अध्यात्म को कुछ लोग सांसारिक जीवन से विरक्ति के रूप में देखते हैं, लेकिन यह सच नहीं है। अध्यात्म बहुत व्यापक है। आसान शब्दों में कहें तो किसी चीज को गहराई तक जानना आध्यात्मिकता है। आध्यात्मिक व्यक्ति को यह पता होता है कि अपनी शांति, प्रेम और खुशी के लिए वह खुद ही ज़िम्मेदार है। क्रोध, ईर्ष्या, लालच से दूर हर किसी से प्रेम और करूणा की भावना रखना, दूसरों की गलितयों के लिए उन्हें दिल से क्षमा कर देना सब आध्यात्मिकता है। जिस व्यक्ति के दिल में प्रेम की भावना होती है वही आध्यात्मिक है।
आशीर्वाद
आशीर्वाद भी प्रेम का ही रूप है। जब बड़े-बुज़ुर्ग या गुरु हमें आशीर्वाद देते हैं, तो वह अपना प्रेम, स्नेह हम पर न्योछावर करते हैं। जब हम अपने से छोटों को ‘खुश रहो’ का आशीर्वाद देते हैं तो वह भी तो प्रेम ही है न। आशीर्वाद से प्रत्यक्ष रूप से भले ही कुछ नहीं बदलता हो, मगर इसे बहुत शक्तिशाली माना जाता है, क्योंकि यह सकारात्मकता को बढ़ाता है। जब कोई हमें दिल से खुश रहने या तरक्की करने का आशीर्वाद देता है तो सुनकर मन को अच्छा महसूस होता है और सामने वाले के प्रति हमारे मन में भी प्रेम की भावना का संचार होता है।
धैर्य
धैर्य भी आध्यात्मिकता ही है। जब आप कुछ खोने पर अधीर नहीं होते और नही कुछ पाने पर अत्यधिक खुश या अहंकार का अनुभव करते हैं, तो आप सामान्ये से ऊपर उठकर सही मायने में आध्यात्मिक जीवन जी रहे हैं। धैर्य में वह शक्ति होती है जो मुश्किल से मुश्किल हालात में भी आपका हौसला बनाए रखती है। यहां तक कि यदि कोई आपकी आलोचना करता है तब भी आपके मन में उसके लिए क्रोध की नहीं प्रेम की भावना रहती है।
क्षमा करना
माफ करना एक कला है, जो हर किसी को नहीं आती। पड़ोसी ने सुबह ही आपके साथ झगड़ा किया और ऊपर से सॉरी भी नहीं बोला, तो ज़ाहिर सी बात है माफ करने का सवाल ही नहीं उठाता। मगर जो व्यक्ति अधायत्म की राह पर चलता है, वह बिना माफी मांगे ही सामने वाले को क्षमा कर देता है और उसके प्रति मन में कोई द्वेष का भाव नहीं रखता। इसलिए नहीं कि वह कमज़ोर है, बल्कि इसलिए क्योंकि ऐसा करने से मन शांत रहता है और जब मन शांत रहेगा, तभी तो उसमें प्रेम बसेगा।
करुणा/दया
सड़क पर घायल पड़े किसी पशु को उठाकर उसे घाव पर मरहम लगाना या उसे पानी पिलाने का काम एक दयालु व्यक्ति ही कर सकता है। ऐसा शख्स किसी को भी पीड़ा में देखकर व्याकुल हो उठता है चाहे वह इंसान हो या पशु-पक्षी। दूसरों के प्रति मन में करूणा का भाव आध्यात्मिकता की पहचान है और दया का भाव प्रेम से ही उत्पन्न होता है।
तो फिर जीवन में आध्यात्मिकता का मार्ग अपनाना ही बेहतर है और इसे अपनाने से जीवन सुंदर बन जाता है।
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