दूसरों से पहले खुद को रखना गलत नहीं है, लेकिन हर बार केवल खुद के बारे में सोचकर दूसरों के लिए समस्या खड़ा करना व्यक्ति को धीरे-धीरे स्वार्थी बना देता है। ऐसे स्वार्थी लोग न केवल अन्य समाज और पर्यावरण के लिए, बल्कि खुद के लिए भी विनाशकारी है। यदि आप अपने आपको शब्दों और कर्मों दोनों में लगातार स्वार्थी पाते हैं, तो शायद यह समय आपके लिए इन तरीकों पर विचार करने की है, जो आपको स्वार्थी व्यक्ति होने से रोकने में मदद कर सकते हैं।
सुनना सीखें
स्वार्थी लोग सुनना चाहते हैं, लेकिन कभी वह दूसरों की सुनते नहीं हैं। वह चाहते हैं कि बातचीत केवल उनके या उनके हितों के इर्द-गिर्द घूमे और एक बार जब दूसरे बात करना शुरू कर देते हैं, तो वह तुरंत रुचि दिखाना कम कर देते हैं या बातचीत को वापस उस चीज़ में ले जाते हैं जो उन्हें मनोरंजक बनाती है। यही स्वार्थी बनने की निशानी है। इसलिए सिर्फ अपनी कहे नहीं, बल्कि सुनना सीखें कि दूसरे लोग क्या कहते हैं। जब आप बात करते हैं तो उन्हें वही सम्मान दें, जो वह आपको देते हैं। सुनें, शामिल हों और अपनी बारी का इंतज़ार करें।
कुछ दूसरों के लिए छोड़े
स्वार्थी लोग अपने हाथ में आने वाली हर चीज़ को लेने की कोशिश करते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह चीज़ दूसरों की मिली या नहीं। बस सब कुछ चहिए देना कुछ नहीं है। ऐसे बनने से खुद को रोकने के लिए आपको दूसरों के लिए भी कुछ चीज़ों को छोड़ना सीखना चाहिए। जितनी आपको ज़रूरत है, उतना ले और कुछ दूसरों के लिए रहने दें। ये आदत आपको स्वार्थी बनने से रोकेगा।
अपने कामों का हमेशा आत्मचिंतन करें
जितना अधिक आप शांति से अपने कार्यों के बारे में विचार करेंगे, उतना ही आप उन स्वार्थी चीज़ों की पहचान करेंगे जो आप कर रहे हैं, चाहे जानबूझकर या अनजाने में। यह आपको भविष्य में अपने कार्यों की सावधानीपूर्वक निगरानी रखने में मदद करता है। इससे द्वारा फिर से वही काम करने की संभावना कम हो जाती है। आत्मचिंतन से आप खुद के अच्छे और बुरे कामों पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं।
किसी की मदद करें
स्वयं को स्वार्थी होने से बचाने के लिए सबसे अच्छा तरीका निस्वार्थ भाव का होना है। निस्वार्थ काम करना जैसे किसी दोस्त या अजनबी की मदद करना। अगर आपके दोस्त को अपने काम या पढ़ाई में समस्या हो रही है, तो बदले में कुछ भी मांगे या उम्मीद किए बिना मदद के लिए हाथ बढ़ाने की कोशिश करें। ज़रूरतमंद लोगों की सहायता करने से आप निस्वार्थता की बाहरी सुंदरता को देख पाएंगे और साथ ही दूसरों के दुख को कम करने के आंतरिक आनंद को महसूस कर पाएंगे।
खुद को दूसरे की जगह पर रखकर देखें
अपने आप को दूसरे इंसान की जगह पर रखकर देखने से आपकी ज़िंदगी में काफी हद तक बदलाव आ सकता है। इससे आपके अंदर दूसरे लोगों के बारे में मौजूद सोच को बदलने में और किसी स्थिति में उनके मन में चलने वाली भावनाओं को महसूस करने में मदद मिल सकती है। किसी के साथ में सहानुभूति जताने की और लोग किस स्थिति से गुजर रहे हैं, को समझने में आप जितना ज्यादा अनुभव करते हैं, उतनी ही जल्दी आप अपनी स्वार्थी स्वभाव को छोड़ने लग जाएंगे।
अपने में बदलाव लाने में थोड़ा समय लगेगा, लेकिन अपने व्यवहार में किसी तरह की बड़ी परेशानी से खुद को बचा पाएंगे। स्वार्थ को नहीं निस्वार्थ भाव को अपनाएं।
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