‘वो मेरी बात नहीं सुनता/सुनती,’ ‘भूख लगने पर भी खाना नहीं खाता/खाती,’ ‘वह हमेशा खराब मूड में रहता/रहती है।’ एक बार बच्चे का नाटक शुरू होने के बाद पैरेंट्स खुद से सवाल करना शुरू कर देते हैं और बच्चों के साथ ज़्यादा समय न बिता पाने के कारण खुद को गिल्टी फील करते हैं।
याद रखिये कोई भी बच्चा इतना शैतान नहीं होता कि उसे हैंडल करना मुश्किल हो जाये, बस वह भावनात्मक रूप से थोड़ा अलग होता है यानी उसे बड़ों की तरह अपनी भावनाओं पर काबू रखना नहीं आता। इसलिये पैरेंट्स होने के नाते आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप बच्चे का साथ हमेशा खड़े रहे। यदि बच्चे को हाथ-पैर मारने की आदत है, तो दूर से ही उसे देखते रहे।
समस्या को पहचानें
बिना खुद को दोषी ठहरायें समस्या की जड़ तक जाने की कोशिश करें। पता करें कि क्या बच्चे को अपना प्ले स्कूल पसंद नहीं है, क्या उसके कपड़े असहज हैं। यदि आपको समस्या का पता चल जाता है, तो उसे सुलझा लें और यदि नहीं चल पाता है तो नीचे लिखे कदम उठाएं।
शांत रहें
हालांकि यह आसान नहीं है। जब बच्चा लगातार चिल्लाता रहे, तो ऐसे में खुद को शांत रखना बहुत मुश्किल है, लेकिन आपका शांत रहना आगे चलकर आपके और बच्चे दोनों के लिए फायदेमंद होगा।
बच्चे के साथ हंसे
जितना हो सके बच्चे के साथ हंसने की कोशिश करें। इससे आपका तनाव भी कम होगा। हंसने और मुस्कुराने से आपकी और बच्चे की बॉन्डिंग मज़बूत होगी। याद रखिए हंसी संक्रामक होती है।
पार्क में जाएं
प्रकृति के पास हर मर्ज़ की दवा होती है। यदि बच्चा बाहर जाने को लेकर उत्सुक नहीं है, तो आप खुद पार्क या कुदरती जगहों पर जाएं, वह आपको फॉलो करेगा। यदि रास्ते में चलते समय वह चिल्लाता है या किक करता है, तो परेशान न हों। पार्क में बच्चे को लेकर तब तक बैठे रहें, जब तक कि उसकी नेगेटिव भावनाएं खत्म नहीं हो जाती।
अच्छे व्यवहार के लिए उपहार दें
बच्चे और बड़े दोनों को ध्यान आकर्षित करने की आदत होती है। दरवाज़ा पीटना, मारना, काटना, चिल्लाना जैसे नकारात्मक व्यवहार बच्चे ध्यान आकर्षित करने के लिए ही करते हैं। उनके अच्छे व्यवहार पर तारीफ नहीं की जाती, जबकि बुरे व्यवहार के लिए डांट-फटकार लगाई जाती है। लेकिन बच्चों को उनके अच्छे व्यवहार के लिए पुरस्कृत किया जाना चाहिए। शुरुआत छोटी ही करें, जैसे यदि बच्चा 5 मिनट तक दरवाज़ा नहीं पीटता है, तो उसे स्टिकर दें या उसके हाथ में स्टार बना दें, इस तरह से समय सीमा बढ़ाते जायें और गिफ्ट में भी बदलाव करते रहें।
मारे नहीं
बच्चे को मारने से उन्हें यह संदेश जाएगा कि ‘गुस्से या परेशान होने पर किसी को मारना चाहिए।’ पैरेंट्स होने के नाते बच्चे को सेल्फ कंट्रोल सिखाना आपकी ज़िम्मेदारी है और यदि आप खुद अपने गुस्से को कंट्रोल नहीं कर सकते, तो भला बच्चे से कैसे यह उम्मीद कर सकते हैं। यदि बच्चा आपको चोट पहुंचा रहा है, तो हाथ पकड़कर शांति से उसे ऐसा करने से मना करें, लेकिन यदि वह किसी को कोई चोट नहीं पहुंचा रहा तो थोड़ी देर के लिए उसे इग्नोर करके अकेले में बैठ जाएं। बच्चे को उसके नेगेटिव व्यवहार के परिणाम से अवगत कराने के लिए टाइम आउट स्ट्रैटेजी अपनाने से हिचकिचाएं नहीं।
रोने दें
यदि आप सहन कर सकते है, तो बच्चे को थोड़ी देर रोने दें। उसे चुप कराने की ज़रूरत नहीं है। यह बस भावनाओं का आवेग है, जो थोड़ी देर में शांत हो जाता है।
पॉज़िटिव विचार–
फ्रिज के ऊपर दस पॉज़िटिव लिखी बातों वाला नोट चिपका दें और बच्चा जब भी नखरे दिखाये या आपको उनका व्यवहार गलत लगे, तो उन्हें गले लगाकर उन विचारों को पढ़ें।
- तुम मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हो।
- तुम्हें पाकर मैं धन्य हो गई।
- तुम्हारे जैसा कोई और नहीं है।
- मुझे तुम पर गर्व है।
- तुम मुझे सबसे अच्छी तरह गले लगाते हो।
- तुम न सिर्फ बाहर, बल्कि अंदर से भी सुंदर हो
- जब तुम मेरे पास होते हो तो मुझे बहुत खुशी होती है।
- तुम्हारे पास कुछ अद्भुत प्रतिभा है।
- तुम बहुत प्यारे हो।
ये पॉज़िटिव बातें न सिर्फ आपके बच्चे को शांत करती है, बल्कि बच्चे के दिल में छिपी अच्छाई भी आपको दिखती है।
बतौर पैरेंट्स आप अपना बेस्ट कर रहे हैं, बस अपने दृष्टिकोण में निरंतरता बनाए रखें और यह जपना न भूलें कि ‘यह दिन भी बीत जायेगा।’
अनन्या दिल्ली की वर्किंग मदर है और यहां बतायें सारे टिप्स उन्होंने खुद अपने 5 साल के बेटे पर आज़मायें हैं।
और भी पढ़िये : पॉज़िटिव सोच से दीजिये कैंसर को मात
अब आप हमारे साथ फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर भी जुड़िये।