किशोरावस्था से युवावस्था का जो समय है, उसे अपने आप में जीवन का सबसे बड़ा ट्रांजीशन फेज माना जाता है और इस उम्र में अभिभावकों के लिए अपनों बच्चों को सही दिशा देना काफी चुनौतीभरा हो जाता है। जब बच्चा किशोरावस्था में पहुंचता है, तो उसकी सोच का दायरा भी बढ़ता है, जिससे वह खुद को ज़्यादा आज़ाद और आत्मनिर्भर महसूस करता है। इसी समय बच्चे भी खुद को ज़िम्मेदार और आत्मविश्वासी महसूस करते हैं। यही वह समय भी होता है, जब बच्चे अपने दोस्तों के साथ ज़्यादा समय बिताना पसंद करते हैं। ऐसे में अभिभावकों को थोड़ी ज़्यादा मशक्कत करनी पड़ती है। किशोरावस्था से जवान होने तक के इस सफर को अगर सही तरीके से तय कर लिया जाए तो आने वाला जीवन बेहद आसान और खुशियों के साथ गुज़रता है, बशर्ते कुछ बातों का ध्यान रखा जाए।
तो अभिभावक के तौर पर आपको इन बातों का खास ध्यान देना चाहिए ताकि इस सफर को आसान बनाया जा सके।
1. पैसों का प्रबंधन
आज के दौर में आर्थिक रूप से निर्भर होना कितना महत्वपूर्ण है, ये बात किसी से नहीं छिपी है। इसलिए बच्चों को पैसे जमा करना और उनका कैसे इस्तेमाल करना है, यह सब बचपन से ही सिखा देना चाहिए। क्योंकि पैसों के प्रति जागरूकता से बच्चे कर्जें या किसी भी तनाव से बच सकते हैं।
2. लाइफ स्किल
एक बड़ा ही फेमस डॉयलॉग है- “ये ज़िन्दगी बहुत बड़ी है दोस्त, पता नही कौन सी चीज कब काम आ जाये”। इसलिए जीवन से जुड़े कुछ सामान्य कौशल जैसे कि खुद के खाना-पानी की व्यवस्था, प्राथमिक उपचार, समय प्रबंधन, रिपेयरिंग इत्यादि कुछ ऐसी चीजें हैं जो बच्चों को सिखानी ही चाहिए। इससे न केवल ज़िन्दगी आसान होती है बल्कि आत्मनिर्भर भी बनती है और परिपक्वता का विकास होता है।
3. स्वस्थ आदतें
अपने जीवन में आदतों की भूमिका हम सभी जानते हैं। दैनिक जीवन में हम जो भी करते हैं हमारे सभी कार्य लगभग आदतों के परिणाम होते हैं। इसलिए अच्छी आदतों की जानकारी बच्चों को भी देनी चाहिए। वैसे भी 15-16 से लेकर 21 की उम्र सीखने की ही मानी जाती है।
4. समय के साथ बदलाव
जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, वैसे-वैसे हमारे मनोविज्ञान के साथ शरीर मे भी परिवर्तन आते हैं। इसलिए ज़रूरत यह है कि इन परिवर्तनों को पॉज़िटिव लिया जाये और अभिभावकों को खुलकर अपने बच्चों के साथ इन मुद्दों पर बात करनी चाहिए। इससे उनके मन में कोई मिथ नहीं रहेगा और उन्हें जीवन को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
5. व्यवहारिक कौशल
बढ़ती युवावस्था में एक बात जो बहुत महत्व रखती है वो है व्यवहारिक नज़रिया क्योंकि आम जीवन में व्यवहारिक नज़रिए को हमेशा से ज्यादा तरजीह दी जाती रही है। इंटरनेट से बहुत सारी जानकारी मिल सकती है लेकिन असल ज्ञान अनुभव से ही मिलता है इसलिए बढ़ती उम्र के साथ समाज के साथ घुलें मिलें।
6. नियंत्रण और स्वतंत्रता
बचपन में अक्सर एक ख्याल आपको जरूर आता होगा कि काश मैं जल्दी बढ़ा हो जाऊं ताकी घर, परिवार के जो बंधन हैं उनसे आज़ादी मिल जाये, लेकिन हमें यह ध्यान रखने की ज़रूरत है कि कभी कभी स्वतंत्रता का अनियंत्रित उपभोग भी परेशानी का सबब बनता है। समय के साथ आवश्यक है कि आप अपने निर्णय लें लेकिन परिवार को उसमें ज़रूर शामिल करें। इससे आप बड़ी गलतियां करने से बच पाएंगे और पैरंट्स भी बेफिक्र होकर रह सकेंगे।
जीवन को देखने का एक संतुलित नज़रिया रखते हुए अगर किशोरावस्था से जवानी तक का सफर तय किया जाए तो न केवल दो अवस्थाओं के बीच का दौर आसानी से गुजरेगा बल्कि जीवन भी आसान बनेगा, जो पॉज़िटिव जीवन का आधार है।
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