हार गई दौलत, जीत गई ईमानदारी

हार गई दौलत, जीत गई ईमानदारी

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आमतौर पर गरीबी को ऐसा अभिशाप माना जाता है, जो बड़े-बड़ों के ईमान को हिला देती है, लेकिन मुफलिसी के बावजूद अगर आपका ईमान नहीं डोलता है, तभी आप सच्चे व ईमानदार इंसान कहलाने के हकदार होते हैं। ईमानदारी की एक ऐसी ही मिसाल हावड़ा के 54 वर्षीय रिक्शा चालक मंटू साहा ने पेश की।

रिक्शे की सीट के पीछे मिला था बैग

दरअसल, मंटू को अपनी रिक्शा की सीट के पीछे 2.98 लाख रुपये मूल्य के हीरे और सोने के आभूषण और 60,000 रुपये की नकदी से भरा एक बैग मिला। यह बैग उसके रिक्शा में बैठी अंतिम सवारी का था। वह चाहता तो बगैर किस को बताए बैग अपने पास रख सकता था, क्योंकि बीमार बेटे के इलाज और पत्नी व चार बच्चों की ज़िंदगी संवारने के लिए यह पैसा पर्याप्त था। लेकिन, यह स्थिति भी उसके ईमान को बदल नहीं पाई और उसने बैग को उसके असली मालिक तक पहुंचा कर ईमानदारी धर्म को निभाना ज्यादा मुनासिब समझा।

दुबई निवासी महिला का था बैग

यह बैग दुबई की रहनेवाली 58 वर्षीय महिला रुक्मिणी देवी का था। दरअसल, रुक्मणी देवी अपने एक रिश्तेदार से मिलने लिलुआ स्थित उनके घर आई थीं। फिर वह बजरंगबली मार्केट में शॉपिंग करने गईं। वहां उन्होंने 2.98 लाख रुपये कीमत के सोने और हीरे के जेवर खरीद कर अपने बैग में रखे। इसी बैग में बचे हुए 60,000 रुपये भी रख लिए। उसके बाद वह मंटू के रिक्शे से लिलुआ स्थित अपने घर पहुंचीं, लेकिन जेवरों और नकदी से भरा बैग रिक्शा में ही भूल गईं। जब वह घर पहुंचीं, तो उन्हें ध्यान आया कि अपना बैग वह रिक्शे में ही भूल गई हैं। इसके बाद तत्काल बेलूर थाने में बैग के गुम हो जाने की एफआईआर दर्ज कराई।

इमेजः फाइल इमेज

दंपति ने थाने में जमा कराया बैग

रुक्मिणी देवी को छोड़ने के बाद मंटू साहा जब घर पहुंचे, तो उन्होंने रिक्शे की सीट पर बैग देखा। इसके बाद उन्होंने बैग और उसमें रखे सामान को अपनी पत्नी को दिखाया। लेकिन, बैग को अपने पास रखने के बदले दंपति ने पुलिस को इसकी सूचना देने का फैसला किया और बेलूर पुलिस स्टेशन पहुंचकर बैग जमा करवा दिया।

दस हजार रुपये की मिली मदद

मंटू साहा की ईमानदारी से रुक्मिणी देवी इस कदर प्रभावित हुईं कि उन्होंने न केवल बैग वापस करने के लिए उनका धन्यवाद किया, बल्कि मदद के तौर पर 10000 रुपये भी दिए। इतना ही नहीं, रुक्मिणी ने मंटू से पूछा कि क्या वह उसकी कोई और तरीके से भी मदद कर सकती हैं, तो साहा ने कहा कि अगर उसके पास ऑटो या ई-रिक्शा हो जाए, तो वह अपने परिवार का बेहतर भरन-पोषण करने की स्थिति में होगा। चूंकि, रुक्मिणी देवी को वापस दुबई जाने के लिए फ्लाइट पकड़नी थी, सो तत्काल वित्तीय मदद करने के बदले उन्होंने मंटू से चेक या फिर ओसी के जरिये रकम भेजने का वादा किया, ताकि वह गाड़ी खरीद सके।

देश को भी किया गौरवान्वित

दुनिया में चंद लोग ही मंटू साहा जैसी ईमानदारी दिखाते हैं, लेकिन जो ऐसा करते हैं, वह न केवल रुक्मिणी देवी जैसे यात्रियों को खुश करते हैं, बल्कि अपनी ईमानदारी से देश को भी प्राउड फील कराते हैं। यह उनकी ईमानदारी ही थी, जिसने उन्हें इतना सम्मान दिलाया और बेटे का इलाज कराने में भी सक्षम बना।

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इमेजः विकिमिडिया

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