खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी

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चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलो के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।।

भारत में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो, जिसने ये पंक्तियां न सुनी हो। कुछ लोगों की माने, तो इस कविता में झलकने वाला साहस, पढ़ने वाले के रौंगटे खड़े कर देता है। ज़रा सोचिये कि जब यह कविता को पढ़ने मात्र से ही मन में उत्साह और देश भक्ति की भावना दोगुनी हो जाती है, तो उस महिला के जीवन के बारे में पढ़ने से कितना जोश जागेगा, जिसने देश की आज़ादी के लिये तलवार उठाई थी।

आइये आपको बताते हैं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के निजी जीवन के बारे में, जो ब्रिटिश राज के खिलाफ एक प्रतीक बन गई थी।

– झांसी की रानी का जन्म 19 नवंबर, 1828 में काशी में हुआ और उनका नाम मणिकर्णिका तांबे रखा गया था।

– चार साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी मां को खो दिया, जिसके बाद उनके पिता ने उन्हें अपरंपरागत तरीके से पाला-पोसा और उन्हें घुड़सवारी, तीरंदाज़ी, आत्मरक्षा, और निशानेबाज़ी सिखाई। उनके पिता पेशवा के दरबार में सलाहकार के रूप में काम करते थे।

खूब लड़ी मस्तानी वो तो झांसी वाली रानी थी
झांसी की एक झलक  | इमेज : फाइल इमेज

– 1842 में, लक्ष्मीबाई की शादी झांसी के महाराजा गंगाधर राव नयालकर से हुई। इसके बाद उन्हें रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाने लगा।

– शादी के कुछ साल बाद साल 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक लड़के को जन्म दिया, लेकिन वह चार महीने तक ही जीवित रहा।

– इस बात से रानी लक्ष्मीबाई और महाराज गंगाधर राव को बहुत ठेस पहुंची, लेकिन राज्य के भविष्य के बारे में सोचते हुये उन्होंने राव के चचेरे भाई के बेटे आनंद राव को गोद लिया। इसे बाद में दामोदर नाम दिया गया।

– आनंद को अपनाने के तुरंत बाद 1853 में बीमारी के कारण महाराजा की मृत्यु हो गई। उस समय रानी लक्ष्मीबाई सिर्फ 18 वर्ष की थीं।

– ईस्ट इंडिया कंपनी ने महाराजा की मृत्यु का फायदा उठाने की कोशिश की और डॉक्टरीन ऑफ लैप्स को लागू कर दिया। इसके तहत अंग्रेजों ने दामोदर राव को कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं किया।

– अन्याय से दुखी होकर रानी लक्ष्मीबाई ने लंदन की एक अदालत में अपील की, जिसने उनके मामले को खारिज कर दिया क्योंकि अंग्रेजों की योजना झांसी को घेरने की थी। उन्होंने राज्य के गहनों को ज़ब्त कर लिया। रानी लक्ष्मीबाई को 60,000 रुपये की वार्षिक पेंशन दी और उसे हमेशा के लिये किला छोड़ने को कहा गया।

और फिर हुआ विद्रोह

– साल 1858 में जब ब्रिटिश सेना के कमांडिंग ऑफिसर सर ह्यू रोज ने झांसी के आत्मसमर्पण की मांग की, तब उन्होंने अंग्रेज़ों से लड़ने का मन बना लिया।

– उन्होंने महिलाओं सहित विद्रोहियों की एक सेना को इकट्ठा करना शुरू कर दिया, जिसे तांत्या टोपे और नाना साहिब का भी समर्थन था।

– झांसी की घेराबंदी करने में लगभग दो हफ्ते लग गये, इसलिये ज़ाहिर है कि रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों से टक्कर की लड़ाई की थी। एक भयंकर युद्ध के बाद जब अंग्रेज़ों की सेना झांसी में घुसी, तो लक्ष्मीबाई ने अपने बेटे दामोदर राव को पीठ पर बांधकर दोनों हाथों में तलवार लेकर बहादुरी से लड़ने लगी।

– इसके बाद वह अपनी सेना के साथ कालपी के लिए निकल गईं और फिर ग्वालियर चली गईं, जहां अंग्रेजों और लक्ष्मीबाई की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ।

– भारत की आज़ादी के लिये अपने प्राण न्योछावर करते हुये वह 17 जून, 1858 को शहीद हो गईं।

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