अगर आपने गौर किया होगा, तो भगवान शिव का पहनावा काफी अलग है लेकिन आपको बता दे कि उनके पहने हुये एक-एक आभूषण की कोई न कोई विशेषता है, जो जीवन से जुड़ी है और सीख देती है। वैसे तो शिव के परिधान से जुड़ी अनगिनत चीजें जीवन है, लेकिन आज हम सिर्फ उनकी बात करेंगे, जो बहुत प्रसिद्ध हैं।
भस्म से लिपटा शरीर
हालांकि भस्म कोई परिधान नहीं है, लेकिन शरीर पर लिपटी राख इस बात का संकेत देती है कि वह जीवन-मृत्यु से परे हैं। अगर वैज्ञानिक तरीके से समझें तो राख किसी भी ईंधन के जलने से बनती है। आपके शरीर में भी एक ऊर्जा होती हैं, जिसके जलने से राख बनती है और शिव इस जीवन चक्र से ऊपर उठकर इस राख का लिबास पहनते हैं।
उलझी हुई जटाएं
शिव के खुले और उड़ते हुए बाल वायु के होने का प्रतीक हैं, जो किसी भी जीव के लिए ज़रूरी है। उनके बालों की हर लट अपने आप में इच्छाओं का प्रतीक हैं, जिन्हें जूड़े में बांधकर वह अपने वश में कर लेते हैं। पुराणों के अनुसार शिव ने गुस्से से भरी गंगी नदी को भी अपनी जटाओं में जगह दी है।
शिव के सिर पर तीन जटाये शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक हैं, जिनको काबू करना योग से सिखा जा सकता है।
तीसरी आंख
ऐसा माना जाता है कि शिव की सीधी आंख सूर्य है, उल्टी आंख चंद्रमा है और माथे के बीच तीसरी आंख अग्नि है। शिव की दो आखें जीवन को देखने के लिए हैं और तीसरी आंख अध्यात्म के लिए हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे ‘पीनियल ग्लैंड’ भी कहते हैं, जिसे आप चाहें तो, मेडिटेशन से इसे जागृत कर सकते हैं।
बढ़ता हुआ चंद्रमा
सिर पर सजा बढ़ता हुआ चंद्रमा समय का प्रतीक है। समय के साथ-साथ चंद्रमा एक शांत मन और दूरदर्शिता भी दिखाता है। अगर कोई भी निर्णय शांत मन से लिया जाये, तो उसका परिणाम पॉज़िटिव ही आता है।
कुंडल
अगर आपने ध्यान दिया हो, तो देखा होगा कि शिव के सीधे कान में बड़ा कुंडल है, जो पुरुष और उल्टे कान में छोटा कुंडल है, जो महिला के होने का प्रतीक है। एक साथ दो तरीके के कुंडल पहनने का अर्थ पुरुष और महिला की समानता होता है, जिसे ‘शिव-शक्ति’ भी मान सकते हैं।
शिव के आभूषणों के गहरे अर्थ को जीवन में उतार लिया जाये, तो आप अपने जीवन में एक बड़ा और पॉज़िटिव बदलाव ला सकते हैं।
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