‘उत्तरायण’ दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है ‘उत्तरा’ जिसका अर्थ है ‘उत्तर’ और ‘अयन’ जिसका मतलब है गति। इस तरह उत्तरायण का शाब्दिक अर्थ है सूर्य का उत्तर दिशा की ओर बढ़ना। यही वजह है कि हर साल यह त्योहार 14 जनवरी को मनाया जाता है, जिस दिन से सूर्य उत्तर की ओर बढ़ने लगता है और दिन बड़ा होने लगता है। उत्तरायण को मकर संक्रांति भी कहा जाता है, हिंदू कैलेंडर में सूर्य के साथ संबंधित होने की वजह से इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है, इसे जीवन, ज्ञान, बुद्धि और स्वास्थ्य के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
तिल-गुड़ का महत्व
इस दिन देश के अलग-अलग हिस्सों के रीति-रिवाज़ों में तिल और गुड़ की बहुत अहम भूमिका होती है। महाराष्ट्र में इस दिन लोग तिल और गुड़ के लड्डू से एक-दूसरे का मुंह मीठा कराते हैं। सिंधी समुदाय भी तिर-मुरी (मीठे के रूप में तिल और कच्चे रूप में मूली) खाने को बहुत शुभ मानते हैं। देश के कुछ हिस्सों में लोग तिल-गुड़ के लड्डू के अंदर सिक्का डाल देते हैं ताकि बच्चों को थोड़ा रोमांचित किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि सर्दियों के मौसम में वह ऐसी मिठाई खाएं जो सेहत के लिए फायदेमंद है। प्रयागराज में इसी दिन वार्षिक मेला जिसे ‘माघ मेला’ कहते हैं कि शुरुआत होती है और हज़ारों की संख्या में लोग पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने के लिए जुटते हैं।
मकर संक्रांति का महत्व
देश के कई हिस्सों में उत्तरायण फसल के त्योहार के रूप में मनाया जाता है, पंजाब में यह त्योहार दो दिनों तक ‘लोहरी’ और ‘माघी’ के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और उत्तर भारत के कई हिस्सों में मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर जगह-जगह अलाव जलाए जाते हैं। पवित्र अग्नि का उद्देश्य सर्द रातों को गर्म करना, हवा को शुद्ध और नकारात्मकता को खत्म करना है। साथ ही लोग अग्नि में मिठाई, गन्ना, चावल, मक्का आदि डालकर सर्दियों की फसल के प्रति आभार जताते हैं।
पश्चिम बंगाल में इसे ‘पौष संक्रांति’ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि हिंदू कैलेंडर के हिसाब से यह ‘पौष’ माह के अंतिम दिन पड़ता है। इस दिन बंगाली ‘पौष परबोन’ के नाम से जाना जाने वाला त्योहार मनाते हैं, यह सर्दियों की फसल के लिए आभार जताने के लिए मनाया जाता है। चावल की नई फसल, और ताज़े खजूर के शरबत से बनी गुड़ (गुड़) से कई पारंपरिक बंगाली मिठाइयां बनाई जाती हैं और धन की देवी लक्ष्मी को अर्पित की जाती है।
इस दिन की एक खास परंपरा जो बहुत मशहूर है वह है पतंगबाज़ी। पूरे गुज़रात के साथ ही राजस्थान, महाराष्ट्र और देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी इस परंपरा का पालन किया जा है। आसमान अलग-अलग रंग और आकार की पतंगों से भर जाता है, जबकि लोग संगीत और लज़ीज़ व्यंजनों के साथ पतंग उड़ाने का मज़ा लेते हैं।
तिल लड्डू
सामग्री
- आधा कप तिल
- 4-5 हरी इलायची
- एक बड़ा चम्मच घी
- आधा कप कद्दूकस किया हुआ गुड़ा
- 1 छोटा चम्मच दूध
विधि
- गहरे तले के बर्तन में तिल को मध्यम आंच पर खुशबू आने तक भूनें। फिर ठंडा होने के लिए रख दें।
- अब तिल और इलायची को एकसाथ पीस लें।
- गहरे तले के पैन या कड़ाही में घी गरम करें और इसमें गुड़ डालकर इसे पिघलने तक पकाएं। इसे सिर्फ पिघलाना है, गुड़ में उबाल न आने दें।
