चीन के महान दार्शनिक और विचारक कंफ्यूशियस ने कहा था, ‘वास्तव में हमारा जीवन बहुत ही सरल हैं, लेकिन हम ही उसे जटिल बनाने पर तुले रहते हैं।’ उनकी बाद बिल्कुल सच है। दरअसल, ज़रूरत से ज़्यादा सोचने की हमारी आदत ही ज़िंदगी को उलझा देती है। जब हम अधिक सोचना बंद कर देते हैं और जीवन की सच्चाई को स्वीकार कर लेते हैं, तो ज़िंदगी आसान हो जाती है। आइए, जानते हैं ज़िंदगी में उलझनों की वजह क्या है और कैसे उसे सुलझा सकते हैं।
जटिलता से जुड़ा पूर्वाग्रह
ज़्यादातर लोगों की आदत होती है हर काम या बात बढा-चढ़ाकर करने की, ऐसे लोग जटिलता के पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं यानी ये मानकर बैठे रहते हैं कि सब काम मुश्किल है। मसलन, पिछले साल लॉकडाउन में कुछ लोग इतने उत्तेजित और चिंतित हो गए थे कि सालभर का सामान इकट्ठा करना शुरू कर दिया था। दुकानों पर घंटों लाइन में घड़े रहकर इन्होंने अपनी ज़िंदगी को बहुत मुश्किल बना दिया था। उस वक्त डर का माहौल था इस बात में कोई दो राय नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे जो शांति से बैठे थे और बस ज़रूरत भर का सामान जमा करके सरकार की ओर से बनाए नियमों का पालन कर रहे थें। इन्हें पता था कि घबराने से कुछ बदलने वाला तो है नहीं। इसलिए हालात को देखते हुए खुद को बदल लिया, बाहर नहीं जाना था तो घर पर ही कसरत/योग करने लगे, परिवार के साथ समय बिताने लगें। इसी तरह यदि ज़िंदगी में जब कोई समस्या आए सोचकर उसे और जटिल बनाने की बजाय सबसे पहले उसके आसान समाधान के बारे में सोचिए।
हमेशा चिंतित रहना
जब हम दुखी, गुस्सा, तनावग्रस्त या परेशान होते हैं, तो यह विचार और भावनाएं हमारे व्यवहार को भी प्रभावित करती हैं। हम अपनी समस्या को लेकर जितन अधिक चिंता करेंगे ज़िंदगी उतनी ही उलझी हुई लगने लगेगी। इसलिए समस्या के बारे में सोचने की बजाय उसके समाधान पर चिंतन करे और न सिर्फ चिंतन करें, बल्कि उस दिशा में प्रयास करना भी ज़रूरी है। इसके लिए सबसे पहले आपको अपने दिमाग को शांत करना होगा, जो आप ब्रिदिंग एक्सरसाइज़, मेडिटेशन, कार्डियो, डायकी लिखना, संगीत सुनने जैसे काम करके कर सकते हैं।
हर चीज़ को नियंत्रित करने की चाह
हम चाहते हैं कि हर चीज़ हमारे मन-मुताबिक हो, जो संभव नहीं है। दरअसल, लोगों पर और हर चीज़ पर कंट्रोल करने की चाह हमारे डर की भावना को उजागर करती हैं, क्योंकि हमारे हिसाब से चीज़ें न होने पर हम घबरा जाते हैं और यही डर ज़िंदगी को और उलझा देता है। इसलिए ज़रूरी है कि सबसे पहले तो आप अपने डर से बाहर आएं और इस सच को स्वीकार कर लें कि आप हर चीज़ को नियंत्रित नहीं कर सकतें, इसलिए जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार करें। फिर चाहे वह हालात हो या आपका पार्टनर।
दूसरों को खुश करने की आदत
‘आज मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि मेरे काम से चाची जी खुश हो गईं।’ यदि आपका हाल भी कुछ ऐसा ही है तो जाहिर-सी बात है कि आपको ज़िंदगी बहुत उलझी हुई लगेगी। दूसरों को खुश करना अच्छा है, लेकिन हमेशा उनकी खुशी में ही अपनी खुशी तलाशना आपको मुश्किल में डाल सकता है। याद रखिए आपकी खुशी तो आपके अंदर मौजूद है और अपनी खुशी के लिए आप स्वयं ज़िम्मेदार हैं। तो खुद को अहमियत दें और वही काम करें जिससे आपको खुशी मिलती है, न कि जिससे दूसरे खुश होते हैं।
ड्रामेबाज़ लोगों की संगत
कुछ लोगों की आदत होती है हमेशा इमोशनल ड्रामा करने की, ऐसे नकारात्मक लोगों की संगत आपको परेशान कर सकती है और आप उलझन महसूस करते हैं। ऐसे लोग जीवन के बदलावों के प्रति हमेशा नाटकीय प्रतिक्रिया ही देते हैं। यदि आप अपनी ज़िंदगी की उलझनों को कम करना चाहते हैं, तो ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखें।
ज़िंदगी में हमेशा चुनौतियां आएंगी, तो साहस के साथ इनका सामना करें, क्योंकि चिंता करने से समस्याएं बढ़ती हैं सुलझती नहीं।
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