पिता से सीखी सादगी

पिता से सीखी सादगी

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शायद ही देश में कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो ‘मिसाइल मैन’ यानि डॉ. अब्दुल कलाम को नहीं जानता होगा। भारत के पूर्व राष्ट्रपति ने देश की सुरक्षा के लिये कई प्रॉजेक्ट्स में सफलता हासिल की। उनके बेहतरीन योगदान को देखते हुये उन्हें सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से भी नवाज़ा गया है। देश-विदेश में इतनी ख्याति मिलने के बाद भी वह साधारण तरीके से जीते थे और ज़मीन से जुड़े हुये थे। शायद यही वजह थी कि उन्हें ‘पीपल्स प्रेज़िडेंट’ यानि लोगों का राष्ट्रपति भी कहा जाता था। उनकी सादगी के पीछे उनके माता-पिता का व्यवहार था, जो वो अपने बचपन से देखते आ रहे थे। उनके पिता इतने सरल व्यक्ति थे कि उनसे सीखी हुई बातें डॉ. कलाम को याद थी, लेकिन एक बात हमेशा उनके दिमाग में ताज़ा रहती थी।

पिता से सीखी सादगी
पिताजी की वो सादगी  | इमेज :फाइल इमेज

पिता की बात, मन के करीब

यह तब की बात है, जब कलाम छोटे थे। एक बार दिन भर काम करने के बाद उनकी मां सबके लिए रात का खाना बना रही थीं। जब मां ने उनके पिता के आगे खाना परोसा, तो रोटी जली हुई थी। कलाम इस बात को देखना चाहते थे कि क्या कोई उस जली हुई रोटी पर ध्यान देगा, लेकिन किसी न कुछ नहीं कहा। उनके पिता ने भी बड़े आराम से खाना खाते हुए कलाम की दिनचर्या के बारे में पूछा और दूसरी बातें करते रहे। कलाम को यह तो याद नहीं था कि उन्होंने अपने पिता को क्या जवाब दिया, लेकिन उन्हें अपनी मां का पिताजी से रोटी जल जाने के लिये मांफी मांगना याद है। इस पर उनके पिता ने जवाब दिया था कि ‘मुझे जली हुई रोटी पसंद हैं’।

रात को जब कलाम ने अपने पिता से पूछा कि क्या सच में उनको जली हुई रोटी पसंद हैं? तो उनके पिता ने मुस्कुराते हुए समझाया कि उनकी मां सुबह से काम कर के थक गई थीं, इसलिये हो सकता है कि रोटी जल गई हो। फिर वह बोले कि एक जली हुई रोटी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती, लेकिन किसी के बोले हुये कठोर शब्द बहुत दुख पहुंचा सकते हैं। कोई भी परफेक्ट नहीं होता, इसलिये रिश्ते निभाने के लिये दूसरों की गलतियों को स्वीकार करना सीखना चाहिये। जीवन पछतावा करने के लिए बहुत छोटा है, इसलिये सभी के साथ प्यार से रहें।

और भी पढ़े: पिता के नाम खत

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