हमारे शरीर के अंदर मूलरुप में सात ऊर्जा के स्तोत्र हैं। मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार, जिसे सप्त चक्र कहा गया है। ये चक्र हमारे आकार, व्यवहार, विचारों और इमोशन या संवेदना को नियंत्रित करते हैं। जब हमारे ये चक्र जागृत और एकरुप होते हैं, तब हमारा शरीर और मन एक खास संतुलन में काम करता है। इन चक्रों को जागृत करने के लिए कई योगासन है, जिन्हें आप रोज़ाना कर सकते हैं।
पहला चक्र – मूलाधार
शरीर के 7 चक्र में सबसे पहले मूलाधार चक्र है। यह चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में होता है। मूलाधार, आपके अस्तित्व, सुरक्षा के सभी पहलुओं को नियंत्रित करता है। जब ये चक्र खुला और स्वस्थ होता है, तो व्यक्ति शांत और सुरक्षित महसूस करता है।
चक्र को जागृत करने वाले योग
मूलाधार चक्र रीढ़ की हड्डी के निचले भाग यानी की पैर, घुटने और मानसिक सेहत आदि से जुड़ा हुआ है। इनके अंसतुलन होने पर ही मूलाधार चक्र की शक्ति कम होने लगती है। इन्हें जागृत करने के लिए कई आसन और प्राणायाण है। उनमें ये 5 योगासन, जो मूलाधार चक्र को संतुलित करने के लिए फायदेमंद है।
ताड़ासन
यह संस्कृत शब्द ताड़ (पर्वत) के साथ आसन को मिलाकर बना है। ताड़ासन योग को खड़े रह कर करने वाले योगासनों की नींव माना जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस योग को करते समय शरीर पर्वत के समान सीधा और स्थिर रहता है। मूलाधार चक्र पृथ्वी से जुड़ा हुआ है और ताड़ासन करते समय शरीर का सारा भार पैरों के माध्यम से पृथ्वी की ऊर्जा को महसूस करता है। इस आसन में पैरों के साथ पूरे शरीर में एक प्रकार से खिंचाव होता है, जो पैरों की मांसपेशियों को आराम देता है। इनके संतुलन होते ही मूल चक्र भी संतुलित होने लगता है।
मालासन
यह संस्कृत शब्द है जो दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमे “माला” का अर्थ “हार” और “आसन” का अर्थ “मुद्रा” होता हैं। यह आसन व्यक्ति को पृथ्वी के करीब ले जाता है, मन को शांत करता है और कमर के निचले हिस्से और कूल्हों को सहारा देता है। यह आसन जमीन से जुड़ा हुआ महसूस कर सकते हैं।
जानुशीर्षासन
यह आसन दो संस्कृत शब्द जानु और शीर्ष के मेल से बना है। जानु का मतलब घुटना और शीर्ष का मतलब सिर होता है। यह आसान मूल चक्र के आसपास के तनाव को दूर करने में मदद करेगा। इस आसन को करने से व्यक्ति के पीठ के निचले हिस्से से लेकर हैमस्ट्रिंग तक काफी राहत महसूस होगा। नियमित रूप से जानुशीर्षासन करने से कंधे, पैरों और पेट की मांसपेशियां मज़बूत होती है। यह पैरों के दर्द में भी राहत दिलाता है।
वीरभद्रासन
यह एक मज़बूत आसन है, जो पृथ्वी और शरीर के बीच मज़बूत संबंध बनाता है। यह योग मुद्रा पूरे शरीर को गतिशीलता प्रदान करती है, पहला चक्र को सशक्त बनाती है। यह व्यक्ति के पैरों को शारीरिक रूप से मज़बूत करता है। व्यक्ति के कूल्हों को खोलता है और घुटनों और पीठ के निचले हिस्से को ताकत प्रदान करने में मदद कर सकता है।
सेतु बंधासन
यह एक ऊर्जावान मूल चक्र योग मुद्रा है, जो आपके पैरों को पृथ्वी में मज़बूती से स्थापित करती है और आपकी रीढ़ को अत्यधिक मात्रा में मूलाधार चक्र ऊर्जा को मुक्त करने के लिए प्रेरित करती है। सेतु बंधासन गले के चक्र को भी उत्तेजित करता है। दय और सौर जाल चक्रों को खोलता है और त्रिक चक्र को संतुलित करता है।
जैसे ही हम पृथ्वी से जुड़ना शुरू करते हैं, इसकी ऊर्जा को आकर्षित करते हैं। अपने असंतुलित चक्र को संतुलित करने के लिए ऊपर बताए सरल आसनों को अपने दैनिक जीवन में शामिल कर सकते हैं।
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