- अब इसमें तिल का मिश्रण और दूध डालकर अच्छी तरह मिलाएं। इसे आंच से उतारकर थोड़ा ठंडा होने दें। पूरी तरह से ठंडा नहीं करना है।
- जब यह छूने लायक गर्म रहे तभी थोड़ा-थोड़ा मिश्रण हथेली पर लेकर लड्डू का आकार दें। यदि आपको मिश्रण बहुत सूखा लगे तो इसमें एक चम्मच दूध मिला सकते हैं।
मूंगफली चिक्की
सामग्री
- 2 छोटे चम्मच घी, थोड़ा और घी ग्रीसिंग के लिए
- एक कप मूंगफली
- ¾ कप कद्दूकस किया हुआ गुड़
- आधा छोटी चम्मच इलायची पाउडर (वैकल्पिक)
विधि
- कटिंग बोर्ड या किचन प्लेटफॉर्म और चकले पर थोड़ा घी लगाकर चिकना कर लें।
- अब कड़ाही या नॉन स्टिक पैन गरम करके मूंगफली को सूखा भून लें। इसे लगातार चलाते रहें। ठंडा होने पर मसलकर मूंगफली का छिलका निकाल लें और दरदरा पीस लें।
- एक कड़ाही या गहरे तले के बर्तन/नॉन स्टिक पैन में एक बड़ा चम्मच पानी और गुड़ डालकर इस पिघलाने तक पकाएं। इसे तब तक पकाएं जब तक चाशनी गाढ़ी न हो जाए। इसे चेक करने के लिए एक कटोरी पानी में चाशनी की कुछ बूंदें डालकर देखें कि यह जमकर बॉल की तरह बन रहा है या नहीं। जब उंगलियों के बीच बॉल बन जाए तो समझ लीजिए चाशनी तैयार है।
- इसमें घी और इलायची पाउडर मिलाकर आंच से उतार लें। अब इसमें दरदरी की हुई मूंगफली डालकर अच्छी तरह मिलाएं।
- अब इस मिश्रण को चिकने किए हुए कटिंग बोर्ड या किचन प्लेटफॉर्म पर डालकर चौकोर आकार में फैलाएं। फिर तुरंत ही चौकोर आकार में काटने के लिए चाकू से निशान बना दें और इसे ठंडा होने दें।
- जब मिश्रण पूरी तरह से ठंडा हो जाए तो निशान लगे हुए चौकोर टुकड़ों को अलग करके एयरटाइट डिब्बे में भर लें।
रेवड़ी
सामग्री
- ¼ कप सफेद तिल
- डेढ़ कप शक्कर
- ¾ कप पानी
- ¾ छोटी चम्मच नमक
- ¾ कप कॉर्न सिरप
- 1 बड़ा चम्मच गुलाब जल
- 1 छोटी चम्मच इलायची पाउडर
- 1 बड़ा चम्मच घी
विधि
- सफेद तिल को गहरे तले के बर्तन में 2-3 मिनट के लिए मध्यम आंच पर सूखा भून लें। इसे अलग रख दें।
- अब एक बर्तन में शक्कर, पानी, नमक और कॉर्न सिरप डालकर मध्यम आंच पर पकाएं। गुलाबजल और इलायची पाउडर मिलाएं और इसे लगातार चलाते रहें जब तक की शक्कर पूरी तरह पिघल न जाए। इसे तब तक पकाएं जब तक चाशनी से बुलबुला न निकलने लगे।
- सिलिकन मैट पर इसे डालकर एक समान फैलाएं। एक मिनट तक इसे ठंडा होने दें। फिर चम्मच की मदद से चाश्नी को मैट के बीच में लाएं। इसे लगाकर मिलाते रहें जब तक की चाश्नी ठंडी होकर थोड़ी गाढ़ी न हो जाए।
- हाथों पर घी लगाकर इसे चिकना कर लें और मिश्रण को गूंथना शुरू करें। इसे तब तक गूंथें जब तक मिश्रण क्रीमी सफेद न हो जाए।
- 2 बड़े चम्मच तिल को अलग रख लें और बाकी को मैट पर फैला दें। अब इसके ऊपर शक्कर का मिश्रण रखें और उसे गूंथें
- मिश्रण को 6 हिस्सों में बांट लें। हथेलियों की मदद से इसे आधा इंच मोटा रखते हुए सिलेंडर के आकार में बेल लें। हर सिलेंडर आकार से ¼ इंच के टुकड़े काट लें। इन सबके बॉल बनाकर हथेलियों से हल्के हाथों से दबा दें।
- अब बचे हुए तिल को रेवड़ी के ऊपर चिपकाएं और इसे एयर टाइट डिब्बे में स्टोर करें।
उम्मीद है कि जिस तरह से यह व्यंजन मिठास से भरपूर है, उसी तरह आपके जीवन में भी सेहत और खुशियों की मिठास बनी रहेगी।
डॉ. दीपाली कंपानी सेहत और खाने से जुड़े लेखन की विशेषज्ञ है।
और भी पढ़िये : स्वाधिष्ठान चक्र को संतुलित करने में मदद करे – 5 योगासन
अब आप हमारे साथ फेसबुक, इंस्टाग्राम और टेलीग्राम पर भी जुड़िये।