बच्चों कैसे देते हैं जीवन जीने की सीख?

बच्चों कैसे देते हैं जीवन जीने की सीख?

बच्चों का जीवन आपको जीने की सही सीख दे सकता है, बस आपको उनकी ज़िंदगी को ध्यान से देखने की ज़रूरत है
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बच्चे स्वभाव से सहज, सरल, जिज्ञासु, उत्साह से भरे, कल्पना की पंख लगाकर पूरी दुनिया की सैर करने वाले और रचनात्मकता से भरे होते हैं। उनकी अपनी अलग ही दुनिया है, जहां बड़ा-छोटा, सच-झूठ या अच्छा बुरा जैसे शब्द नहीं होते।

वैसे तो बच्चे बड़ों को बहुत सी चीजें सिखा सकते हैं, लेकिन 4 बहुत ही महत्वपूर्ण बातें हैं जो हम बच्चों से सीख सकते हैं-

खुशियां

बच्चे छोटी–छोटी चीज़ों में खुशियां ढ़ूंढ लेते हैं। वह उन्हें खुश रहने के लिए वजह की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन बड़े खुशियों को अपने काम या चीज़ों से जोड़ लेते हैं। अगर मुझे बड़ी पोस्ट मिल जाएगी तो मैं खुश हो जाउंगा या फिर मैं इतना पैसा कमा लूं, तो जीवन खुशियों भरा होगा। ऐसी चीज़ें जीवनभर चलती रहती है और इंसान को खुशी ही नहीं मिलती। जीवन में संतुष्टि न होना, बड़ों की सबसे मुश्किल है। इसलिए हमें बच्चों से सीखना चाहिए कैसे खुश रहना है।

सीख – खुश होने के लिए कोई वजह नहीं चाहिए होती।

पॉज़िटिव रहना

लॉक-डाउन का समय है, पिछले करीब 9 महीने से स्कूल बंद है। इसके साथ उनकी मनपसंद क्लासेज़ जैसे डांस, पेंटिंग या स्पोर्ट्स की गतिविधियां बंद है। इस समय ज़्यादा पढ़ाई भी नहीं है लेकिन फिर भी उनके पास दिनभर कुछ न कुछ काम रहता है। वे खुद को पॉज़िटिव चीज़ों से जोड़े रहते है, किसी न किसी चीज़ को सीखने–देखने या करने में व्यस्त रहते हैं।

सीख – खुद को पॉज़िटिव चीजों में हमेशा व्यस्त रखें।

बच्चे हर पल में रहते हैं खुश
बच्चे हर पल में रहते हैं खुश | इमेज : फाइल इमेज

कोशिश करना

आपने देखा होगा बच्चे जब किसी ऐसे खिलौने से खेलते हैं, जिसमें कुछ जोड़ने या हल करने वाली चीज़ होती है, तो वह तब तक कोशिश करते हैं जब तक उनसे हल नहीं  हो जाती। वैसे आजकल के टेक्निकल बच्चे गैजेट्स भी कुछ कोशिशों बाद खुद ही चलाना सीख लेते हैं।

सीख – अगर किसी चीज़ को पाना है, तो मन से कोशिश कीजिए।

बातों को मन से न लगाना

जिस प्रकार बच्चों के मन कोमल और सरल होते है। वह किसी की भी मदद नि:स्वार्थ भाव से करते और किसी के डांटने या बुरा कहने पर थोड़ी देर के लिये कुछ कहते नहीं। रोकर अपने मन से सारी बातों को जल्दी से भूल जाते हैं और फिर से अपने खेल में मगन रहते है। ठीक उसी प्रकार हमें भी बातों को मन से लगाये नहीं रखना है।

सीख – बेकार की बातों को मन से लगाकर दुखी होने से अच्छा है कि बातों को भूलकर आगे बढ़े। 

हम उम्र के किसी भी पड़ाव में क्यों न हों, दिल बच्चा होना चाहिए।

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