दुनिया की सबसे बड़ी संस्कृति मानी जाने वाली हिंदू संस्कृति को पारंपरिक प्रथाओं का खजाना कहा जाता है। खास बात यह है कि ये भी पारंपरिक प्रथाएं यूं ही प्रचलित नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे छिपे कई रहस्य इन्हें सदियों से हमारे बीच जिंदा रखे हुए हैं। इन खास रहस्यों के कारण ही ये पारंपरिक प्रथाएं मानव जीवन में अपना अलग महत्व भी रखती हैं। इन्हीं पारंपरिक प्रथाओं में से एक है किसी भी व्यक्ति का हाथ जोड़कर ‘नमस्ते’ या ‘नमस्कार’ करना।
ग्लोबल हो गया ‘नमस्ते’
हालांकि, हिंदू संस्कृति की पारंपरिक प्रथा ‘नमस्ते’ अब सिर्फ हमारे देश तक ही सीमित नहीं रह गई है, बल्कि इस खास प्रथा का भी ग्लोबलाईजेशन हो गया है। यानी, आज ‘नमस्ते’ शब्द का इस्तेमाल ‘वेलकम’ के तौर पर पूरे वर्ल्ड में होने लगा है। नमस्ते बोलने की बजाय सिर्फ इसे भावमुद्रा के जरिये ही इसे दर्शाया जाता है। बता दें कि, ‘नमस्ते’ या ‘नमस्कार’ का मतलब ही किसी व्यक्ति का वेलकम करने, उसके प्रति आदर दिखाने और उसकी अहमियत दर्शाना होता है।
‘नमस्ते’ शब्द की उत्पत्ति और इसकी मुद्रा
‘नमस्ते’ शब्द का अर्थ होता है ‘तुम्हारे लिए प्रणाम’। लेकिन, यूं ही आप किसी को ‘नमस्ते’ नहीं करते हैं, बल्कि ‘नमस्ते’ कहने के लिए भी एक विशेष पोजीशन में आना पड़ता है। यह मुद्रा होती है, दोनों हाथों को अनाहत चक्र पर रख, आंखें बंद कर, सिर को झुका कर ‘नमस्ते’ कहना।
क्या है ‘नमस्ते’ कहने का भाव?
‘नमस्ते’ कहने के साथ जिस भावमुद्रा का इस्तेमाल किया जाता है, उसके पीछे भी एक खास रहस्य है। माना गया है कि हर इंसान के हृदय, यानी अनाहत चक्र में एक दैवीय चेतना और प्रकाश विद्यमान होता है। यही वजह है कि ‘नमस्ते’ कहने के लिए जिस पोजीशन का इस्तेमाल होता है, उसके पीछे का तात्पर्य होता है, एक आत्मा का दूसरी आत्मा के प्रति आभार जताना।
‘नमस्ते’ कहने के फायदे
माना जाता है कि दोनों हाथों को अनाहत चक्र पर रखने से आपस में दैवीय प्रेम का बहाव होता है। जबकि, इसी भावमुद्रा के दौरान सिर झुकाने और आंखें बंद करने का अर्थ खुद को हृदय में विराजमान ईश्वरीय शक्ति के हाथों सौंप देना है। इसी वजह से गहरे ध्यान में डूबने के लिए भी भी इसी पोजीशन का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन जब ऐसा किसी और के साथ किया जाता है, तो इसे एक सुंदर और तीव्र ध्यान का पोजीशन माना जाता है, क्योंकि इसके जरिये दो व्यक्ति एनर्जेटिक रूप से समय और स्थान से रहित होकर एक कॉमन प्वाइंट पर परस्पर निकट आते हैं और ईगो की भावना से मुक्त हो जाते हैं। यह दो इंसानों के बीच आत्मीय संबंध भी बनाता है।
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