प्रेरणा देती है – कोरोना योद्धाओं की कहानी

प्रेरणा देती है – कोरोना योद्धाओं की कहानी

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कोरोना वायरस के कारण जहां एक तरफ भारत समेत तमाम देशों में लोग लॉकडाउन के दौरान घरों में सुरक्षित थे। वहीं कोरोना के फ्रंट लाइन वारियर्स हर दिन अपनी जान हथेली पर रख इस वायरस से लड़ रहे थे। कुछ ने तो अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए इस युद्ध में अपना जीवन तक न्योछावर कर दिया। ऐसे ही कुछ कोरोना योद्धाओं की कहानी जानिये – 

सुरेश कुमार एम – केरल

केरल के ऑटोरिक्शा ड्राइवर सुरेश कुमार एम ने महामारी को ध्यान में रखते हुए अपने ऑटो को हैंड सैनिटाइजर और पानी से लैस किया है। यहां तक कि किसी भी सवारी को रिक्शा में बिठाने से पहले हाथ धुलवाते हैं और जिसने मास्क पहना होता है, सिर्फ वही सवारी रिक्शा में बैठ सकता है। उन्होंने लॉकडाउन के दौरान मरीजों की यात्रा की कठिनाइयों को कम करने के लिए अपना काम शुरु किया। इतना ही नहीं अपने 20 ड्राइवर साथी के साथ केरल शहर में ‘जनमित्रि ऑटो ड्राइवर्स कूटायम्मा’ नामक ट्रस्ट की सेवा चला रहे हैं। जिसमें किसी भी समय शहर भर के रोगियों के लिए अस्पतालों में मुफ्त पिक-अप और ड्रॉप-ऑफ सेवाएं दी जाती है।

अक्षय कोठावाले – महाराष्ट्र

पुणे के 30 साल के ऑटो ड्राइवर अक्षय कोठावाले ने अपनी शादी के लिए 2 लाख रुपये जमा किए थे। लॉकडाउन की वजह से उन्होंने शादी के लिए जमा किए गए पैसों से प्रवासी मजदूर और जरूरतमंदों को खाना खिलाने का फैसला किया। वे हर दिन 400 लोगों के लिए भोजन तैयार कराते हैं। इसके साथ ही बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं को मुफ्त में अस्पताल और क्लीनिक तक पहुंचाने काम भी करते हैं।

जमुनाबेन परमार – गुजरात

गुजरात की 49 साल की जमुनाबेन परमार को साल 2019 में कैंसर के इलाज के दौरान 10 महीने तक बेड रेस्ट पर रखा गया था। मगर वह कभी निराश नहीं हुई और कैंसर से लगातार लड़ती रहीं। ठीक होते ही अपने कमांडिंग ऑफिसर से अनुरोध किया कि उन्हें दोबारा से वर्दी पहनने की अनुमति दी जाए। अपनी काम के प्रति समर्पण को देखते हुए उन्हें ड्यूटी पर लौटने का आधिकारिक आदेश मिला। अब वह कोरोना को मात देने के लिए पहले की तरह रोज अपनी ड्यूटी पर आती हैं और 8 घंटे काम करती। 

निस्वार्थ सेवा में लगे कोरोना योद्धा | इमेज : फेसबुक

डॉक्टर प्रियदर्शनी – दिल्ली

एयर इंडिया में काम करने वाली महिला डॉक्टर प्रियदर्शनी गरीबों और मजूदरों लोगों का मदद करने का संकल्प लिया। वह रोज़ सुबह घर से खाना बनाकर निजामुद्दीन स्टेशन जाती और वहां बैठे प्रवासी मज़दूरों को खाना और मास्क बांटती। रात में ड्यूटी करने के बाद सुबह फिर से लोगों के लिए खाना बनाकर देना किसी योद्धा से कम नहीं। यहीं नहीं जब स्टेशन पर महिलाओं ने अपनी समस्या बताई तो उन्होंने सेनिटरी पैड्स की भी व्यवस्था की।

लाइबी ओइनम – मणिपुर

जीवन के हर संघर्ष को पार कर मणिपुर की लाइबी ओइनम प्रदेश की पहली महिला ऑटो ड्राइवर बनी। जब लाइबी ओइनम को यह पता चला कि इंफाल के अस्पताल में कोरोना से रिकवर हुई महिला घर जाने के लिए एम्बुलेंस नहीं लेना चाहती, तो उसने खुद आगे आकर उसे 100 किलोमीटर दूर कमजोंग जिले में छोड़ने का फैसला किया। रात भर में 8 घंटे का लंबा सफर तय करके लाइबी ने महिला को सही सलामत घर छोड़ा। उनके इस निस्वार्थ सेवा के लिए मणिपुर के मुख्यमंत्री ने लाइबी का सम्मान किया।

अगर कोई इंसान किसी की मदद करने की ठान ले, तो ऐसा कोई काम नहीं जो वह नहीं कर सकता। जैसे इन कोरोना योद्धाओं ने कर दिखाया।

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