बुलंद हौसलों के आगे हार गई मुश्किल

बुलंद हौसलों के आगे हार गई मुश्किल

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‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों’, किसी ने बिल्कुल सच कहा है और इस बात को मिहिर कापसे ने सच करके भी दिखाया है। जिस बीमारी के बाद इंसान ठीक से पढ़ाई भी नहीं कर पाता, उससे पीड़ित मिहिर ने कैट परीक्षा में 99.97 परसेंटाइल लाकर सबको हैरान कर दिया है।

हार्ड वर्क सबसे ज़्यादा ज़रूरी

मुंबई के कल्याण के रहने वाले 25 वर्षीय मिहिर कापसे ने प्रतिष्ठित कैट परीक्षा में 99.97 परसेंटाइल हासिल किया है। उनकी यह कामयाबी इसलिए ज़्यादा मायने रखती है क्योंकि वह कोई सामान्य छात्र नहीं है, बल्कि मिहिर दस साल की उम्र से ही माइल्ड ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। ऑटिज़्म, एक ऐसी बीमारी जिसमें ठीक तरह से मानसिक विकास नहीं हो पाता, जिसकी वजह से बच्चा न तो ठीक से पढ़ पाता है और न ही उसके सोशल स्किल विकसित हो पाते है। दूसरों से बात करने में भी ऐसे बच्चों को मुश्किलें आती हैं, मगर मिहिर ने इन सब मुश्किलों से पार पाते हुए जो कामयाबी हासिल की है, वह वाकई किसी मिसाल से कम नहीं है।

हौसलों से जीती मुश्किलें | इमेजः टाइम्स नाउ

आलोचना की परवाह नहीं

मिहिर की मां के मुताबिक, मिहिर ने जो कुछ भी हासिल किया है वह पाना आसान नहीं था। इसके लिए उसने जीतोड़ मेहनत की है। पुणे इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक करने वाले मिहिर को बचपन से ही लोगों के भेदभाव वाले रवैये का सामना करना पड़ा, बाकी बच्चे उससे अलग-थलग रहते थे, लेकिन बावजूद इसके मिहिर को कुछ फर्क नहीं पड़ा और वह पढ़ाई में मन लगाने की पूरी कोशिश करता। बचपन से ही उसे लैपटॉप पर समय बिताना अच्छा लगता था, वही उसका सबसे अच्छा साथी था। मिहिर जेपी मॉर्गन कंपनी में नौकरी करते हैं। मिहिर की मां का कहना है कि उनके बेटे कि लिए ज़िंदगी आसान नहीं रही, क्योंकि बाहरी लोग उनके जैसे बच्चों को जल्दी स्वीकार नहीं करते हैं।

जागरुकता की ज़रूरत

ऑटिज़्म जैसी मानसिक बीमारियों के प्रति हमारे समाज में अभी भी जागरुकता की कमी है। आमतौर पर लोग ऐसी बीमारी से पीड़ित बच्चों के प्रति अलग ही रवैया अपनाते हैं, उन्हें सामान्य स्कूल में दाखिला भी नहीं मिलता। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, इस चीज़ को बदलना होगा। लोगों को जागरुक करने की ज़रूरत है ताकि वह ऐसे बच्चों के साथ सामान्य व्यवहार कर सकें, साथ ही शिक्षकों को भी खास प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे वह ऐसे बच्चों की सही देखभाल कर सकें। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में दस साल की उम्र के सौ में से एक बच्चे को ऑटिज़्म की समस्या है।

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