हमारे आसपास ऐसी बहुत सी चीज़े होती है, जो हमें बेकार या काम की नहीं लगती। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं, जो इन्हीं चीज़ों का इस्तेमाल कर बेहतरीन चीज़ें बना रहे हैं और साथ ही पर्यावरण की भी सुरक्षा कर रहे हैं। आइये मिलते हैं, ऐसे कुछ महानुभावों से –
मैत्री जरीवाला – सूरत
फूल प्रकृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई कीड़े-मकोड़ों और पक्षियों को इन्हीं फूलों से अपना भोजन मिलता है। क्या आपने कभी सोचा है कि मंदिर के बाहर, समारोह या किसी धार्मिक काम में फूलों का उपयोग करने के बाद क्या होता है? देखा जाए, तो फूलों को किसी नदी में, पेड़ के नीचे या कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है। इसी समस्या को दूर करने लिए सूरत की रहने वाली मैत्री ने खराब और कूड़ेदान में पड़े फूलों से कुछ नया बनाने का फैसला किया। वह हर दिन मंदिर से कूड़े में फेंके गए फूलों को इकट्ठा कर अपने घर लाने लगी। फूलों को अलग-अलग करके मैत्री ने उन्हें घर में ही फैलाकर सुखाना शुरू कर दिया। धूप में इन फूलों को सुखाने के बाद बिना किसी केमिकल का इस्तेमाल किए बिना इससे साबुन, अगरबत्ती, खाद, सॉलिड परफ़्यूम और इंडोर प्लांट में खाद जैसी कई चीज़ें बनाने लगी। मैत्री इन प्रोड्क्टस को सोशल मीडिया के ज़रिए बेचती है। इस काम से कई लोगों को रोज़गार मिला और साथ ही पर्यावरण को सुरक्षित रखने में बहुत मदद मिल रही है।
अमिता देशपांडे – पुणे (महाराष्ट्र)
पुणे की रहने वाली अमिता देशपांडे उन में से एक हैं, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक प्लास्टिक को रोकने में दिलोजान लगा दिया। अमिता अपने छात्र जीवन से ही प्लास्टिक डिस्कार्ड और सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ जंग लड़ रही थी। इसके लिए उन्होंने अमेरिका में सस्टेनेबिलिटी की पढ़ाई की। प्लास्टिक रैपरों से रोज़ाना इस्तेमाल होने वाले चीज़ों को जैसे कि लैपटॉप बैग, छोटे-छोटे गमले, बैग बनाने पर खास ज़ोर दिया जाता है। इसे साकार करने के लिए उन्होंने कई कबाड़ी वालों और विभिन्न संस्थाओं से बात की। रैपर प्लास्टिक से बैग बनाने के लिए पारपंरिक चरखा और हैंडलूम का इस्तेमाल शुरु किया। इस काम में चरखे का इस्तेमाल हो रहा है इसलिये इस संस्था को ‘रिचर्खा’ नाम दिया गया। इस संस्था के ज़रिये ग्रामीण महिलाओं और युवाओं को रोज़गार मिल रहा है।
वाणी मूर्ति – बैंगलुरु
घर के कूड़े-कचरे से खाद बनाने में एक्सपर्ट वाणी मूर्ति को सोशल मीडिया पर ‘वर्म रानी’ के नाम से जानी जाती हैं। उनके जीवन का तीन मूल मंत्र है – कम्पोस्ट, ग्रो और सुरक्षित भोजन का सेवन करना है। वह सोशल मीडिया के ज़रिये लोगों को खाद बनाने, ऑर्गेनिक सब्जियां उगाने और लो वेस्ट जीवनशैली की सीख देती है। वर्म रानी का नाम इसलिए कि उन्हें केचुओं से खास लगाव है। इतना ही वह वेस्ट मैनजमेंट के नुस्खे भी देती नजर आती हैं। अपने जीवन काल में उन्होंने शहर में रहने वाले कई लोगों को किचन वेस्ट को कम कर, इससे घर में बागवानी करने के लिए प्रेरित किया है।
लक्ष्मी मेनन – केरल
जब देश में कोरोनोवायरस महामारी की चपेट में आया, तो कई फैशन डिज़ाइनरों ने कपड़े से बने फेस मास्क बनाना शुरू करके उसे अपने व्यवसाय को बदल दिया। लेकिन भारतीय डिजाइनर लक्ष्मी मेनन की सोच अन्य डिज़ाइनरों से हटकर थी। मास्क बनाने के बजाय, उन्होंने मास्क, गाउन और अन्य पीपीई बनाने वालों से बचे हुए कपड़े के कतरन को इकठ्टा किया और कपड़े का इस्तेमाल कोविड-19 रोगियों का इलाज करने वाले अस्पतालों के लिए बहुत ज़रूरी गद्दे बनाने के लिए किया। लक्ष्मी को यह काम करने का विचार तब आया, जब उन्होंने सफर के दौरान एक बच्चे को बिना कपड़ों के ज़मीन पर लेटे हुए देखा। तभी से लक्ष्मी ने वेस्ट हो रहे कपड़ों के कतरन का सही इस्तेमाल करना शुरु किया, जिससे ज़रूरतमदों को इसका फायदा मिल सकें और महामारी के समय ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को रोज़गार मिल सके। लक्ष्मी इन कतरनों से खासतौर पर गद्दे बनाती है।
पर्यावरण में वेस्ट को बेस्ट में बदलने वाले ऐसे तरीकों को हम और आप भी अपना सकते हैं, ज़रूरत है तो बस बारीकी से इस ओर ध्यान देने की।
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