एक साल और बीतने को है, मगर इस साल भी महामारी ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा है। देश में भले ही कोरोना के मामलों में कमी आई है, लेकिन ओमीक्रॉन की दहशत दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, यानी हम कोरोना के साथ ही नए साल में प्रवेश करेंगे। हालांकि पिछले साल की तुलना में इस साल महामारी का खौफ लोगों के मन में कम हो गया। कोरोना की दूसरी लहर ने देश में हालात बहुत बिगाड़ दिए थे, मगर उस मुश्किल वक्त में भी कुछ लोग और संस्था ऐसी थी, जिन्होंने इंसानियत की मिसाल पेश करते हुए ज़रूरतमंदों के लिए मदद का हाथ बढ़ाया। आइए, जानते हैं ऐसे ही कुछ कोविड हीरोज़ के बारे में।
हेमकुंड फाउंडेशन
गुरुग्राम का ये एनजीओ पिछले 12 सालों से दर्जनभर से अधिक प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है, जो समाज के वंचित तबके का जीवनस्तर सुधारने में मददगार साबित होगा। कोविड महामारी के दौरान इस एनजीओं ने लोगों की मदद के लिए ऑक्सीजन सप्लाई करने के साथ ही ग्रुरुग्राम में कोविड केयर सेंटर बनाया, कोरोनी की वजह से जिन लोगों की कमाई का ज़रिया बंद हो गया उन्हें सशक्त बनाने का काम किया।
शाहनवाज़ शेख
मुंबई के मलाड इलाके के रहने वाले शाहनवाज़ ने तो ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने के लिए अपनी 22 लाख की एसयूवी कार ही बेच डाली। दरअसल, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से कई मरीज़ों ने दम तोड़ दिया। ऐसे हालात में अपने आसपास के लोगों की मदद के लिए उन्होंने अपनी कार बेचकर अस्पताल से लेकर ज़रूरतमंद मरीज़ों तक मुफ्त ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाया।
जावेद खान
मध्यप्रदेश के ऑटो ड्राइवर जावेद खान ने मुश्किल दौर में मरीज़ों की मदद के लिए अपने ऑटो रिक्शा का ही एंबुलेंस में तब्दील कर दिया। ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ ही, उनके रिक्शा में ऑक्सिमीटरस, सैनिटाइज़र और अन्य ज़रूरी मेडिकल उपकरण थे और वह मुफ्त में जरुरतमंदों को अपने सेवाएं देते रहें। यही नहीं सभी ज़रूरी सामान खरीदने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के गहने तक बेच दिए।
संतोष पांडा
झारखंड के किरिबुरु के रहने वाले पांडा झारखंड के सिंहभूम जिले के आसपास के इलाकों के कोरोना मरीजों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं थे। होम आइसोलेशन में रहने वाले कोरोना मरीज़ों को वह बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के राशन और दवाइयां पहुंचाते थे। हां, इस दौरान अपनी सुरक्षा का ध्यान रखने के लिए पीपीईट किट पहनना नहीं भूलते थे।
डॉ. हरमनदीप सिंह बोपाराए
मूल रूप से पंजाब के रहने वाले डॉ. हरमनदीप सिंह महामारी के दौर में न्यूयॉर्क छोड़कर अपने देश में लोगों की सेवा के लिए लौट आए। उन्होंने अमृतसर के कई डॉक्टरों और नर्सों को कोविड मरीज की देखभाल का मुफ्त प्रशिक्षण दिया। अमृतसर के साथ ही उन्होंने मुंबई में भी अपनी सेवाएं दी।
नवी मुंबई म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन
कॉरपोरेशन ने सिडको एक्जिबीशन सेंटर में विशाल कोविड केयर सेंटर बनाया था जहां न सिर्फ मरीज़ों की शारीरिक, बल्कि मानसिक सेहत का भी ध्यान रखा गया। इसी के मद्देनर कॉरपोरेशन ने वहां लाइब्रेरी की शुरुआत की, ताकि सकारात्मक किताबें पढ़कर मरीज़ पॉज़िटिव तरीके से सोचने लगें, इससे वह जल्दी ठीक हो सकते हैं। दरअसल, कोरोना का असर शरीर से ज़्यादा दिमाग पर होता है, इससे लोगों में तनाव और अवसाद बढ़ गया है, इसलिए मानसिक का सेहत का ख्याल रखने के लिए पॉज़िटिवीट को बढ़ाना ज़रूरी है।
सत्येंद्र पाल
उत्तर प्रदेश के रहने वाले सत्येंद्र गणित में स्नातक है। महामारी के दौरान जब स्कूल बंद थे, तो सामान्य घरों के बच्चे तो इंटरनेट की बदौलत ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे, मगर गरीब तबके के छात्र जिनकी पहुंच इंटरनेट तक नहीं थी, उनकी मदद सत्येंद्र जैसे लोगों ने की। पूर्वी दिल्ली के एक फ्लाईओवर के नीचे झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों को उन्होंने पढ़ाया बिना किसी इंटरनेट के। इन लोगों ने ज़रूरतमंदों की सहायता करके इंसानियत की अनोखी मिसाल पेश की है।
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