करना चाहिए, जिससे शरीर को पोषण और मन को तृप्ति मिले। शुद्ध भोजन का संबंध विचारों की शुद्धता से भी होता है, इसलिए हमेशा सात्विक और ताज़ा भोजन ही करना चाहिए।
आतंरिक शांति
हमारे यहां पुरानी कहावत है, जैसा अन्न वैसा मन। यानी जो जैसा भोजन करता है, उसका मन उसी के अनुरुप होता है, इसलिए तो शुद्ध और पवित्र विचारों के लिए हमेशा से सात्विक भोजन को प्राथमिकता दी जाती है। साधु संत भी हमेशा ऐसे ही भोजन की पैरवी करते हैं। व्रत, त्योहार के दिन हमारे यहां सिर्फ सात्विक भोजन ही किया जाता है ताकि शुद्ध मन से हम प्रार्थना करें और आंतरिक शांति मिले।
शरीर को समझे मंदिर
मन को शुद्ध और निर्मल करने के लिए आपको पहले अपने शरीर को आम मानव समझने की बजाय मंदिर समझना होगा और जिस तरह से मंदिर में हम सिर्फ साफ और पवित्र चीज़ें ही ले जाते हैं, ठीक वैसे ही हमारे शरीर को भी यही सारी चीज़ें यानी शुद्ध शाकाहारी भोजन देना चाहिए। आपने देखा होगा कि बहुत से सेलिब्रिटी भी शुद्ध शाकाहारी बन चुके हैं।
पैक्ड, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से दूर रहे
भोजन ऐसा होना चाहिए, जिससे आपके शरीर को ऊर्जा और पोषण मिले। इसलिए हमेशा ताजा खाना ही खाएं। डिब्बाबंद और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ से खुद को और अपने परिवार को दूर रखें। यह आपको शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार बना सकता है।
ज़रूरत के हिसाब से खाएं
खाना उतना ही खाना चाहिए, जितनी की शरीर को ज़रूरत हो। कोई चीज़ स्वाद में अच्छी लगने पर उसका ज़रूरत से ज़्यादा सेवन सही नहीं है। हर चीज़ का एक नियम और सीमा होती है और यह भोजन पर भी लागू होती है।
मन लगाकर खाना बनाना भी है ज़रूरी
कहा जाता है कि यदि सात्विक विचारों वाला कोई शख्स मन लगाकर खाना बनाएं, तो उसके द्वारा बनाया गया सादा भोजन भी बहुत स्वादिष्ट लगता है। ऐसा भोजन करने से मन और आत्मा को तृप्ति मिलती है। ताजे फल, बादाम, अंकुरित अनाज और हरी व पत्तेदार सब्जियां आदि सात्विक भोजन माने जाते हैं।
विचारों की शुद्धता के लिए आप आज से भी सात्विक आहार को प्राथमिकता दें, यकीनन इससे आपके जीवन में पॉज़िटिव बदलाव आयेंगे।
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