खुले में शौच जाने से मिलेगी मुक्ति

खुले में शौच जाने से मिलेगी मुक्ति

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शौच के लिए घर से बाहर निकलना महिलाओं के लिए आसान नहीं होता। बाहरी माहौल में खुद को सेफ रखना भी बड़ी चुनौती होती है। यह परेशानी तब और बढ़ जाती है, जब महिलाएं पीरियड्स के दौर से गुजर रही हो, क्योंकि गंदी जगह पर टॉयलेट जाने से इंफेक्शन का डर होता है। महिलाओं की इसी समस्या को समझकर पुणे की एंटरप्रिन्योर उल्का सदलकर आगे आईं और राजीव खेर के साथ मिलकर महिलाओं को मोबाइल टॉयलेट मुहैया कराने का अनूठा आइडिया ढूंढ निकाला।

कबाड़ बसों का किया इस्तेमाल

पुरानी बसों को जहां बेकार समझकर कबाड़ में फेंक दिया जाता है, वहीं उल्का ने इन बेकार बसों का उपयोग महिलाओं को सहूलियत देने में किया। इन बसों को इंटेलिजेंटली यूज़ करते हुए उल्का और राजीव ने इन्हें पब्लिक टॉयलेट की शक्ल दे दी। दरअसल, पुणे में आबादी ज़्यादा होने के कारण वहां ज़्यादा टॉयलेट बनाने की जगह नहीं है और बसों को बहुत स्पेस की ज़रूरत नहीं होती। वैसे भी पुणे, स्वच्छ भारत आंदोलन और स्मार्ट सिटी पहल का अभिन्न अंग हैं। इसलिए उन्होंने इस काम के लिए पुणे का चयन किया और इन स्वच्छता केंद्रों को पुणे के कुछ बिज़ी इलाकों में स्थापित करने का निर्णय लिया।

खुले में शौच जाने से मिलेगी मुक्ति
महिलाओं को दी सुरक्षा | इमेज: पंजाब केसरी/एनबीसी न्यूज़

सभी ज़रूरी सुविधायें है टॉयलेट में

दरअसल, इस काम को करने का फैसला उल्का ने साल 2016 में किया था और उन्होंने महिलाओं की सभी ज़रूरतों का ध्यान भी रखा। प्रत्येक बस में वेस्टर्न टॉयलेट, इंडियन टॉयलेट, वॉशबेसिन, डायपर बदलने की जगह और बिक्री के लिए सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध हैं। खास बात यह कि ये टॉयलेट सौर ऊर्जा द्वारा संचालित हैं। इसलिए यहां आने वाली महिलाओं को किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।

व्यस्त इलाकों में उपलब्ध हैं टॉयलेट

उल्का और राजीव ने पुणे के ऐसे 11 बिज़ी इलाकों में ये स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए हैं, जहां महिलाओं के लिए उपयोग करने के लिए कोई टॉयलेट नहीं हैं। इनका मुख्य फोकस लोअर इनकम ग्रुप पर है, क्योंकि इस ग्रुप की महिलाओं को ऐसे टॉयलेट्स की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है। यही वजह है कि प्रतिदिन करीब डेढ़ सौ महिलाएं इन शौचालयों का इस्तेमाल कर रही हैं।

वैसे महिलाओं के लिए इस तरह के टॉयलेट्स बनाकर उल्का और राजीव ने जो अनूठा काम किया है, उसकी जितनी तारीफ की जाये, कम है।

इमेज: एनबीसी न्यूज़

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