होली के दिन गुलाल की महक और गुझिया की मिठास दिल में मिश्री घोल देती है। वैसे देखा जाये, तो होली रंगों का त्योहार है, लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग तरीके से मनाया जाता है। तो, चलिए आपको देश में चारों दिशाओं की सैर करवाते हैं और दिखाते हैं होली के विभिन्न रंग।
उत्तर भारत
उत्तर प्रदेश
यहां पर खासतौर से नंदगांव, बरसाने, वृंदावन और मथुरा में होली की धूम देखने लायक होती है। वृंदावन में फूलों की होली भी बुहत फेमस है। होली के त्योहार को कृष्ण-राधा से जोड़कर देखा जाता है।
उत्तराखंड
कुमाऊं क्षेत्र में खड़ी होली मनाई जाती है, जिसकी शुरुआत महाशिवरात्रि से होती है और यह होलिका दहन तक चलती है। इसके दौरान स्थानीय लोग पारम्परिक परिधान पहनते है। टोली बनाकर नाचते और खड़ी बोली में गाने गाते हुये एक दूसरे के घर जाते है।
राजस्थान
उदयपुर की रॉयल होली काफी प्रसिद्ध है, जिसमें वहां का ‘मेवाड़ रॉयल परिवार’ सजे हुए घोड़ों और रॉयल बैंड के बीच होलिका दहन करके बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं।
पंजाब
इस त्योहर को यहां ‘होला मौहल्ला’ के नाम से जाना जाता है। यह होली के अगले दिन मनाया जाता है, जिसमें ‘निहंग सिक्ख’ मार्शल आर्ट्स का प्रदर्शन करके सिखों के योद्धाओं को नमन करते हैं और उसके बाद नाचते-गाते हैं।
पूर्व भारत
मणिपुर
यहां होली को ‘याओसैंग’ के रूप में छह दिन तक मनाया जाता है। यह पूर्णमासी के साथ शुरु होता है, जिसके दौरान मणिपुरी नृत्य ‘थबल चोंग्बा’ खूब जोश के साथ किया जाता है।
असम
यहां होली को ‘फगवा’ के नाम से जाना जाता है। इसे दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन मिट्टी की झोंपड़ियां बनाकर जलाई जाती हैं, जिसे होलिका दहन कहते हैं और दूसरे दिन देश के बाकी लोगों की तरह रंगों से खेला जाता है।
बंगाल
बंगाल की होली को ‘बंसत उत्सव’ या ‘दोल जात्रा’ के नाम से मनाया जाता है। इस त्योहर को बसंत का मौसम आने की खुशी में मनाया जाता है। इसकी झलक आप ‘शांतिनिकेतन’ में देख सकते हैं, जहां महिलाए पीले कपड़े पहल कर पारंपारिक नृत्य करती हैं। यहां टेगोर की कविताओं और पारंपारिक गीतों की धुन भी सुनाई देती है। अगले दिन राधा-कृष्ण की मूर्ति लेकर यात्रा निकलती है, जिसे डोल जात्रा कहते हैं।
मध्य भारत
मध्य प्रदेश
वैसे तो इस त्योहार को यहां भगोरिया के नाम से जाना जाता है, लेकिन यहां होली को महाराष्ट्र के ‘रंगपंचमी’ की तरह भी मनाया जाता है। एमपी की भिल और भिलाला जनजातियां इसे खासतौर से मनाती हैं। इसमें नृत्य के देवता भगोरादेव की पूजा होती है। जिसके पांच दिन बाद रंगपंचमी पानी और रंगों के साथ मनाई जाती है।
पश्चिम भारत
गोवा
यहां यह त्योहार ‘शिगमो’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन किसान सड़कों पर लोक नृत्य करते हैं। डांस में दूसरे लोग उनका साथ देते हैं और एक दूसरे को रंग लगाते हैं।
दक्षिण भारत
केरल
कोंकणी टेंपल के गोसरीपुरम थिरुमाला में रंगों के इस त्योहार को मंजल कुली के नाम से मनाया जाता है। इसके दौरन पीले रंग का खास इस्तेमाल होता है।
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