हर पैरेंट्स अपने बच्चों की छोटी से छोटी ज़रूरत भी तुरंत पूरी करने की कोशिश करते हैं। बच्चे को मुंह खोलते देर नहीं कि उसकी पसंद की हर चीज़ उसके सामने हाज़िर हो जाती है। पैरेंट्स का प्यार जताने का यह तरीका कुछ हद तक तो सही है, लेकिन पूरी तरह से नहीं, क्योंकि इसी तरह यदि आप बच्चे की हर गैर-ज़रूरी मांग को पूरा करते रहेंगे तो बड़ा होने पर उसे पैसों की अहमियत समझ नहीं आएगी और न ही वह पैसे बचाने के बारे में सोचेगा। यदि आप अपने बच्चे को वाकई में समझदार बनाना चाहते हैं, तो बाकी चीज़ों के साथ ही उन्हें मनी मैनेजमेंट भी सिखाना ज़रूरी है, खासतौर पर टीनएज में यह और ज़रूरी हो जाता है।
क्यों ज़रूरी है टीनेजर्स के लिए मनी मैनेजमेंट के बेसिक?
इस उम्र में भले ही वह व्यस्क नहीं रह जाते, लेकिन बच्चे भी नहीं होते हैं। कुछ सालों बाद ही प्रोफेशनल लाइफ शुरू करने वाले हैं, ऐसे में अभी से उन्हें आमदनी और खर्च का सही-सही हिसाब-किताब रखना और समझदारी से खर्च व निवेश करना सिखाना ज़रूरी है। शुरू में यह काम छोटे स्तर पर ही करें जैसे हर महीने पॉकेट मनी से कुछ पैसे बचाने के लिए कहें ताकि 6 या 7 महीने बाद वह उन पैसों से अपनी कोई मनपसंद चीज़ खरीद सके। इसी उम्र में यदि वह मनी मैनेजमेंट की आधारभूत बातें सीख जाता है और पैसों की अहमियत समझ आ जाती है, तो आगे वह निवेश और खर्च का प्रबंधन भली-भांति कर लेगा।
पैरेंट्स दिलचस्प तरीके से कैसे सिखाएं मनी मैनेजमेंट?
स्कूल के टीचर की तरह यदि आप अपने टीनेज बेटा/बेटी को सिर्फ किताबी ज्ञान देते रहेंगे, तो वह कुछ नहीं समझेगा और न ही कुछ सीखने में उसकी दिलचस्पी होगी। इसलिए उसे प्रैक्टिल तरीके से सिखाएं।
घर का बजट बनाने में करें शामिल
बच्चे भाषणबाजी सुनने में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं बजाय इसके वह पैरेंट्स को फॉलो करते हैं। इसलिए उन्हें आर्थिक ज्ञान देने के लिए सबसे पहला कदम होना चाहिए कि आप घर का बजट बनाते समय उन्हें इसमें शामिल करें। तभी उसे पता चलेगा कि आमदनी के हिसाब से खर्च करना होता है और खर्च के बाद आमदनी का एक हिस्सा बचाना भी ज़रूरी है। जिसे निवेश या इमरजेंसी फंड के लिए अलग से रखा जाता है। जब वह देखेगा का ज़्यादा खर्च होने की स्थिति में आप कुछ ऐसी चीज़ों में कटौती करती हैं जिसकी बहुत ज़रूरत नहीं है या जिसके बिना काम चल सकता है, तो उसे भी समझ आएगा कि पैसे सिर्फ बहुत ज़रूरी चीज़ों पर ही पहले खर्च करने चाहिए और बजट बनाना ज़रूरी है, क्योंकि इससे ही हम अपनी आमदनी और खर्च का सही आंकलन कर पाते हैं।
सिखाएं बचत करना
फाइनेंशियली मज़बूत बनने के लिए टीनेजर्स में अभी से बचत की आदत डालें। इसके लिए आप उनसे कह सकते हैं कि यदि उन्हें नया फोन, आइपैड या कोई अन्य गैजेट चाहिए तो हर महीने पॉकेट मनी से एक निश्चित राशि बजाय फिर 6 महीने बाद उन्हीं पैसों से आप उन्हें वह चीज़ दिलवा देंगे, यदि कुछ कम होगा तो आप उसे उधार दे सकते हैं, लेकिन जिसे बच्चे को कुछ महीने बाद लौटाना होगा। ऐसा करने से बच्चे को समझ आएगा कि पैसे आसानी से नहीं मिलते और वह फिज़ूलखर्च करने से पहले सौ बार सोचेगा।
कमाने के लिए करें प्रेरित
माना कि अभी उनकी नौकरी की उम्र नहीं है, मगर कुछ सालों बाद ही तो वह प्रोफेशनल लाइफ में कदम रखने वाले हैं जह कदम-कदम पर कड़ी चुनौतियों से उनका सामना होगा, जिसमें से एक चुनौती फाइनेंशियल प्लानिंग भी है। इसलिए ज़रूरी है कि बच्चे को अभी से छोटे-मोटे काम या पार्ट टाइम जॉब के लिए प्रेरित करें। आप उन्हें घर के कुछ काम दे सकती हैं और उसके बदले उन्हें पॉकेट मनी दें या फिर छुट्टियों में दूसरे बच्चों को पढ़ाने, डांस/गेम सिखाने, कसरत/योग सिखाने के लिए प्रेरित करें। इससे उन्हें पता चलेगा कि पैसे कितनी मेहनत से कमाए जाते हैं। फिर वह पैरेंट्स के पैसे पानी की तरह बहाने की भूल नहीं करेगा।
बैक अकाउंट हैंडल करना सिखाएं
बच्चे के नाम से बैंक अकाउंड खुलवा दें। 10 से 18 साल के बच्चे के लिए बैंक अकाउंट खुलवान पर बच्चा उस अकाउंट को ऑपरेट कर सकता है। बच्चे को बैंक में पैसे जमा करना और निकालना सिखाएं। इससे वह बैंकिंग की एबीसी जल्दी सीख जाएंगे। बच्चे को बैंकिंग ट्रांजेक्शन खुद ही करने दें, यदि वह कुछ पूछता है, तो बस उसकी मदद करें।
अपनी खरीरदारी का बजट बनाने के लिए कहें
टीनेज में बच्चों की ज़रूरत बहुत बढ़ जाती हैं। पढ़ाई से जुड़ी चीज़ों के साथ ही फैशनेबल चीज़ें और गैजेट्स की मांग भी वह बहुत करने लगते हैं। इसलिए उन्हें अपनी खरीरदारी का बजट बनाने के लिए कहें और फिर एक बार मूल्यांकन करने को कहें कि क्या लिस्ट की सारी चीज़ों की उन्हें अभी वाकई ज़रूरत है? यदि नहीं तो चीज़ें अगले महीने या उसके बाद खरीदने पर भी काम चल सकता है उसे लिस्ट से हटा दें। इस तरह से वह खर्च की प्राथमिकता तय करना सीख जाएगा। मनी मैनेजमेंट सीखते समय बच्चा यदि कोई गलती करता है, तो डांटने की बजाय उसे उसकी गलती बताएं और उसे सुधारने का तरीका भी समझाएं।
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